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________________ किरण ४] अयोध्याका राजा x X क्या है ? समझती हो-बहुन खूबसूरत हूँ, पर्ग-पैकर मंत्री चुप! हूँ-मेरीसी धरतीक पर्दे पर दूमरी नहीं ! क्यों, सोचने लगे-'महाराजको कामज्वग्ने सताया है। इसमें कुछ मठ कह रहा हूँ क्या मैं ? कामी किसकी सन्मानरक्षाका खयाल करता है? रानीको ऐसा लगा-जैसे उमके पुगने घावमें वह आपेमें ही कहाँ रहता है ? महागजन जो कहा किसीने पिमा नमक भर दिया ! वह तिलमिला गई, है, वह सब विकृत-मस्तिष्ककी बातें हैं। उन्हें स्वयं तड़प उठी ! पर, बोली कुछ नहीं। इमका ज्ञान नहीं कि उन्होंने क्या कहा ! और उधर बहुत देर तक बातें हुई । मंत्रियोंने अपना उत्तरमहागज मधुका बुरा हाल था ! वह लोकलाज, दायित्व याग्यनापूर्वक निभाया और इम ममझौते न्याय-अन्याय, यश-अपयश, धर्म-अधर्म सबका पर ममम्या स्थगिन की गई कि महागज युद्धविजय विचार भुला बैठे ! राजा जो ठहरे, बड़े गजा। उन्हें कर अयाध्या लौट चलें । इसके बाद-कुछ ही दिनक भय तो होता नहीं ! अगर वही हृदयकी प्रेरणाका अ , अनन्तर, मंत्रीगण किसी चातुर्यपूर्ण युक्तिद्वाग इतना आदर न करें, तो फिर वश किसा? कौन च चन्द्राभाका अयोध्या बुलादेंगे। वैमी दशामें उनकी कर सकता है ? स्वामित्व जो है, वह किस लिए है, इच्छापूर्ति के साथ साथ, अधिक होने वाले अयश खुले श्राम कहने लगे-'मुझे चन्दामा मिलनी भी थोड़ा वह बच सकेंगे। ही चाहिए । वह मेरे मनकी चोर है ! उसके विना मैं ^ एक मिनट भी विनोदपूर्वक-नहीं बिता मकना ! उसका मिलन हो मग जीवन है।' मधु ऋतुके प्रारम्भके दिन !___ मंत्रियोंने ममझाया-'महागज ! यह क्या कहते जब कि हरियाली नवीनताको अपना कर फली हैं ? बड़ा अयश होगा ! दुनियामें मह दिग्वाने तकको नहीं ममाती। भ्रमरोंकी गुजार मे, कोयलोंकी कूकसे जगह न रहेगी, आपके कुल की मर्यादा, पूर्वजोंकी उपबनका कोना कोना निनादित होने लगता है। कीर्ति, और आपकी न्यायप्रियना सब धूलमें मिल कुसुमसौरभको लेकर समीर भागा भागा फिरता है। जाएगी ! लोग कहेंगे समीरणम उमंग, म्फूर्तिका सन्देश पाकर मानव ____ 'लोग कहेंगे, लेकिन मेग मन तब चुप हो मौजकी अँगड़ाइयाँ ले उठता है। जाएगा. मन्तुष्ट हो जाएगा ! मुझे लोगोंकी पर्वाह तभी एक दिन वीरसेन और चन्दामा एक कारास नहीं, दुनियाकी पर्वाह नहीं! मैं ये बातें नहीं, चन्द्राभा को लेकर झगड़ रहे हैं। एक अोर दासीकी प्रार्थना को चाहता हूँ ! उसीको चाहता हूँ-जिमने मी है. दृमरी ओर पतिका अधिकार । एक ओर विवशता मनकी दुनियामें तूफान उठा दिया है ! अगर तुम उस है, दृमर्ग ओर उत्सुकता । एक ओर भविष्यको चिन्ता नही ला सकते, तो मेरे मामन पानेसे बाज़ आओ!' है, दूमरी ओर भक्तिकी-स्वामी भक्तिकी प्रबलता। -महागज मधुने बात काटने हुए, जोरदार शब्दोंमें 'देखा, लिग्या है-'वसन्तोत्सव मनानेका विशाल अपनी आन्तरिकताको सामने रखा। आयोजन किया गया है। अनेकों गजे महागजे
SR No.538004
Book TitleAnekant 1942 Book 04 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1942
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size73 MB
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