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________________ किरण ३ ] गोम्मट के बाद ही व्यवहारमें आया है तो यह बात प्रामानी यद्यपि चामुण्डरायके सम्बन्धस 'गोम्मट' एक से विश्वास किये जानके योग्य हो जाती है कि यह विशेषसंज्ञा (निजी नाम) है, फिर भी देखते हैं कि मूर्ति बतौर गोम्मटेश्वरके (गोम्मटस्य ईश्वरः तत्पुरुष इस शब्दका क्या अर्थ है और इसके शाब्दक ज्ञान समास) 'गोम्मटके देवता' के इस लिये प्रसिद्ध हुई है पर क्या कोई प्रकाश डाला जा सकता है । हमारे पास क्योंकि इस चामुण्डरायने, जिमका अपर नान इस बातका कोई प्रमाण नहीं है कि 'गोम्मट' 'गाम्मट' है, बनवाकर स्थापित किया था। बहुनसे अथवा 'गुम्मट' शब्द संस्कृतसं निकलता है । 'गोमट' एस देवताओंके उदाहरण मिलते हैं जिनके नाम रूप जो बल्गोल के देवनागरी शिलालेग्वोंमें खास तौर मन्दिरोंके संस्थापकांक नामोंका अनुसरण करते हैं। संपाता है, वह इसका मंकृत उच्चारण '६ के निकट नीलकण्ठेश्वरदेव लक्ष्मणेश्वरदेव, और शंकेश्वरदेव लानका प्रयत्नमात्र है । भारतकी आधुनिक भाषाश्रो एस नाम हैं जो कि नीलकण्ठ नामक (शक १०५१) मे मराठी ही ऐसी भाषा है जिसमें यह शब्द प्रायः लक्ष्मण और शंकर चमनाथ के द्वारा प्रतिष्ठित व्यवहृत हुआ है और अब भी इसका व्यवहार चालू देवताओंका दिये गये हैं। पार 'गोम्मटसार' नाम है। इसलिये दिया गया क्योंकि यह धवलादि ग्रन्थाका 'दृष्टांत-पाठ' ग्रन्थकं मूलमें, जाकि प्रायः शक सार था, जिस नेमिचन्द्रन नस तौर पर 'गोम्मट' १२०० का कहा जाता है, 'गोम्मट शब्द आता है:चामुण्डगयके लिय तैयार किया था। जब एक बार (१) वाग्वटें करीतसांतां कव्हणी गोमटेयातें न पर्व । बल्गालकी मूर्तिका नाम गाम्मटेश्व' पड़ गया तो गोमटे करीतसानां कव्हणी बोटे यातें न पर्व ।। दृष्टांत १०१। शनैः शनैः यह नाम कर्मधार यसमासके तौर पर (२) तो म्हण । कैसाबापुडा । गांग गामटा । धारे समझ लिया गया (गोम्मटश चामो ईश्वरः)" और आर धाकुटा ।गणीयचा पूत ऐसा दीसतु अने ॥ष्टांत१३, ब दम बाहबलि की दूसरी मूर्तियोंक लिय भी जा (२) यह शब्द ज्ञानेश्वरी (शक १२१२)में बार बार कारकल और वेणूरमें है, यह नाम व्यवहन हुआ। व्यवहत हश्रा है, और मिस्टर पैन पहिले ही ऐसे यह एक तथ्य है कि वे बेल्गोल-मृर्तिकी नक़ल हैं। उल्लेखों मेंस कुछका नोट किया है। यहां मैं कुछ १४ के.जी.वृन्दनगर: उत्तरीयकरनाटक और कोल्हापरस्टेटके वाक्यांश उधृत करता हूँ। शिलालेख, कोल्हापुर १६३६, पृष्ठ १८, ६५.४० श्रादि। १६ E. C. II. Nos. 19.2, 248, 277, वास्तबमें १५ गोम्मट माधारण अर्थोंमें प्रसन्न करने वाला; देखो, इसका यह मतलब नहीं है कि कन्नड वर्णमालासे लिखे E. C. JI. No. २३४ (A. O. 1180) पंक्ति हुए संस्कृत और कन्नड शिलालेखामें 'गोमट' शब्द नही ५२, जहां यह शब्द प्रसन्न करने (Pleasing) मिलता। के अर्थमें पाया है। सम्भवत: इसका अर्थ अत्युत्तम १७दन वाक्याशोके लिये में अपने मित्र प्रो० वी० बी० कोलटे (excellent ) भी है. देखो E. C. II. No अमरावतीका श्राभारी हैं। २५१ (A.D.1118), पंक्ति ३१. प्रथमबार व्यवहृत १८देखो, उसकी कन्नड पुस्तिका 'श्री बाहबलि गोमटेश्वर और नं० ३४५ (A.D.1159) पंक्ति ५०, द्वितीयबार चरित्र', मंगलोर १६३६ पृष्ठ ३०, फुटनोट २७ । व्यवहृत । मैंने उन पाठोको अागे उदधृत किया है। १६ वी० के० रजवाड़े 'ज्ञानेश्वरी'. धुले, शक १८३१ ।
SR No.538004
Book TitleAnekant 1942 Book 04 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1942
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size73 MB
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