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________________ २४४ अनेकान्त [वर्ष ४ यह बही खेदका विषय! वीनरागदेवकी उपासनाका में सजाकर दर्शन-पूजनके लिये जाते हैं। और वीतरागताके यह कितना विचित्र और बेढंगा प्रदर्शन है !! स्थान पर खूब झार तथा सम्पत्तिकी नुमायश होती है। जिनेन्द्रदेवके दर्शन और पूजनकी भावनामें इस प्रकार भगवानकी पूजा-स्तुतिका फल वहां वैराग्य भावोंकी उत्पत्ति विकार माजाने और पकान्त पर जोर देनेका यह नतीजा नहोकर तबलेकी थाप, सारंगीके बोल, हारमोनियमके सुर, हुचा कि लोग जैनियोंको भी पत्थर-पूजक कहने लगे! इमी तान, पालाप और समके मेज़ में नाचरंगकी महफिलका समर्मा प्रकार. -सोचे-समझे अनेक रीति-रिवाज दर्शन पूजनके जाना होता है। जैनमन्दिरों में रामलीला. जन्माष्टमी तथा सम्बन्ध में प्रचलिन होगये हैं। कुछ लोगोंने यह प्रथा चला गनीमीका रंग जम जाता है। दी कि जिनेन्द्रदेवका दर्शन-पूजन रिक्त हस्त या नंगे सिर इस प्रकारका एकान्त जोर पकड़ना जाता है. वीतरागता करनेम दोष लगता है, तथा दर्शन-पूजन बहु मूल्य द्रव्योंबबाभूषणोंमे इन्द्रके समान सज-धज कर और भगवान पर मरागताकी गहरी पुट चढनी जाती है और सर्वत्र अपने ममत्र भेंट करके करना चाहिये । इसका परिणाम यह हुआ ध्येयमे च्युति ही च्युति नजर पानी है । अत: जैन जननाको कि स्त्री-पुरुष ङ्गार करके चोर भांति भांनिक व्यंजन थाली शीघ्र ही इस विषय मावधान होना चाहिये । कब वे सुखके दिन आएँगे ? [श्री पं० काशीगम शर्मा 'प्रफुल्लिन'] इम उजड़े भारत - उपवन में, तप्त-हृदय वसुधा - मानाकीपतझड़का क्या अंत न होगा? कग्नेको शीतल. कृश-काया: • कण-कणको विकमानेवाला ग्रीपम बीत, वर्षा होगीक्या वह मधुर वमन्त न होगा? बन कर क्या न मंघकी माया ! शाग्वानो यत्तीस पक्षी का मञ्जुल स्वर विम्बगएँगे? । उलवामी श्राहाके बादल, निर्भर बन: झर-झर जायंगे! कब वे सुबके दिन श्राएँगे? कब वे सुग्बके दिन श्राएँगे? घोर निगशा - महानिशाका, पगधीनके, चिर - बन्दीके : दर अँधेग कब तक होगा ? कट जाएँगे कब तक बन्धन ! अन्तर-तममें जान-इन्दुका अमर - शहीदोका भारतकेशुभ्र उजाला कब तक होगा? गाएगा कब जग, अभिनन्दन! मरझाये मन-मानम-मरके कमल प्रफुल्लित हो पाएंगे! राष्ट्र-प्रेमकी मुख-गङ्गामें, मनकी लहरें छलकाएँगे! कब वे मुखके दिन श्राएँगे! कब वे सुम्बके दिन श्राएँगे? एक-एक कर मिट जाएँगे, कब तक ये दुर्भाव हमारे , हिन्दू, मुस्लिम, सिकरव, :माई-भारत-माताके सुन मारे । अाजादीकी मज-लता पर, भृत 'प्रफुल्लित' मँडरायेंगे ! कब वे मुखके दिन पाएँगे ?
SR No.538004
Book TitleAnekant 1942 Book 04 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1942
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size73 MB
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