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अनेकान्त
वर्ष ४
गये एकदम ! मौतका मियादी नोटिस जो था ! तब बात और थी। श्राजकी तरह नहीं थी, कि मौतके दिन बीतते चले गये ! नो टम पर विजाबी म्याही पोत कर ममम लिया मरुभूतिन जिस योग्यताका-सचिव-कार्यमेंजाय कि हमने मौनको ठग लिया।
___परिचय दिया, वह न सिर्फ राज्य के लिए अच्छाई ही ___ तब अक्मर माधु-प्रकृनिके बड़े लोग बुढ़ापा आने साबित हुई, वग्न उमने महागजके मन तकको मुग्ध के पेश्नर ही योगाभ्यामकी तैयारी शुरू कर देते थे। कर दिया। मम्भूनिका चातुर्य, जहां महागज के
दानों पुत्रोंका लेकर विश्वभूति महागजकी संवा श्राह्लादका विषय था, वहां कमठकी मरुभूतिक प्रति में उपस्थित हए । और अपनी यह अभिलाषा उनके होने वाली नित्यकी दुर्जनताके सबब शंकित भी रहा सामने रग्वी, कि-मैं अब मंत्रित्वकं भाग्न अवकाश करता था। चाहता हूँ, मेग म्थान, दोनोंमें जिसे आप पसन्द बातों ही बातोंमें उस दिन पूछ बैठे-'प्रधानजी! करें, दनकी दया करें। आशा है ये लोग मुझसे आप कमठके दुव्यवहारको क्यों सहते चले जा रहे अच्छी वा कर आपको प्रसन्न, और गज्य-नींवको हैं ? प्रतिकार करना क्या पाप है ? उसे तो प्रोत्साहन मजबूत करेंगे। अलावा इमक मुझे ईश्वगगधनका मिलना है !" आज्ञा दी जाय, क्यों कि मेरे जीवन का अब तीसरा मरुभतिको बात छू-सी गई । वह नहीं चाहताप्रहर प्रारम्भ हो चुका है।'
उसके भाई के लिए कोई कुछ कहे। मन उग्र हो उठा, कुछ हील-हुज्जत और टालमटूल के बाद महागज जैसे सागर के अन्तम्तल में बड़वाग्निका दौर चला हा ! ने प्रधान-सचिवको छुट्टी देते हुए, उनका पद मरुभूत ताहम बड़े संयमसे काम लेते हुए बोला-'आप को मौंपा । कमठको खलना, मखनास महागज अन- शायद ग़लत गम्ते पर है-महाराज ! बड़े भाईका भिज्ञ न थे। जन-माधारणकी तरह ही उन्हें भी कमठ अपने पुत्र-तुल्य अनुजके प्रति दुव्र्यवहार हा भी की अवांछनीय-चेष्टाओंका पता था। व उसके विषय सकता है, मुझे इसमें भी शंका है ! वे बड़े हैं, पूज्य मे बहुत-कुछ सुनते आ रहे थे । और सुनन-भग्ने हैं ! उनके मनमें मेरे लिए ममता हो सकती है, न उन्हें उमक प्रति कठोर बना दिया था। जहां कमठ कि बुग भाव ! उनकी प्रकृति नरम ज़रूर नहीं है, की बुगई उनकं कानों तक पहुंची, वहां मरुभूतिकी पर वे बुरे नहीं हैं। मुझे उनसे कुछ शिकायत नहीं।' सज्जनता भी हृदय पर अंकित हानसे वंचित न रह महागज चुप रह गए ! सकी। अप्रत्यक्ष रूपमे ही वे मरुभूतिके प्रति दयालु कुछ दुग्व भी हुआ कि मरुभूति स्वयं ग़लत और श्रद्धालु बन चुके थे।
गस्त पर होते हुए भी, ठीक बानका नहीं मानताहषसे भरे हुए विश्वभूनि, विश्व-विभूतिम विरक्त इस बातका ! उन्होंने ममझा-छोकग है, दुनियाबी घर लौटे । जिम आशाको लेकर वे दबारम गये थे, तजुर्बा श्राए कहाँ से ? उसकी पूर्ति उनके माथ थी।
इमी ममय सेनानायकन सभामें प्रवेश किया ! अभिवादनानन्तर उसन उन तैयारियोंका जिक्र किया,