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________________ २२४ भनेकान्त [वर्ष ४ उसके मित्रों तथा बन्धुओंके लिये बड़ा ही प्रानन्दप्रद तब उसने यह तो अनुभव किया कि यह नो विश्वकी था। इसे पृथ्वीकी आत्मा भूमि देवीके माथ विवाह सब विभूतियोंको घोषित करता है, जिनका अधिकारी होना कहा गया, कारण 'जीवक' का पूर्व चरित्र दुर्बलको दबाकर बलशाली व्यक्ति बन जाया करता विवाहोंका उज्वल प्रवाह ही तो था। है । इम विषयका अपवाद राज पर भी नहीं है । मब ___ लक्कन लंबगम्-हेमंगनाइके गज्यामनको प्रहण जगह उसने यह सिद्धान्त विजयी हाते हुये पाया कि करनेके अनन्तर गत स्वयंवरमें वगह चिन्हके बेधन 'जिमकी लाठी उसकी भैंम' । उमने देखा कि कट्टियंमें विजित हुई उसके मामाकी कन्या लक्कनैके साथ गाग्नक और उमकं स्वयंक जीवनमें यही बात उमका विवाह उत्मव हश्रा, और उसके अपने मभी उदाहृत हुई है। राज्यपद, जो इस प्रकार अनैतिक मित्रोंको ममुचित रूपमे परम्कारित उसके उप पिता नीव पर स्थित है, ऐमी वस्तु नहीं है, जिसकी लालमा गजकोय मन्मानको प्राप्त हुए । उमके मित्रोको अनेक की जाय । इस लिए उमने राज्यको अपने पुत्र के लिये भेटें दी गई। उसने कट्टियंगारमी सम्पूर्ण सम्पत्ति छोड़कर राजकीय बैभवसे मुक्त होकर अपना शेष अपने मामा 'गोविन्दगज' को दे दी। उसने अपने जीवन तपश्चगगमे व्यतीत करनेका निश्चय किया मित्र सुदंजनदेव सन्मानार्थ एक मन्दिर निर्माण इम लिए वह उम ग्थल पर गया जहाँ भगवान करवाया। इस प्रकार उसके गज्यम मब मन्तुष्ट किये महावीर थे, और उनके सुधर्म गणधग्सं आध्यात्मिक गये और देशन ममृद्धि एवं वियुक्तताका आनन्द उपदेश प्राप्त किया। जिन्होंने 'जीवक' को प्रात्मीक लिया। जीवन एवं मंयमकी दीक्षा प्रदान की। इस प्रकार मुत्ति लंबगम-जब वे मब सुग्व पर्वक जीवन 'जीवक' ने अपना अवशिष्ट जीवन ध्यानमे व्यवतीन व्यनीत कर रहे थे तब बृद्धा माता विजयान एक दिन किया और अपने ध्यान एवं तपश्चर्याके फल स्वरूप मंसारिक भोगोंका त्याग कर माध्वीका जीवन व्यतीत उमने अन्तको निर्वाण प्राप्त किया। इस तरह महान करने की इच्छा प्रगट की। इस प्रकार अपने सम्राट क्षत्रिय वीर 'जीवक' का उज्वल चरित्र समाप्त होता पुत्रकी इच्छानुसार उसने अपने अवशिष्ट दिवस है, जिनकी स्मृतिम यह महत्वपूर्ण नामिल ग्रंथ तापम श्राश्रममे भक्ति एवं आत्म सुधाग्मे व्यतीत 'तिरुत्तक्कदेव' ने बना। किये । एक दिन उद्यानमे भ्रमण करते हुए 'जीवक' इसमे ३१४५ पद्य हैं। इसका सुंदर मंकरण ने एक आश्चर्यप्रद घटना देवी। उमन एक मर्कटको 'नचिनारकिनियर' की मंदर टीका सहिन इस समय अपनी मर्कटीके माथ मानन्द जीवन व्यतीत करत उपलब्द है, और यह संस्करण प्रसिद्ध विद्वान हुए देग्वा । उसने शीघ्र ही दंग्या कि मर्कट एक मधुर महामहोपाध्याय डा० बी० 'स्वामिनाथ अप्पर' के पनस फल मर्कटीको प्रदान करनं लाया। उमी क्षण द्वाग प्रकट हुआ है, जिन्होने अपना सारा जीवन वन पालकने उम पनस फलको मर्कटकं हाथमे देखकर दुर्लभ तासिल ग्रंथोंके प्रकाशनमे व्यतीत किया है। मर्कटको दंडित कर उसके हाथमे वह फल छीन अब हमे पांच लघुकाव्योंके सम्बंधमें विचार लिया और उसे खा गया। जब जीवकने यह देखा करना चाहिये जिनके नाम यशोधर काव्य
SR No.538004
Book TitleAnekant 1942 Book 04 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1942
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size73 MB
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