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________________ किरण ३ ] अहार-लड़वारी २२७ जगहमें रखवा दे। हमारी काहिली और लापरवाहीका यह किया था। 'पापट निस्सन्देह एक महान कलाकार होगा। निकृष्ट नमूना है और इससे इस बातका पता चलता है कि उसकी प्रतिभा सराहनीय है। अपने श्राराध्य देवोकी कितनी कद्र हम करते हैं। ये वेही इन प्रतिमाश्रोपर जिस प्रकारकी पालिश हो रही है, उस प्रतिमाएँ तो हैं जिनकी कि मन्दिरमें हम रोज़ पूजा-श्राराधना प्रकारकी पालिशकी प्रतिमाएँ, कहा जाता है, सातवीं करते हैं। जरा अन्दाज कीजिये, अाठ सौ वर्षोंसे वे वहाँ शताब्दीके बाद कम ही मिलती हैं। कुछ लोगोका तो यह पड़ी हैं । लज्जासे सिर भुक जाता है । पाठशालाके भी कहना है कि श्राठवीं शताब्दीके बाद उसका सर्वथा अध्यापक महोदयको 'छहढाला' या 'भक्तामर' या 'दर्शन' लोप ही हो गया। यदि यह सच है तो पुरातत्त्ववेत्ताओके पढ़ानेमे इतना अवकाश कहाँ कि इस ओर ध्यान दें। यदि लिये प्रतिमाएँ अध्ययनकी वस्तु हैं। यही प्रतिमाएँ और कहीं होती तो मंग्रहालयमें शोभा पाती जैन-भाइयोंसे अपीलऔर दूर-दूरसे यात्री श्रा-श्राकर उनके दर्शन कर अपनेको यहा मैं अपने जैन-भाइयोंसे एक अपील करना चाहता धन्य मानते। हूँ । श्रहार हमारा एक बड़ा तीर्थ-क्षेत्र है। उसके गौरवको शान्ति और कुन्थु भगवानकी प्रतिमाएँ- हम यो ही नष्ट न हो जाने दें। उसकी रक्षाके लिये तन-मन___ पाठशालाके सामने अहातेके भीतर ही पत्थर-चनेका धनसे जो कुछ कर सकें, करें। नीचे लिखी बातोकी एक मन्दिर है । हाल ही का बनवाया हुआ है। देवनेमें श्रावश्यकता मुझे प्रतीत होती है:मामूली-सा जान पड़ता है। यात्री स्वप्न में भी कल्पना नहीं (१) संग्रहालय-इन प्रतिमानोंको सुरक्षित रखनेके नहीं कर मकता कि इस जीर्ण शीर्ण गुदड़ीमें लाल छिपे लिये मंदिरके समीप ही एक बड़ा-सा कमरा बन जाना चाहिए। कमरा बनाने में दो तीन हजार रुपयेसे अधिक नाथकी १८ फीट लम्बी बड़ी प्रतिमा है। उनके बगलसे खर्च न होगा। पत्थर वहाँ बहुत पाये जाते है और वैसे बाई अोर भगवान कुन्थुनायकी ११ फीटकी प्रतिमा है। भी यदि हम अपनी अकल पर पडे पत्थरों को हटाकर वही कहा जाता है कि दाई ओर भी इतनी ही बड़ी अरहनाथ रख तो एक नहीं दस कमरे बन सकते हैं। भगवानकी प्रतिमा थी, लेकिन पता नहीं कोई लुटेरा उसे हमारे जैन-समाजमें धनियोंकी संख्या कम नहीं है। उटाकर ले गया या कहीं भूगर्भ में वह विश्राम ले रही है। अत: यह कार्य सुगमतासे हो सकता है। दोनों प्रप्तिमाएँ बहुत ही भव्य हैं। उनके चेहरेका सौन्दर्य (२) पुरातत्त्वकी दृष्टिसे अध्ययनकी आवश्यकता और तेज देखकर हम अाश्चर्यचकित क्षणभर मूक बैठे मैंने ऊपर कहा है कि बुन्देलखण्ड जैन-तीर्थोंका मुख्य केन्द्र रहे। हमारे एक साथी श्री कृष्णानन्दजी गुप्तने, जिन्हें है। मूर्तियों और शिलालेखोंकी इस प्रान्तसे भरमार है। उन घूमनेका बहुत अवसर मिला है, बताया कि इतनी बड़ी सबका पुरातत्त्वकी दृष्टि से अध्ययन किया जाना चाहिये। प्रतिमाएँ तो उनकी निगाहसे गुज़री हैं, लेकिन जैनियोकी इस कार्यके लिए यहाँ कहीं भी एक पुरातत्त्व-विभाग खुल इतनी सुन्दर प्रतिमा उन्होने अन्यत्र नहीं देखी । 'मधुकर'- जाना चाहिए। उसके अंतर्गत एक-दो विद्वान निरन्तर सम्पादक भी उनके सौन्दर्यको देग्वकर मुग्ध हो गये। खोजबीन करते रहे। इधर उधर खुदाई कराकर वे नवीन प्रतिमाओंके नीचे जो प्रशस्तियाँ दी हुई हैं, उनसे पता मूर्तियां भी प्राप्त करें। सुना जाता है इस प्रान्तमें स्थानचलता है कि 'पापट' नामके शिल्पकारने उनका निर्माण स्थानपर भूगर्भ में मूर्तियाँ छिपी हैं।
SR No.538004
Book TitleAnekant 1942 Book 04 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1942
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size73 MB
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