________________
किरण ४ ]
परिभद्र-सरि
२५६
क्षमा मांगता हुमा पुनः वूसरे मासके अंतमें आहार राजकुमारके यहाँ जाता है, लेकिन राजकीय पाकके लिये निमंत्रण देता है। नियमानुसार तापम पुनः स्मिक और अविस्व घटनामोंके संयोगोंके कारण दूसरे मासके अंतमें आहारके लिये राजाकं घर जाता चौथी बार भी तापस पाहारसे वंचित रह जाना है. है, किन्तु इस दिन भी देव-दुर्विपाक कोई गजकीय वह अपनी प्रतिक्षानुसार शहरसं-प्रम्य किमी घर उत्सव पैदा हो जाता है, जिमम इस दिन भी तापस नहीं जाकर-विना पाहारकं ही स्वस्थानको लौट जाना के प्रति किसीका भी लक्ष्य नहीं जाता है; तापम है। चार चार महीनोंके अग्वंड उपवासकी क्षुधा लौट आता है और नीसरं मासिक उपवासकी प्रतिज्ञा वंदनाकं कारण उसे भयंकर क्रोध पाता है और ले लेता है । गजकुमारका तत्पश्चात विनित होता यावज्जीवन के लिये आहारका परित्याग कर देता है। है कि तापम आया था और लौट गया है । इस महाम क्रोध और प्रगाढ़ क्षुधावदनाकं कारण काषापर उसे हार्दिक दुःख होता है, और तापसकी सेवामें यिक भावोंकी भयंकर ज्वाला प्रज्वलित हो जाती है। उपस्थित होकर अपनी इम असावधानीके लिये एवं ऐसा संकल्प करता है कि जब तक मैं इस अन्तः करणसे क्षमा माँगता हुआ तृतीय उपवासकी राजकुमारके साथ इम दुष्ट व्यवहारका पृग पृग बदला ममाप्ति पर पुनः आहारकं लिये आमंत्रण देता है; अनेक जन्मों तक नहीं चुकालू तबमक मैं कदापि नापस स्वीकार कर लेता है। तीसरे मासकी ममाप्ति शांनि नहीं प्रहण कहंगा । इस प्रकार उसकी पर तापम गजकुमारकं यहाँ जाता है, किन्तु दुर्भाग्य असिधागत समान अति कष्टसाध्य संपूर्ण तपस्या में इस दिन भी कोई असाधारण गजकीय प्रवृत्ति धूलमें मिलजाती है और समाधि, भटनागवं तपस्या उपस्थित हो जाती है, किमीका भी ध्यान मापसकी के स्थान पर अनन्तानुबंधी कषायात्मक भावनाओं ओर नहीं जाता है, नापस खाली हाथ लौट आता है का माम्राज्य स्थिर हो जाता है। परिणाम म्याप नौ और अपने स्थान पर आकर शांतिपूर्वक चौथा जन्मों तक ये दोनों आत्माएँ एक दूसरे समर्गमें मासिकव्रत ग्रहण कर लेता है। पूर्ववत इस बार भी आती हैं और प्रत्येक बार अनिशर्माकी श्रात्मा गुग्ण गजकुमार तापसकी सेवामें उपस्थित होता है और सेनकी आत्माको हर प्रकारसे दुःख देती है; एवं वैर बार बार अपने इस कुकृत्यकं लिये क्षमा मांगता हुआ वृत्ति की धारा चलती रहती है। अंत में अंतिम जन्म गंभीर अनुनय-विनयके माथ चौथे मामकी समाप्ति में गुणसनकी आत्मा माविक-वृत्तियों के बल पर पर पुनः अपने घर पर भाने के लिये तापससे प्रार्थना आध्यात्मिक उन्नति करनी हुई मुक्ति प्राप्त कर लेती है करता है। तापम इस बाग्भी स्वीकृति दे देता है। और अग्निशर्माकी श्रात्मा असहिष्णुता एवं ताममिक किन्तु देवीविधान बड़ा विचित्र और अगम्य है। वृत्तियोंके बल पर अधोगतिको प्रान होनी है। इस हमारी चर्म चक्षुओंमें और मानवमेधा-शक्तिमें वह प्रकार हम कथामें ताममिक और मात्विक वृत्तियोंका बल कहाँ कि जिसके बल पर भविष्यक गूढ़ और सुन्दर चित्रण करते हुए, प्रशमग्मक मर्वोत्कृष्ट सुग्यद गंभीर गर्भावस्थामें मंनिहित घटना चक्रको जाना जा परिणामका स्वरूप बतलाते हुए; कर्ममिद्धान्नकी मके। पारणेका ममय उपस्थित होने पर मापम मामखम्णमाका सन्दर समन्वय किया गया है। भाज