________________
अनेकान्त
[ वर्ष ४
अमली-सा बनकर ही चलना है। ग्वरे-वोटेकी जांच होगी सार्वजनिक कार्यकर्ता न तो किसीकी प्रशंसा चाहता है चाहिए । पर यह जांच कठिन जरूर है।
और न पुरस्कार | जो चाहते हैं उनको वे मिलते भी नहीं। धर्म और देश ये दो ही ऐसे क्षेत्र है, जहां सार्वजनिक परन्तु
परन्तु जननाका कर्तव्य है कि वह मार्वजनिक कार्यकर्ताओंका
कृतज्ञताके भावमे मन्मान करे, आदर करे, उनको प्रोत्साहन भावनाका उपयोग होता है तथा उसमे मचा हित होता
दे, महयोग ने, सुविधा दें तथा और निश्चिन्त करे। है। परन्तु दुर्भाग्यमे यही बड़े बई म्वार्थी अपना म्वार्थ सार्वजनिक कार्यकर्ताओंमें धैर्य, सहिष्णुता, श्राशा, माधन करते हैं। काश, हमारे बहतम नेना. कार्यकत्ता. माहम, लगन, विशाल दृष्टिकोण, उदारहृदयता, सहयोग, मभाांके पदाधिकारी और धर्मगम सच्ची मार्वजनिक प्रम,
प्रेम, नैतिकता. आदर्शप्रियता प्रादि गुण बहुत परिमाणमें भावनाम भरपूर होतं ।
होने चाहि।
सार्वजनिक मेवाके कार्य विना अहसान जताए करने चाहिये. मार्वजनिक भावना सार्वजनिक मेवाके रूपमें प्रकट होती
मार्वजनिक संवाके छोटे कार्य भी उतने ही आवश्यक हैं है1 मार्वजनिक सेवा कार्य करना, तथा उनमें सहयोग जितने कि वई। मार्वजनिक संवा अपने पामके क्षेत्रमें भी देना हर एक प्रादमीका कर्तव्य है। यदि मार्वजनिक भावना हो सकती है और नरक क्षेत्रमें भी। ममीपक क्षेत्रमै मात्रएक फूल है. नी मार्वजनिक संवा उम फलकी मगन्ध है, या जनिक सेवा करना ज्यादा आवश्यक है, पर उसमें सीमित उसमे पैदा होनेवाला फल है। विना सुगन्धका फूल
रहकर दरके क्षेत्रकी उपेक्षा करना ठीक नहीं। इसका उलटा कागजके फूल के ममान निरुपयोगी है। कभी कभी वह
रूप भी ठीक नहीं। गुप्तरूपमं सार्वजनिक सेवा करना और
भी अच्छा है। सजावट या नुमायशका काम जरूर देता है। परन्तु निरी
मार्वजनिक भावना और मार्वजनिक सवाकी जितनी मार्वजनिक भावना किमी कामकी नहीं । बीजरूपमे वह जरूरत पहले थी. अाज उसमे कहीं अधिक ज़रूरत है। श्राज अछी है, परन्तु वह सार्वजनिक भावना एक अशक्त या हमारी समस्या जटिल हैं और मर्वजन-हिनके कार्य महान उगनेकी शक्तिदिन बीजक ममान न रहनी चाहिए । "ब अनक थोड़ा-बहुत सार्वजनिक काम समय, स्थान (Locality)
सार्वजनिक कामांको करनेका बड़ा साधन मार्वजनिक
मांस्था या सभा होती हैं। इनके बिना काम होना कठिन या जनताकी आवश्यकताके मुताबिक और अपनी शक्तिके
है। पर ऐसी संस्था अच्छी और खराब Bogus) भी हो अनुम्मार हर एक श्रादमीको करना ही चाहिए । सार्वजनिक सकती है। कछ स्वार्थी लोगीन इनमेंसे बहुतोंको दलबन्दीकी काममि हर एक पादमीको मन-मन-धनमे महयोग ना दलदल में फँमाया हुया है और उन्हें अपने स्वार्थ साधनके चाहिय । सार्वजनिक कार्यकताकोबीवरी करिता अह बना रखा है। ऐसी सभात्री तथा कार्यकर्ताओंकी
समालोचना करके जनमनको उनके विरुद्ध नय्यार करना गुजरना पड़ता है, बसी बड़ी पराक्षाग्रीमेमे गुजरना पड़ना चाहिए, ताकि उनका सुधार होकर उनसे ठीक फल की प्राप्ति है।इनमे कभी घबराना न चाहिए | माहम निर्भीकता, होमके। वीरना, चतुराई नया कुशल मि इनको पार करना चाहिए। संक्षेपमें यही कहा जासकता है कि माजिनिक भावना पन्चे सार्वजनिक कार्यककी देर या सवेरमें कदर जरूर और सार्वजनिक संवा दो ऐसी बातें हैं जिनकी भाजबहुत होती है और जनता उसकी बात मानती है।
ज्यादा आवश्यकता है और जिनका अनुष्ठान हर एक व्यक्ति को करना चाहिए।
मनावद, ता.२६-४-"