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________________ २२२ अनेकान्त [वर्ष ४ प्राप्त करने के लिये उनकी सलाह एवं सहायता लो। सम्बन्धमें जाननेकी इच्छा प्रगट की। सब जीवकने उसने अपनी माताको कुछ तापमनियों के साथ अपने उन्हें बताया कि उसने बगिगक कन्या 'विमला' के साथ मामाके यहां भेज दिया, और वह अपने मित्रोंके विवाह किया है नब मचने उसे बधाई देते हुए कहा साथ 'राजमहापुरम' की ओर चला गया । उन सबने कि तुम सच्चे 'काम' हो । किन्तु उमकं अन्यतम मित्र नगरके समीपवर्ती उद्यानमें अपना डेरा डाला । 'बुद्धिषेण' ने इस साधारण कार्यके लिए बधाई देनकी दूसरे दिन जीवकन अपने मित्रोंको वहां ही अनिच्छा प्रक्ट की, कारण उम नगर में एक छोड़कर. कामदेवको भी अपनी ओर आकर्षित करने 'सुग्मंजरी' थी, जो पुरुपके मुग्वका देग्वना तक पसंद बाले मोहक रूपको धारण कर नगरमे प्रवेश किया। नहीं करती थी; यदि जीवक उसके साथ विवाह करन जब वह नगरकी एक मड़क परम जा रहा था, नब में सफल हो गया, ना वह मच्चे कामदेव के रूप में उमके मामने 'विमला' आई जो कि मड़क परस उसका बधाईका पात्र होगा। जीवन चुनौती स्वीकार अपनी उस गेंदको उठानेको दौड़ी थी जो खेलते की । दूसरे दिन उमन अत्यन्त वृद्ध ब्राह्मण भिक्षुक का समय बाहर चली गई थी। उम मोहक जीवकका आकार बनाया और 'सुमंजरी' के द्वार के सामने दर्शन कर वह उसके प्रममै आवद्ध हो गई। वह प्रकट हुश्रा । सुरमंजरीकी दामियोंने अपनी म्वामिनी 'सागरदत्त' नामक वणिककी कन्या थी । जीवक स निवेदन किया कि एक वृद्ध ब्राह्मण भिक्षुक भोजन श्रागे जाकर मागरदनकी दुकान पर विश्राम के लिये की भिक्षा निमित्त द्वारपर पाया है । सुरमंजरीन, यह बैठ गये । दुकान में शक्कर का बड़ा भाग ढेर बहुत न सोन कर कि एक वृद्ध और अशक्त भिक्षुक ब्राह्मण के दिनसे बिना बिका हुआ पड़ा था, वह दूकान पर उस निमित्तसं उमका व्रत भंग नहीं होगा, अपनी दामियो आगन्तुकके पाते ही तत्काल हः बिक गया। सागर को आज्ञा दी कि उम वृद्ध पुरुषको भवनम लायो । दत्तने इस बातको शुभशकुन समझा, कारण पहले वहाँ यह वृद्ध भिक्षुक मम्माननीय अतिथिके रूपमे उसे ज्योतिपियोंने बता दिया था कि-'जिसके आने ग्रहण किया गया और उसे उसने अपनी शक्तिभर पर दुकानका बिना बिका हुआ माल बिक जायगा उत्तम भोजन कराया। श्राहारकं अनंतर ब्राह्मणने बद्दी उसका उपयुक्त जामाता होगा।' उसने प्रमन्नता एक सुंदर पलंग पर विश्राम किया जो उसके लिए ही पूर्वक इस सुन्दर युवकको अपनी कन्या 'विमला' बिछाया गया था। कुछ समयकी निद्राके अनंतर विवाहमें प्रदान कर दी । जीवकन विवाहमे 'विमला' उसने एक बहुत ही सुन्दर गीत गाया जिसे 'सुमंजर्ग' को स्वीकार किया और उसके साथ केवल दो दिन ने जीवका गात निश्चय किया। इस गीतन उममे व्यतीत किये और तीमरे दिन प्रभान समय वह अपने लिये जीवकको विजित करनेकी पुरानी नगरके बाहर के उद्यानमें स्थित अपने मित्रोंके पास आंकाक्षाका जागृत कर दिया। उमने यह निश्चय वापिस चला गया। किया कि दूसरे दिन वह कामदेवके मंदिग्मं जाकर सुरमंजरी लंवगम्-उसके मित्रोंने जीवकमें नवीन इमलिए पूजा करूँगी कि उसे 'जीवक' पनिरूपमें वरफे चिन्ह देख सके नवीन विवाहविषयक विजयके प्राप्त हो जाय । ब्राह्माण भिक्षुकका रूपधारण करनेके
SR No.538004
Book TitleAnekant 1942 Book 04 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1942
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size73 MB
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