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अनेकान्त
[वर्ष ४
का श्वेताम्वगचार्य माना जाता है और तत्त्वार्थसूत्र होना लिखा है। अस्तु; तुलना कैसी की गई, यह पर पाये जाने वाले एक भाष्यका उन्हींका स्वोपज्ञ विचार यहां अप्रस्तुत है और वह एक स्वतन्त्र लेख भाष्य बतलाया जाता है। परन्तु श्वेताम्बर सम्प्रदाय का ही विषय है । यहाँ पर मैं सिर्फ इतना ही बतला के प्रसिद्ध माननीय विद्वान् पं० सुखलालजी, भाष्यको देना चाहता हूं कि जिन श्वेताम्बर आगमोंपरस उक्त स्वोपज्ञ मानते हुए भी, तत्त्वार्थसूत्रके अपने गुजराती 'समन्वय' में तुलना की गई है वे अपने वर्तमानरूप अनुवादका प्रकाशित करनेके समय तक और उसके बाद के लिये श्रीदेवर्द्धिगणी क्षमाश्रमणके आभारी हैंभी कुछ अर्से तक उमास्वातिको दिगम्बर या श्वेताम्बर देवर्द्धिगणीन ही उनका इधर उधर में संकलन और सम्प्रदायी न मानकर जैनसमाजका एक तटस्थ विद्वान् संशोधनादिक करके उन्हें वर्तमानरूप दिया है । और मानते थे और उनकी इस तटस्थताके कारण ही दोनों देवद्धिंगणीका यह कार्य वीर - निर्वाण मं० ९८० सम्प्रदायों द्वारा उनकी कृतिका अपनाया जाना (वि० सं० ५१०) का माना जाता है। तत्त्वार्थसूत्रके बतलाते थे। लेकिन हाल में उन्होंने उक्त सूत्रका जा कर्ता उनसे पहले हो गये हैं, जिनका ममय पं० सुख. अपना हिन्दी-विवेचन प्रकाशित कराया है उसके लालजीन भी "प्राचीनम प्राचीन विक्रमकी पहली साथके वक्तव्य में, यह सूचना करते हुए कि-"पहले शताब्दी और अर्वाचीनस अर्वाचीन समय तीसरीके कुछ विचार जो बादमें विशेष प्राधार वाले नहीं चौथी शताब्दी" माना है। ऐमी हालतमें श्वेताम्बर जान पड़े उन्हें निकालकर उनके स्थानमें नये प्रमाणों आगम-ग्रंथों पर तत्त्वार्थसूत्रकी छायाका पड़ना बहुत
और नये अध्ययनक आधार पर ग्यास महत्वकी बातें कुछ स्वाभाविक तथा संभाव्य है, और यह हो सकता लिग्वदी हैं।" स्पष्ट घोषणा की है कि-"उमाम्वाति है कि तत्त्वार्थसूत्रकी कुछ बातों का बादमें बनाये जाने श्वेताम्बर परम्पराके थे (दिगम्बरके नहीं) और उनका वाले इन आगम-ग्रंथों में शामिल कर लिया गया हो; सभाष्यतत्त्वार्थ (सूत्र) सचेल पक्षक श्रुतके आधार परन्तु यह नहीं कहा जा सकता कि तत्त्वार्थसूत्रके पर ही बना है।" पं० जीके इस विचार-परिर्वतनका मूलाधार वर्तमानकं श्वेताम्बर्गय आगम-ग्रंथ हैं अथवा प्रधान कारण स्थानकवासी मुनि उपाध्याय आत्माराम तत्त्वार्थसूत्र उन्हींके आधार पर बना है। हाँ, उक्त जीकी लिखी हुई 'तत्त्वार्थसूत्र-जैनागमसमन्वय' नाम तुलनात्मक समन्वय परम इतना नतीजा ज़रूर की पुस्तक जान पड़ती है, जिसमें श्वेताम्बर और निकाला जा सकता है कि तत्त्वार्थसूत्रके अधिकांश स्थानकवामी दानों मम्प्रदायोंके द्वारा मान्य ३२ विषयोंकी संगति वर्तमानमें उपलब्ध होने वाले
आगम-ग्रन्थों परस तत्त्वार्थसूत्रकी तुलना करके यह श्वेताम्बरीय आगमोंके साथ भी ठीक बैठती है, और सूचित किया गया है कि 'इन ग्रन्थों परसे आवश्यक इमलिये जो आगमोंसे प्रेम रखते हैं उन्हें तत्त्वार्थसूत्र विषयोंका संग्रह करकं तत्त्वार्थसूत्र बनाया गया है', को भी उसी प्रेमकी दृष्टिस देग्वना चाहिये ।
और जिसे देखकर पं० सुखलालजी 'हर्षोत्फुल्ल' हो जहाँ तक मैं समझता हूँ पं० सुम्बलालजीका उक्त उठे हैं और उन्होंने उसमें तत्त्वार्थसूत्रकी प्राचीन मन्तव्य अभी एकांगी है-अन्तिम निर्णय नहीं हैआधार-विषयक अपनी विचारणाका मूर्तरूपमें दर्शन निर्णयके समय उनके सामने दृसग प्राचीन साहित्य