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________________ कविराजमल्लका पिंगल और राजा भारमल्ल [सम्पादकीय ] अनेकान्त की गत दूसरी किरणमें कविराजमलके निवास थे, संघके तिलक थे और सुरेन्द्र के समान थे उन्हींकी 'पिंगल' नामक छंदोविद्या-ग्रंथका कुछ परिचय देते हुए यह वंश-परम्परामें धर्मधुरंधर राजा भारमल्ल हुए हैं-- बतलाया गया था कि यह ग्रंथ राजा भारमल्लके लिये पढमं भूपालं पुणु मिरिमालं सिरिपुरपट्टणा वासु, मिखा गया है और इसमें उनका कितना ही ऐतिहासिक पुरणु प्रायूदसिं गुरुवापसिं सावयधम्मणिवासु । परिचय छंदोंके लक्षणों तथा उदाहरों में खण्डशः पाया धणधम्महरिगलयं संघहतिलयं रंकागर सुरिंद, ता वंसरंपर धम्मधुरंधर भारहमलणरिंदु ॥११६।। जाता है। इस लेखमें राजा भारमालके परिचय-सम्बन्ध में (२) भारमल्लकी माताका नाम 'धरमो' और श्रीका मिर्फ इतना ही प्रकट किया गया था कि वे नागौरी तपागच्छ नाम 'श्रीमाला' था, इस बातको कविराजमल एक अच्छे की अाम्नायके एक सदगृहस्थ थे, वणिक्संधके अधिपति थे. अलंकारिक ढंगमें व्यक्त करते हुए लिम्बने हैं-- 'राजा' उनका सुप्रसिन्द्र विशेषण था, श्रीमालकुल में उन्होंने म्वाति वंद सुग्वर्प निरंतर, मंपुट सीपिधमा उदरंतर । जन्म लिया था, 'संक्याणि' उनका गोत्र था और वे 'देवदत्त' जम्मो मुकताहलभारहमल, कंठाभरणमिर्गवलीवल । के पुत्र थे। आज इस लेख में राजा भारमल्लका कुछ अन्य इसमें बतलाया है कि सुर (देवद) वर्षाकी स्वातिब्द ऐतिहासिक परिचय भी संक्षेपमें संकलित किया जाना है जो को पाकर धरमोके उदररूपी सीपसंपुटमें भारमल्लरूपी उक्त पिंगलग्रंथ परसे उपलब्ध होता है। साथमें यथावश्यक मुक्ताफल उत्पन्न हुआ और वह श्रीमालाका कराठाभरण कछ परिचय वाक्योंको भी उन्धत किया जाता है. और बना । कितनी सन्दर कम्पना है! गलग्रथम वाणत छदाक कुछ नमूने भी पाठकों (३) भारमल्लके पुत्रों में एकका नाम 'इन्द्रराज' और के सामने पाजाएँगे और उन परमे उन्हें इस ग्रंथकी साहि- दुसरेका 'अजयराज' थास्थिक स्थिति एवं रचना-चातुरी आदिका भी कितना ही इन्दगज इन्द्रावतार जसुनंदनु दिट्ट, परिचय महज हीमें प्राप्त हो जायगा:-- अजयगज गजाधिगज मवकज्जगन्।ि म्वामी दाम निवासु लच्छिबह साहिममारणं, (१) भारमलके पूर्वज 'रंकागउ' थे, वे प्रथम भूपाल मोयं भागहमाल हेम-हय-कंजर-दानं ।। १३१ ।। थे, पुनः श्रीमाल थे, श्रीपुरपट्टणके निवासी थे, फिर बाबू देशमें इन दोनों पुत्रों के प्रतापानिका कितमाही वर्णन अनेक गुरुके उपदेशको पाकर श्रावकधर्मके धारक हुए थे, धन-धर्मके पचों में दिया है। और भी लघुपत्र अथवा पुत्रीका कुछ उल्लेग्व * आपके सहयोगसे तपागच्छ वृद्धिको प्राप्त हुअा था, ऐमा । जान पड़ता है परन्तु वह अस्पष्ट हो रहा है। निम्न वाक्यसे स्पष्ट जाना जाता है (४) राजा भारमल नागौर में एक बहुन बई कोव्याजलणिहि उवमाणि श्री नपानामगच्छिं। धीश ही नहीं किन्तु धनकुबेर थे. ऐमा मालूम होता है। हिमकर जिम भृपा भूपती भारमल्ल: ।। अापके घरमें अटूट लक्ष्मी थी. लपमीका प्रवाह निरन्तर
SR No.538004
Book TitleAnekant 1942 Book 04 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1942
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size73 MB
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