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गोम्मट
[ लेखक प्रफेसर एन० उपाध्याय, एम० ए० डी. लिट ] ( वादक - ० मूलचन्द्र जैन बी० ए० )
'गोम्मट' शब्द दो प्रधान प्रकरणों मे आता है । बाहुबलिको तीन महान मूर्तियाँ, जो श्रवणबेलगोल, कारक और वेणूर में हैं, आमतौर पर गोम्मटेश्वर वा गोमटेश्वर ' के नाम से प्रसिद्ध हैं; और 'पंचसंग्रह ' नामक जैनग्रन्थ, जो कि नेमिचन्द्र सिद्धान्त चक्रवर्तीद्वारा प्रणीत वा संकलित है, साधारणतया 'गोम्मटसार' के नामसे पुकारा जाता है । यह एक महत्त्व की बात है कि यह शब्द दोनों प्रrरणों में द्वितीय नामोंमें आता है। ये तीन मूर्तियाँ जिम व्यक्तिका प्रतिनिधित्व करती हैं वह भुजबल, दार्बलि, कुक्कुटेश्वर इत्यादि नामोंसे जाना जाता है; और प्राचीन जैन साहित्य में, चाहे वह श्वेताम्बर हो या दिगम्बर १ यह निबन्ध बम्बई यूनिवर्सिटीकी Springer Rese
arch scholarship की मेरी अवधि के मध्य में तैयार किया गया है । २ Epigraphia carnatica II (Revised Ed.) भूमिका प्र8 10 18, 1920 ।
३ रायचन्द्र जैनशास्त्रमाला, बम्बई से दो हिस्मो 'जीवकाण्ड' (1916) और 'कर्मकाण्ड' (1928) में प्राप्य । ४ ‘अभिधानराजेन्द्र' श्वेताम्बर साहित्य के बृहत् विश्वकोशके
समान है, और इसमें 'गोमटदेव' सम्बन्धी सूचना देन हुए किसी भी प्राचीन आधारका वर्णन नहीं है। जो कुछ हमे बतलाया गया है वह यह है कि यह नाम कलिग देश के उत्तर में तो ऋषभकी मूर्तिका स्थानापन्न है और दक्षिण बाहुबली की मूर्तिका ( Vol. III Ratlam 1913, P. 934 ) दिगम्बर श्राधारांका उपयोग एपिफिया कर्णाटकाकी दूसरी जिल्द (E. C. 11 ) की मूनिका पूर्णतया किया गया है।
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कहीं भी वह गोम्मटेश्वर, गोम्मट-जिन आदि नामसे वर्णित नहीं है। इसी प्रकार उस ग्रंथको जो 'गोम्मटमार' नाम दिया गया है, वह भी उसके विषयों को सूचित नहीं करता, क्योंकि उस प्रन्थकामार्थक नाम पञ्चसंग्रह " है । बेल्गालकी मूर्ति इन तीन मूर्तियों 1 में सबसे पुरानी है और अभी तक जैनसाहित्यमे या किसी अन्य स्थानपर ऐसा कुछ उल्लेख नहीं मिला है जो यह प्रकट कर सके कि बेल्गोलकी मृर्तिक स्थापित होनेसे पहिले बाहुबल गोम्मटेश्वर कहलाते थे । इसकी स्थापनाके पश्चात् के बहुत से शिलालेखीय और साहित्यिक उल्लेख ऐसे मिलते हैं जिनमें इम मूर्तिका 'गोम्मटेश्वर' के तौर पर उल्लेखित किया है। श्रवणबेल्गाल के बहुत से शिलालेख इस मूर्तिको गोम्मटदेव + ईश्वरजिन, + ईशजिन, + ईश-नाथ. जिनेन्द्र, जिनप, स्वामि, + ईश्वर + ईश्वरस्वामि जैसे नामों से नामांकित करते हैं और कंवल 'गाम्मट' के तौर पर बहुत ही कम उल्लेख करते हैं । अक्षर विन्यास से स्वरों में कुछ भिन्नता पाई जाती है, जैसे गोम्मट, ५ द्रव्यसंग्रह ( S. B. J. I, आाग १६१६, भूमिका पृष्ठ ४० ) ।
६ बेल्गोलकी मूर्ति की प्रतिष्ठा संभवत: ६८३ A. D. मं. कारकलकी १४३२ A. D. में और बेरकी १६०४ A. D. में हुई थी।
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ये नोट एविग्रफिया कर्णाटका ( E. C. II ) की दूसरी जिल्द के इण्डेक्स ( Index) में दिये हुए उल्लेखके मेरे विश्लेषण के कमर पर हैं ।