SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 239
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तामिल भाषाका जैनसाहित्य (मूललेखक-प्रो० ए० चक्रवर्ती एम० ए० आई० ई० एस० ) ( अनुवादक-पं० सुमेर चन्द जैन दिवाकर, न्यायतीर्थ, शास्त्री. बी० ए०, एल-एल. बी.) (वर्ष ४ किरण १ से आगे ) ५ पदुमैयार लंबगम्-जब 'जीवक'ने अपने घर वाहः को भेजा, गुप्तरूपधारी 'जीवक' न ही स्वयं पापिस जानकी इच्छा प्रगट की, तब सुदंजनदेवन उनको कहा कि अब उसकी बांज करनेस कोई अपने मित्रम वियुक्त होने के पूर्व उसे तीन विद्याओं प्रयाजन नहीं निकलेगा, और वह नव मामक अनन्तर का परिज्ञान करा दिया. जो कि उसके जीवनमे लाभ- म्वयं वहां वापिस पाजावेगा। इन प्रानन्दजनक प्रद हों । व य हैं-(२) कामदेवक भी द्वारा कांक्षणीय संवादोंके साथ दृत लोग वापिस पाए और उन्होंने मनोरम रूपको धारण करनेकी शक्ति (२) प्राणान्तक राजकुमारी 'पद्मा'को सांत्वना प्रदान की। इस प्रकार विषका असर दूर करनेकी सामर्थ्य (३) एवं मना- पदुमैयार लंगबम पूर्ण होता है। बांछित रूप बनाने की क्षमता। इन तीन उपयोगी ६कमशरियार लंगबम-इसके अनन्तर वह 'सक्कमंत्रों का ज्ञान करानेके अनन्तर देवने उसे वह मार्ग नाडु' देशकी नगरी केमपुरी पहुंचा, उस केमपुरीमें बता दिया, जिससे वह अपने घर पहुंच जावे । अपने सुहिग्न नामका वणिक् निवाम करता था। उसकी मित्र सुदंजनदेवके स्थानको छोड़कर उमने अनेक 'कंमश्री' नामकी एक कन्या थी। ज्योति पयोंने कहा प्रदेशोंमें पर्यटन किया और वहां अनेक आपद्ग्रस्त था कि जिस युवकको देग्वकर हम कन्याके चित्तम प्राणियोंकी उपयोगी मेवा की। अन्तमें वह पल्लव लज्जा एवं प्रेमका भाव उदित होगा, वही इसका पति देश की चंद्राभा नगरी पहुंचा। वहाँ वह पल्लवदेशक होगा। अपने जामाता अन्वेपणके निमित्त उस नरेश लोकपाल महागजका मित्र हो गया। नरेशकी वणिकने अनेक बार ऐसी परिस्थिति पैदा की, जिसमे बहिन पद्माको एक दिन मर्पने काट लिया, जब कि भविष्यद्वक्ता द्वारा कथित भावोंका कन्यामें दर्शन वह पुष्पोंको चुनने के लिए गई थी। सुदंजनदेवके दिये हो, किन्तु मफलता न हुई। अन्नमें उसने 'जीवक' हुये मंत्रके प्रभावसे जीवकने उसका विष उनार दिया। का दग्या। जब उसने अपने भवनमें 'जीवक' को इस बातके पुरस्कार स्वरूप पल्लवाधीशने अपनी 'पद्मा' आमंत्रित किया, तब यह दर्शन कर उस अपार हर्ष का विवाह उसके माथ कर दिया। कुछ माम तक हा कि. दर्शनमात्रमं कमश्री जीवक पर आसक्त ठहरने के उपरांत महमा अज्ञात रूपमें वह वहांस हो गई । उमने आनन्दपूर्वक अपनी पुत्री कमश्रीका रवाना हो गया। अपने पतिको अविद्यमान देख पाणिग्रहण मस्कार जीवक के माथ कर दिया। जीवक गजकुमारीका बड़ा दुःख हुआ । गजाने अपने अपनी पत्नीके साथ कुछ समय तक रहा। फिर जामाता 'जीवक' का अन्वेषण करने के लिये संदेश- जीवकने गुप्तरूपमें उस गृह को छोड़ दिया, इस बात
SR No.538004
Book TitleAnekant 1942 Book 04 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1942
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size73 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy