SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 279
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २५८ अनेकान्त [वर्ष ४ है। किन्तु कहीं कहीं पर कुछ रूप शौरसेनीके भी गजाके यज्ञदत्त नामक एक पुरोहित था, जिसके अपाये जाते हैं। यों ना मारी कथा गद्यरूपमें ही लिम्वी सुन्दर और हास्यास्पद आकृति वाला अग्निशर्मा गई है, लेकिन बीच बीच में अनेक पद्य भी हैं । पद्य- नामकरके एक पुत्र था । राजकुमार इसको बहुत भाग अधिकांशतः आर्या छंद वाला ही है। कुछ पद्य चिड़ाया करता था और विभिन्न तरीकोंस उसे बहुत प्रमाणी, द्विपदा और विपुला छंदोमं भी मंगुफित हैं। तंग किया करता था । अंतमें राजकुमारकी इस भाषा प्रमानगुण-संपन्न और माधुर्य को लिये हुए है। कुप्रवृत्तिले तंग आकर वह पुरोहितपुत्र एक तपोवनमे कथा-संबंध भी धाराप्रवाहरूपमे चलता है और इसी जाकर तापम बन गया। मांसारिक दुःखोंके नाशक लिये पढ़ने में काव्यात्मक प्रानंदके साथ साथ परी मचि हेतु और भवमागर पार करने के लिये उसने दुष्कर ठेठ तक बनी रहती है । यद्यपि कही कहीं ममामा- तपस्या करना प्रारंभ किया । उसने प्रतिज्ञा ली कि मैं त्मक वाक्योंका भी प्रवाह चलता है, परन्तु वह पढ़ने एक एक मामा मासक्षमण करूंगा और पारणाके के प्रनि अचि उत्पन्न नहीं करता हमा पाठकका दिन-गोचरीके लिये-आहारके लिये केवल एक कथाका कला-सौन्दर्य ही प्रदान करता है। एवं ही घग्म जाऊंगा । यदि उम घरमें श्राहार नहीं लेखन-शैलीकी प्रौढ़ता ही प्रदर्शित करता है। सात्पर्य मिलंगा ता दूसरे घर में नहीं जाऊंगा और पुनः श्राकर यह है कि प्रतिसघन और बहुत लंबे लंबे समासोका एक मामका अनशन व्रत प्रहण कर लूंगा। इस प्रभाव ही है। भाषाका प्रवाह गंगाकी धाराकी सरह प्रकारकी कठोर एवं भीषण नपम्या-द्वारा वह अपनी प्रशस्त, शांन, गंभीर और सर्वत्र समान ही चलता आत्माको संयम मार्गपर चलाने लगा। हुभा दिखाई देता है । कथा भाग भी अपने आपम एक दिनकी बात है कि देवयोग ने वह गजकुमार पूर्णताको पदर्शित करता हुआ परे वेगस चलता उम उपवनमे आ निकला और अग्निशाम मिला । रहता है । यत्र तत्र अलंकारांकी छटा भी दिखाई परिचय प्राप्त होने पर अपने अपराधों के लिये क्षमा दती है । भाषा-सौंदर्यकी पोपक उपमाएँ और भाव मांगी एवं श्रद्धापूर्वक निवेदन किया कि पारणेके दिन व्यंजक शब्द-ममूहकी विशेषताएँ चित्तका हठात मेरे घरको पवित्र करनेकी कृपा करें । अनिशर्मा अपनी ओर आकर्षित कर एक अनिर्वचनीय आनंद ने स्वीकार कर लिया । यथासमय मासके अन्तमें उत्पन्न करती रहती हैं । इन्हीं सुवासित गुणोंसे अग्निशर्मा आहारके लिये गजाफे घर जाता है किन्तु भविष्यम भी इसका अधिकाधिक प्रचार और पठन म दिन राजाकं यहाँ पुत्रजन्मोत्सवका प्रसंग उप. स्थित हो जाता है और इस कारणमे इस तापसके पाठन होता रहेगा, ऐसा प्रामाणिक रूपसे कहा जा प्रति किसीकी भी दृष्टि नहीं जानी है। तापस लौट मकता है। पाना है और एक मामका बन ग्रहण कर लेता है। कथाका संक्षिप्त कथानक इस प्रकार है-निति गजकुमारको थोड़ी देर बाद मापमकं पानेकी और प्रतिष्ठित नामक नगरमें पूर्णचन्द्र नामक गजा और लौट जानेकी बात ज्ञात होती है। अपनी इम उपेक्षा कौमुदी नामक गनीके गुणसेन नामका एक पुत्र था। वृत्ति पर उसे खेद होता है और वह दौड़ा दौड़ा वह बाल्यावस्थाम ही चंचल और क्रीड़ाप्रिय था। ताफ्मके पास जाना है और इम अपराधके लिये
SR No.538004
Book TitleAnekant 1942 Book 04 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1942
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size73 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy