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________________ किरण ३ ] आत्म-दर्शन २९६ व्यक्तित्वकं साथ-साथ संन्यासकी महत्ताका प्रदर्शन पर गिर पड़ा। कर रहा है। कमठ अचल खड़ा था। चुप! पता नहीं, किस दाढ़ी बढ़ रही है। गेमश्रा-कुर्ता शरीरकी नम्रता ध्यानमें ? ममभूति आँसुओंस भैय्याके चरण धो को छिपाये हुए है। मगभूतिने पहिचाना-'अरे, रहा है। ग्रही तो भैय्या हैं । क्या वेष बनाया है ? कठिन तपमे ओह !!! लीन हो रहे हैं।' उसी वक्त वह दुष्ट, उस वज़नदार शिला-खण्डको ____ पास आया। खुशीकं मारे बसुध हो रहा है। पैरोंपर गिरे हुए माथे पर पटक देता है। बोला-'भैय्या ! लौट चलो ! मुझे तुम्हारं विना खूनकी धाग ! मरुभूतिका निर्जीव शरीर ! कमठ अच्छा नहीं लगता ! मैंन महागजस बहुत कहा, पर देखता है-न पश्चाताप, न दुःस्व ! वे न मान । जाने दो। हम-तुम दोनो उनके राज्यमे मुंह ५५ एक सन्तोषकी रेखा विंच रही है। जैसे अलग रह कर जीवन बिता देगे। तुम तपस्वी क्यों प्रतापी-नरंश दिग्विजय कर लौटा हो ! बन हा भैय्या ? मुझे क्षमा करो, मैं तुम्हारं अपमानकी और उधर ? ममभूतिका मुंह ग्वनम मना है। न गक सका-मुझे क्षमा करदा। मैं तुम्हारा छोटा आँग्वें खुली है । दीनता झलक रही है। भाई हैं।' ___जैसे कह रहा है-'भैय्या ! मुझे नमा कर दो, और मरुभूनि हाथ जोड़ता हुआ, कमठ के पैगें मैं तुम्हाग छोटा भाई हूं !' आत्म-दर्शन कौन हूँ मैं क्या बताऊँ ? यह जगत है व्याप्त जिनसे-विश्वके प्राणी घनेरे, दीवते हैं, निहिन मुझमें ही–लिग्वेसे, चित्र मेरे; एक हूँ, पर है अनेको रूप मेर, क्या गिनाऊँ ?-कौन हूं मैं क्या बताऊँ ? सूर्य-शशि, आकाश-तारे, लोक श्रो' परलोक सारे, ये सभी दिव्यात्माके, चल रहे-होकर सहारे; कुसुम, पादप-पल्लवोमें, मैं करूँ पतझड़-खिलाऊँ !-कौन हूँ मैं क्या बताऊँ ? शून्य सत्तासे मेरी है, नियतिका वह कौन कोना ? करुण-क्रन्दन प्रातका, शिशुका विहँसना और रोना; प्रकृतिके सौन्दर्य में मैं ही छिपा,-उसको सजाऊँ !-कौन हूँ मैं क्या बताऊँ ? चन्द्रिकाकी विमल किरणें, घोर-तममें भी भरा हूँ. अमर हूँ; पर मृत्युका माया-भरा पट निर्जरा हूँ; नरक में भी स्वर्ग हैं, क्या खोल कर अन्तर दिखाऊँ ?-कौन हूँ मैं स्या बताऊँ ? अजर हूं, अव्यक्त हूं मैं, देख सकता कौन मुझको ? मैं सदा मर्वत्र हूँ, क्यों ढूँढते अन्यत्र मुझको ? भानियों-अजानियोंके हृदयमे भी मैं समाऊँ !-कौन हूँ मैं क्या बताऊँ ? शोकम करते रुदन श्री हर्ष में कुछ फूलते हैं ! दुःखमें क्यों टूल जाते, और सुखम झूलते हैं ? मैं 'प्रफुल्लित' हूँ सदा, क्यों वेदनाके गीत गाऊँ ?-कौन हूँ मैं क्या बताऊँ ? %3 4. काशीराम शर्मा 'प्रफुलित'
SR No.538004
Book TitleAnekant 1942 Book 04 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1942
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size73 MB
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