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अनेकान्त
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मूर्तियों प्राप्त करना उतना कठिन नहीं हैं जितना कि महोदयसे मालूम हुआ कि चीजे तो सब हो जाती हैं, उनकी रक्षा करना । अाजकल मूतियोंकी चोरी खूब होती लेकिन संस्था ग़रीब है । यह सुनकर बड़ी हुँ झलाहट हुई । हैं । सुना है बहुतसे लोग मूर्तियां बेचकर उनसे धन कमाते थोड़ी-बहुत तरकारी स्वयं पैदा कर लेनेमें कौन हमार-दोहैं । यह हमारे लिये अत्यन्त लज्जाकी बात है। इस प्रकार हज़ारकी ज़रूरत पड़ती है। ज़मीन चारों ओर खाली पड़ी के लुटेरोंमे मूर्तियोकी रक्षा करनी चाहिये।
है और अहातेमें भी इतनी जगह है कि पचास श्रादमियोक __ (३) धर्मशाला-बाहरसे आये हुए यात्रियोंके लिये लिए अच्छी तरह भाजी पैदा की जा सकती है । हो कुछ श्रदारमें ठहरनेका उचित प्रबन्ध नहीं है। महावीर तथा बुद्धि और शारीरिक श्रमकी आवश्यकता होगी। यह हमारा अन्य तीर्थक्षेत्रों में ठहरनेके लिए धर्मशालाएं हैं। महावीरजी दुर्भाग्य ही है कि पढ़ाईपर अधिक जोर देकर हम शारीरिक में तो मैंने देखा कि यात्रियोको पलंग तक मिल जाते हैं। श्रमका श्री अहारमें भी मन्दिरके अहातम एक छोटीसी धर्मशाला हानी अध्यापक महोदय ध्यान देंचाहिये।
अध्यापक महोदयको यह जान लेना चाहिये कि स्वास्थ्य मूर्तिया-सम्बन्धी जो भी उल्लंग्व प्राम दी, उन तथा पढाईसे अधिक महत्त्वपूर्ण है। कहावत है, शरीर स्वस्थ हो अन्य बातोंके प्रचारके लिये एक सुयोग्य व्यक्तिको नियुक्ति तभी मन चंगा रह सकता है। अध्यापक जीका कर्तव्य है धावश्यक है। वह यात्रियोंकी सुख-सुविधाका ध्यान रखें कि वे विद्यार्थियोंके स्वास्थ्यका पूरा पूरा ध्यान रखें ।
और जो यात्री तीर्थों के दर्शन करने आना चाहे उनको प्रत्येक विद्यार्थी के लिये श्रावश्यक करदें कि वह प्रति दिन संपूर्ण सूचना भेजते रहे जिमसे उन्हें मार्गमें किसी प्रकारकी घंट-डेढ-घंटे ग्वेतमें काम करें। बच्चोको अपने श्रमसे चीजें असुविधा न हो।
पैदा करनेमें बड़ा अानन्द श्राता है। अपने हाथों बोये (४) सड़ककी मरम्मत-अहार-लड़वारीका रास्ता बीजामें जब वे कल्ले फूटते और बेल या पेड़को बढ़ते अच्छा नहीं है। कच्चा रास्ता है और ऊबड़ ग्वाबड़ । यदि
देग्वत हैं तो उनका हृदय प्रफुल्लित हो जाता है। अल्प सम्भव हो सके तो पक्की, नहीं तो कच्ची सड़क टीकमगढ़से
श्रायुके इन बच्चाको अभी संसाग्में बहुत कुछ करना है और श्रहार तक बन जानी चाहिये। बहुतसे वृद्ध या अस्वस्थ
उनके विकासका यही ममय है। दमार समाजके कोई भी यात्री मार्ग ठीक न होने के कारण तीर्थोके दर्शन-लाभमे
धनी भाई बच्चोंके दूधके लिये श्रामानीसे आठ-दम गायांकी वंचित रह सकते हैं।
व्यवस्था कर सकते हैं । यदि हमारा ममाज इतना मुर्दा हो श्री शान्तिनाथ जैन पाठशाला
गया है कि ८-१० गायोंका भी प्रबन्ध नहीं कर सकता तो मन्दिरके अहातेके भीतर ही श्रीशान्तिनाथ जैनपाठशाला
अध्यापक-महोदयसे मैं प्रार्थना करूँगा कि व पाठशालाको है, जिसमें आजकल २३ विद्यार्थी और एक अध्यापक है। वि.
बन्द कर दें। बच्चोंके स्वास्थ्यको नष्ट करनेका उन्हें कोई द्यार्थी रात दिन वही रहते हैं। मुझे यह जानकर अत्यन्त ग्वेद
अधिकार नहीं। पर नहीं, मुझे आशा है हमाग समाज हुश्रा कि उन्हें शाकभाजी और दूधके दर्शन भी नहीं होते। अभी जीवित है। अपने धर्मकी रक्षा तथा उन छोटे छोटे पहले तो मैं समझा कि पथरीली धरती होनेके कारण शायद बच्चोंकी खातिर वह उदारतापूर्वक सहायता देगा। शाक-भाजी वहाँ पैदा ही न होती ही, परन्तु बाद में अध्यापक कुण्डेश्वर, टीकमगढ़