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________________ २० अनेकान्त आधारका ठीक पता लगाने में सफलमनोरथ हो सकेंगे, ऐसी आशा है। साथ ही यह भी आशा है कि जो विद्वान् उपाध्याय आत्मारामजी के 'तत्त्वार्थसूत्र - जैनागमसमन्वय' को लेकर यह एकांगी ( एक तरफा ) विचार स्थिर कर चुके हैं कि 'तत्त्वार्थसूत्र श्वेताम्बर आगमोंके आधारपर ही बना है' अथवा 'उसके सूत्रों की आधारशिला श्वेताम्बर परम्परा में उपलब्ध जैनागम ही हैं' उन्हें अपने उस विचारको कायम रखने के लिये अब बहुत ही ज्यादा सोचना तथा विचारना पड़ेगा | खोजको सामने रखने से पहले एक बात और भी प्रकट कर देने की है और वह यह कि, दिगम्बरीय श्रुत 'मृलाचार' में तत्रार्थसूत्रों के बहुत से बीज पाये जाते हैं, परन्तु मूलाचारका विषय चूँकि अभी विवादापन्न है - उसके समय तथा कर्तृत्व-विषयका ठीक निर्णय नहीं हुआ - इस लिये खोजमे उसपर से बीजों का संग्रह नहीं किया गया। मूल चारकी कुछ पुरानी प्रतियों में उसे कुन्दकुन्दाचार्यका बनाया हुआ लिखा है । कुन्दकुन्दाचार्यके ग्रंथोंके साथ उसके साहित्यादिका मेल भी बहुत कुछ है, और धवला टीका में 'तहा आयारंगे वि वृत्तं' जैम वाक्यके साथ जिम गाथाको उदधृत किया गया है वह उसमें पाई जाती है - श्वेताम्बरीय आचाराङ्गमें नहीं । नाम भी उसका वास्तव में 'आचार' शास्त्र ही जान पड़ता I इससे टीकाको 'आचार-वृत्ति' लिखा है । आचारकं पूर्व 'मूल' शब्द बादका जोड़ा हुआ मालूम होता है— मूलग्रंथ परसे उसकी कोई उपलब्धि नहीं होती । जिस प्रकार भगवती आराधनाकी टीका लिखते समय पं० श्रशाधरजीनं अपनी टीकाको 'मूलागधनादर्पण' नाम देकर ग्रंथके नामके साथ 'मूल' विशेष जोड़ा है उसी प्रकार किसीटीकाकार के द्वारा 'आचार' नामके साथ यह 'मूल' विशेषण जोड़ा गया जान पड़ता । बाकी 'आचार' यह नाम [ वर्ष ४ द्वादशांगवाणीके प्रथम अंग (आचाराङ्ग) का है ही। अतः धवला द्वारा 'आचाराङ्ग' नामसे इसका उल्लेख इस ग्रंथके अतिप्राचीन हानको सूचित करता है । कुछ भी हो, इस विषय में प्रोफेसर ए० एन० उपाध्याय आजकल विशेष खोज कर रहे हैं और अपनी भी खोज जारी है। यदि खोजसे 'मूलाचार' ग्रन्थ कुन्दकुन्दकृत सिद्ध हो गया अथवा यह स्पष्ट हो गया कि इस ग्रन्थका निर्माण तत्त्वार्थ सूत्र से पहले हुआ है तो इस ग्रन्थ परसं भी तत्त्वार्थसूत्र के बीजों का वह संग्रह किया जायगा जो इस समय छोड़ दिया गया है । * ऐसी एक प्रति 'ऐलक पन्नालाल सरस्वतीभवन' बम्बई में भी मौजूद है। अब तत्त्वार्थ सूत्र के बीजों की खोज अध्यायक्रम और सूत्रक्रमसे नीचे दी जाती है। जिन सूत्रों के बीज अभी तक उपलब्ध नहीं हुए उन्हें छोड़ दिया गया है । तत्त्वार्थक सूत्रोंको मोटे टाइपमें ऊपर रक्खा गया है और नीचे उनके बीजसूत्रोंका दूसरे टाइपमे दे दिया गया है । षट्खण्डागमके सिवाय और जितने ग्रन्थोके नाम बीज सूत्रोंके साथ में, उनका स्थान निर्देश करनेके लिये, उल्लिखित श्री कुन्दकुन्दाचार्य के ग्रंथ हैं। पट्खण्डागममें एक एक विषयके अनेक बीजसूत्र भी पाये जाते हैं, जिनमें से कुछको लेख बढ़ जानके भय से छोड़ दिया है और कुछका ले लिया गया है । उदाहरण के तौरपर कर्मप्रकृतियों का विषय जीवस्थान (प्रथमग्वण्ड) की 'प्रकृतिसमुत्कीर्तन' नाम की प्रथमचूलिका में आया है और चौथे खण्डम प्रारम्भ होनेवाले 'कदि' आदि २४ अनुयोगद्वारों में से पर्याड (प्रकृति) नामके अनुयोगद्वार में भी पाया जाता है; यहां 'पडि' अनुयोगद्वार से ही उस विषय के बीजसूत्रों का संग्रह किया गया है। अनेक बीजसूत्र ऐसे भी हैं जिनमें विवक्षित तत्त्वार्थसूत्रका एक एक अंश ही पाया जाता है और वे इस बातको सूचित करते हैं कि वह तत्त्वार्थसूत्र अनेक बीजसूत्रों का ५ शय लेकर बनाया गया है, उनमें से जिनजिन अंशों के बीजसूत्र मिले हैं उन्हें साथमें प्रकट कर दिया गया है और शेष के लिये खोज जारी है :
SR No.538004
Book TitleAnekant 1942 Book 04 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1942
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size73 MB
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