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________________ किरण ३] तामिल भाषाका जैनसाहित्य का किसीको भी पता नहीं चला । इमसे नव वधू तीव्र उत्कंठा प्रगट की । उन्होंने एक मासके कमश्रीको अमीम दुःख हुआ। भीतर एमी भेंट कगनेका वचन दिया और तवपल्ली ___कनकमालेयार लंबगम-पश्चात जीवक मध्यदेश कोलाड जीवककी ओर प्रस्थान किया। जब कि के हेमपुरमे पहुंचा । नगरके बाहर के उद्यानमें पहुंच 'जीवक' अपनी नई वधू 'कनकमालै' के साथ रहरहे कर उसे हेमपुरके नरेश उदमित्तनकं पुत्र 'विजय' थे तो उन्होंने जीवकसे मिलने के लिए नगरको घेरने मिले । यह विजय बाणके द्वारा उद्यानके आम्रवृक्ष की चेष्टा की। अपने चचेरे भाई 'नंदत्तन' के साथ परमे एक श्राम प्राप्त करनेका प्रयत्न कर रहा था। 'जीवक' ने विशाल मंना एकत्रित की और धेरने किन्तु वह मफल नही हुआ । नव श्रागत व्यक्ति वाली मनासे युद्ध में मिलनेके लिए वह रवाना हुआ। 'जीवक' ने पहले ही निशानमे उस फलको नीचे पदमहनने, जो कि बाह्य संनाका अधिकारी एवं गिग दिया । इम पर विजय बहुन हर्षित हुश्रा; और जीवकका एक मित्र था, प्रथम बाण छोड़ा. जिममे उसने उम आगन्तुक श्रानका ममाचार अपने पिता एक मंदेश बँधा था और उसके द्वारा जीवकको महाराजसे निवेदन किया। जीवकमे मिलकर राजा बहुत आनन्दिन हुआ और उमने जीवकम अपने अपना परिचय और पानेका कारण सूचित किया । पुत्रोंको धनुर्विद्यामे शिक्षा प्रदान करनेकी प्रार्थनाकी। जब वह बाण जीवकके चरणोंके पास गिरा, तब जीवक शिक्षणकं फलम्वरूप सब पुत्र धनुर्विद्यामें उसने उसे उठाकर वह मंदेश पड़ा और बहुत प्रवीण हो गए, तब गजाने कृतज्ञता एवं प्रानन्दकं आनंदिन हुआ । यह परिज्ञान कर कि वे सब उसके वशवर्ती होकर अपनी कन्या 'कनकमालै' का विवाह मित्र हैं, उसने उनको नगरमें आमंत्रित किया और जीवक साथ कर दिया। वह कनकमालैक माथ उनका गजा एवं श्वसुरसे परिचय कराया। जब कुछ काल पर्यन्त रहता रहा। इस बीचमें उसके जीवकको अपने मित्रोंसे अपनी मानाका हाल ज्ञात चचेरे भाई नंदत्तनने उमका पता न प्राप्तकर उसकी हुआ तथा माताकी उमम मिलनेकी उत्कंठा विदित खोजमें जाने की इच्छा की । विद्याधर कन्यका एवं हुई, तब उसने नरेश एवं अपनी पत्नी कनकमालेसे जीवककी प्रथम पत्नी गंधर्षदत्ताने उस समय जीवक अपने पिताके पास रहनेको कहा तथा, जानेकी का ठीक पता बताया। अपनी विद्याकी सहायतासे इजाजत लेली। वह अपने सम्पूर्ण मित्रोंके माथ उमने नंदननको हेमपुर पहुंचानेको व्यवस्था की, अपनी वृद्धा मातामे भेंट करनेके लिए नगरसे ग्वाना जहां कि जीवक अपने मित्रों के साथ ठहरा हुआ था। हुा । जीवक अपने साथियोंके साथ दंडकारण्यमे जीवकके अन्य मित्र भी उमकी म्बोजमें निकले । मार्ग पहुंचकर अपनी वृद्धा मातासे मिला। बहुत समयके में उन्हें तवप्पल्लीमे वृद्धा महागनी 'विजया' विछोहकै कारण 'विजया' ने बड़े भाग हर्षके माथ मिली । उम नवजात शिशु जीवकका आलिंगन किया। इस प्रकार उसने तवपल्ली में अपनी श्मशान भूमिमें छोड़नेके समयसे लेकर उम माताके पास ६ दिन बिताए। माताने अपने पुत्रको वक्त तक जो जो घटनाएँ जीवककं साथ घटा यह सलाह दी कि तुम अपने मामा गोविन्दराजसे वे सब सुनाई गई । उमने पुत्रसे मिलनेकी मिलो और अपने पिताके छीने गये राज्यको पुन:
SR No.538004
Book TitleAnekant 1942 Book 04 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1942
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size73 MB
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