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________________ २३२ अनेकान्त [ वर्ष ४ (1; जैसें आंधलया अव्हांटा। का माजवणदान (१. तुम्ही मगठे लोक श्रापले आदा तुम चे मर्कटा । तैसा उपदंशु हा गोमटा । श्रोडवला गोमटे व्हावे म्हणून पष्टच तुम्हांम लिहिल अम । अम्हां ।। ३.९ मर्व प्रकारे तुमचे गोमटें फान, विमी आम्हां () हे सायाम देवां माटे । अाता कैसनि पां येकोल पासून अंतर पडतरी व मागील दावियाचा किंतु __फीटे । म्हणौनि योगी मार्ग गामटं । शाधिलं आम्हा मनांतून टाकीला विमी श्राम्हाम श्री देवाची दोन्ही ॥८-२४३ श्रागण अस। (3 तैम मी वांचूनि काहीं । अणिक गामटें चि नाहीं। (३) आम्ही मर्व प्रकार तुमचे गाम करावयासी ____ मज चि नावें पाई । जीणें टेविलं ।। ५.३३२ अंतर पडा नंद ऊन । (4) वोग्वटें ना गामटें । या कादमया ही न भेटे। यह (गोमट) शब्द इन वाक्योंमे वाक्य प्रसंगम गनि देय न घटे । सय जैमा ॥ १०-५६४ म्वयं अपनी व्याख्या कर मकना है। अाधुनिक ( तेया परी कपिध्वजा । या मरणार्णवा समजा। मगठी में इसका अर्थ 'बरं करण', 'भलाई करना है। पासोनि 'नगनि वाजा । गोटिया ॥ १३-१८४८ वास्तवम उमी पत्रम एक वाक्य मिलता है जो उपर (6 नाना सद्रव्ये गोमटीं । जालयां शगंग पैठी। लिग्वे अर्थका दृमरे शब्दों में व्यक्त करता है। हाउनि ठाकनि किरीटो । गल, चि जेवि ॥१८-७४ . (१) आपल्या जातीच्या मगठिया लोकांच उदारहणों की संख्या प्रामानी बढाई जासकती वर करावं ह आपणाम उचित आहे । है । फिर यह शब्द 'अमृतानुभव' में भी आया है:- इसका यह अर्थ है कि शिवाजा उनकी मामाजिक ।!। महाय श्रात्मविदोचे । करावया आपण वेचे। व गजनैतिक भलाई के लिये, संक्षेपमे मबकी भलाई गामट काय शब्दा च । एकैक वानू ।। ६-११ के लिय भावना करते हैं। (३) 'भास्कर' (शक ११९५) के शिशुपालवध" (५) मिस्टर पैन पहिले ही 'तुकागम'के 'अभंगा' में भी हमें यह शब्द व्यवहत मिलता है : मंस, जो प्रायः करके इस शब्दका व्यवहार करते हैं, 11) संगवगं निहटी घातली मानकेतकीची ताटी। एक उदहारण नीट किया हैवर्ग मांडवी उभिला गोमटी । पांच वर्णेया (१) जड़ानी गोमटी नाना रत्ने । १०० परागाची ।। ६५२, आज भी मगठी में हम 'गोग गामटा' का (४) 'गोमट' शब्द मगठाकालमें आमतौर पर महावग मिलता है, और काई शंका करता है कि इस्तेमाल किया जाता था, जैमा कि 'शिवाजी' के क्या यह मत्र प्रकारमं एक जोड़ा अथवा डबल समकालीन पत्रोंमें इसके प्रयागसे देखा जाता है। प्रयोग है। ऊपरक प्रयोग, जो वैम ही विना किमी इ० सन १८७७ के एक पत्र में जा शिवाजी न क्रमका ध्यान रक्ख हुए छांटे गए है, यह दिग्यानक 'मलोजी घोरपद' के नाम भेजा था, हम तीन लिये काफी हैं कि 'गोमट' शब्द मराठी में एक विश वाक्य मिलते हैं : षण है और इसका अर्थ है 'माफ', 'सुन्दर', २.के. के. गरटे 'श्री यमतानभव'. बम्बई PROR 'आकर्षक' 'अच्छा' आदि । 'कोंकगी' भापामें भी २१वी० ऐल० भवे 'शिशुपाल-वध', थाना शक १८४८ 'गोम्टो' शब्द है, और इसका वही अथ है जो 'मगठी' २२मेरे मित्र प्रो० A. G. Pawar, कोल्हापुर ने कपा में हैं। करके मेरा ध्यान इस रिकार्ड की ओर दिलाया। कन्नड माहित्यमें इम शब्दकं प्रयोगकी ग्वाज नहीं २३ 'शिवकालीन-पत्रमारमंग्रह', जिल्द २. पृना १६३०, की गई है फिर भी श्रवणबेल्गालक शिलालग्राम पत्र. १६०१ पृए ५५६-६१ तीन वाक्य हैं और यह उल्लेख क्रमशः ई० मन १११८,
SR No.538004
Book TitleAnekant 1942 Book 04 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1942
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size73 MB
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