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जीवनमें ज्योति जगाना है
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(ले०-६० पन्नालाल जैन 'वसन्त' माहित्याचार्य) हे वीरयुवक! गुण गौरव-धन !
प्रणवीर भीष्म भी तुम्ही हुए, यश-सौरभके मञ्जुल उपवन !
सम्राट् गुप्त भी तुम्ही हुए , हे शान्ति-क्रान्तिके सुन्दर तन!
रणधीर शिवाजी तुम्हीं हुए, लग रहा तुम्ही पर मानव-मन ।
अब हो उदास क्यों पड़े हुए , इनको आगे ले जाना है,
कायरता दूर भगाना है, जीवनम ज्योति जगाना है।
जीवनमें ज्योति जगाना है। ये मानव मदमें मत्त हुए,
विष व्योममें छाया है, तज प्रीति, वैरमें रक्त हुए,
हिमाने शङ्ख बजाया है , मन्मार्ग भूल कर दुखी हुए,
लालचने साज सजाया है, हैं भवावर्तम पड़े हुए,
खलताने राज्य जमाया है। जगको सन्मार्ग बनाना है,
दानवता दूर भगाना है, जीवन में ज्योति जगाना है।
जीवनमें ज्योति जगाना है। है विश्व बदा कितने अागे?
चमको नभमें सूरज बनकर , पर तुम पीछे कितना भागे ?
दमको घनमें विद्य त बनकर , जग जाग उठा, तुम नहि जागे,
बरसो क्षिति पर जलधर बनकर , उठ, जाग, बढ़ो सबके श्रागे ।
मुख शान्ति रहे जिससे घर घर । श्रालसको दूर भगाना है ,
अपना कर्तव्य निभाना है , जीवन में ज्योति जगाना है।
जीवन में ज्योति जगाना है। अब तक हम तुम सब दूर रहे , जिमसे अपमान अनेक महे , श्राश्रो मिल जावे, ऐक्य रहे,
जग तुम-हमको नहिं हीन कहे । जगमें श्रादर्श दिखाना है, जीवनमें ज्योति जगाना है।
जिनवाणी-भक्तोसे'अनकान्त' तथा 'जैन सन्देश' में प्रकाशित होने वाली श्री भगवत' जैन लिखित जैन-माहित्य की कहानियोंका अगर कोई महानभाव अपनी पारस पस्तककाकार संग्रह प्रकाशित कगयें । उचित और मामयिक चीज़ बने । कहानियां पुगनी होने पर भी कितनी आधुनिक और मनोरंजक हैं, यह 'अनेकान्त' और 'मन्देश के सभी पाठक जानते हैं। और यही वजह है कि वे ग्यूब पमन्दकी जा रही हैं। अगर संग्रह प्रकाशित होता है, तो वह नवयुगकी एक मूल्यवान देन के माथ-माथ जैन-समाज को बहन बड़ी कमीकी पूर्ति होगी। स्वल्प व्ययमें ही यह जैन-माहित्यक प्रकाशनका काम हो सकता
वामंदिर मम्मावा, या 'महावीर प्रेम आगगसे इस सम्बन्धमें परामर्श कर शीघ्र ही किन्हीं जिनवाणी-भक्त भाईको इसे पूरा करना चाहिए। -पूरनमल जैन B. A. L. L. B. वकील,