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________________ किरण ४ ] अयोध्याका राजा २७१ पूछा। की ओर देखा न समाजका स्नयाल किया !' बेकार है।' 'लेकिन तुम्हें उस पर दया करनी थी, उसे छोड़ पर, ऐसा देखनेमें तो नहीं पाया'.... ।'देना था ! चन्द्राभाने मुस्कराते हुए कहा! महाराज हँसे ! 'कैसा ?'- महाराज मधुने आश्चर्यान्वित होकर 'गजनीति तुम जानती नहीं, इसीसे कहती हो ! ऐसा ही, कि किसी गजाने परखी-सेबन किया देखो, दया हर जगह की जाती है। पर, जहां न्याय और उसे सजा मिली हो!' का सवाल आता है ! वहां न्याय ही होता है। गजा 'लकिन मैं ने तो ऐमा नहीं सुना ! गजा अन्याय का फर्ज़ जो ठहग ! उस कर्तव्यसं विमुग्ध होकर गजा करते हैं तो उसका प्रतिफल उन्हें भोगना ही पड़ता को नीचा देखना होता मानली है। कानून जो सबको एक है.!' ___ 'आपने सुना नहीं ! पर देम्वा जरूर है। लेकिन छोड़ देता, तो नतीजा क्या होता ? यही कि देवा अाज भूल रहे हैं ! बड़े लोगोंमें भूल जानेकी पादत देग्वी पर-स्त्री-संवनका पाप बढ़ता चला जाता! लागों जो होती है! आपका दोष नहीं!' के मनमे गज-भय निकल जाता। और उस सबके महागजका मन इब-सा गया! घबराकर बोलेपापका भागी होता-मैं ! पूछा क्यों?' 'कह क्या रही हो चन्द्राभा ?' 'यही कह रही थी, कि अपनी ओर भी आप क्यों ?'-चन्द्राभाने पूँछ दिया ! जाग देखें। आपने भी पर-स्त्री-सेवन किया है, पाप इस लिए कि मैं गजा हूँ। गजाके ऊपर ही किया है ! क्या आपने मुझे अपनी स्त्री ममझ ग्वा सारे गज्यकी जिम्मेदारी होती है। प्रजाको ठीक है ? क्या आपने मेरे भोले, स्वामिभक्त पतिके साथ रास्ते पर चलाना गजाके कर्तव्यका एक अंग है। दग़ा कर मुझे नहीं लूटा था ? तब आपका कनून गजा-रंकी दुहाई देने वाला कानून-कहाँ गया पापी, दुष्ट, अधर्मी, अन्यायी, दुगचारी सबको था ? आपने आँखोंस देवा-मेग पति मरे विरहमें कड़ीसे कड़ी सजा देकर गज्यकी शासन-व्यवस्थाको पागल हो, मारा-मारा फिग-न्यायका दामन फैलाये ठीक तौर पर कायम रखना उसका जरूरी काम है।' हुए ! मगर गज मत्ताके आगे उसका क्या बश ?...' तो ?-तो परस्त्री-सेवन पाप होता है ! क्यों?' मधु नत-मस्तक बैठे रहे, अपराधीकी तरह । 'और नहीं तो क्या ?' सोच रहे थे-धरती फट जाए तो मैं उसमें समा जाऊँ! 'तो तुमने इसी लिए उसे सजा दी ?' दो बूंद आँसू बहाते, मॅधे-कण्ठसं बोले'हाँ!' 'चन्द्रामा ! मुझे क्षमा करदा ! बहुन बड़ा पाप किया लेकिन वह गंगेव रहा होगा कोई ? है न यही ?' र यहा। है-मैंन!' 'नहीं! वह ग़रीब नहीं, अच्छा-खासा पैसे x x x x वाला था!' । दूसरे दिन सुबह !ऐं ? पैसे वालोंको भी सजा होती है ? अयोध्याका राजा और बटपर-नरेशकी गनी __क्यों नहीं! कानून सबके लिए एक होता है। चन्दामा दानों परमतपस्वी दिगम्बर-साधुके निकट कोई राजा हो या रंक ! जो पाप करेगा, अवश्य भगवती-दीक्षाको याचना कर रहे थे, मायामाहस सजा पायेगा! कानूनके लिए गरीब-अमीरका सवाल विरक!!!
SR No.538004
Book TitleAnekant 1942 Book 04 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1942
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size73 MB
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