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अनेकान्त
[ वर्ष ४
बालिका-हृदयको क्यों बनाना चाहता हैं?
नाम ही के इच्छुक हैं तो अपनी सम्पत्तिको किसी ऐसे काम __ ऐसा करनेस पहले वह गौर करके देखें कि उसके में लगा जाय जो समाज व देशके अर्थ पा सके और उनका अपने ही घरमें उम्मकी षोडशवर्षीया विधवा पत्र-बध यौवन नाम भी रख सके । अगर किसी उत्तराधिकारीके जरिये ही के मध्यान्ह कालमें म्याग और तपस्याका जीवन बिता रही वे नाम रखना चाहते है तो किसी सजातीय बालकको गोद है। उसकी विधवा पुत्री यौवनक प्रभातकालमें ही अपना लेकर यह काम आसानीम कर सकते हैं, एक बालिकाका मोहाग-मिन्दर पोलकर पदाचार और संयमकी शिक्षा दे रही जीवन बर्बाद कर ऐसा क्यों करना चाह रहे हैं ? ऐसे लोग है। उसकी विधवा बहन बालपन में ही अपना सर्वस्व खोकर भी हैं जिनके घरोंमे दो-दो चार चार ब्याहे हय जवान लड़के अपने विरक्त और तपस्वी जीवन से वृद्धावस्थामें बढी हई हैं और ब्याही लड़कियां भी है। दो-दो तीन-तीन छोटे मोटे उस्मकी निरंकश लालमाको धिक्कार रही है। यदि वह अपने पोते दोहते भी खेल रहे हैं। उनकी खुदकी अवस्था भी घरमें यह सब नहीं देग्यता है तो पड़ोसमें देखे और पडोममें ४०-५० की हो गई है । यदि बदकिस्मतीम उनकी गृहिणी भी नहीं देख सकता है तो मोहल्लमें देखे । बस इसम का देहान्त हो जाता है तो १२ वें दिन ही आप उनके घरमे अधिक दूर उस नही जाना पड़ेगा। किन्तु कौन देग्वता है? विवाह की चर्चा सुनने लगेंगे और साथमें यह भी सुनेंगे कि देखकर बायीं ओर अांख फर लगा । यदि उधर भी वही दृश्य श्रजी और तो मब ठाठ है. लेकिन घरवालीके बिना घर सूना है तो दायीं और प्रांग्व फर लंगा, यदि फिर भी वही दृश्य ही मालूम होता है। और फिर ब्राप देखते हैं इन छोटे दिग्वलाई पहता है तो पीछे फिर जायगा । यदि उधर भी वही बाल-बच्चों को संभालने वाला भी कोई चाहियं । बहुओं में दृश्य दिखाई देरहा है तो अपने चर्मनत्र और जाननेत्रको अभी इतनी सुध नहीं है। ऐसा विचार कर रहे हैं-स्पया दोनों हाथोंमें मद लगा, लेकिन पाप और पतनके गहरे ने जरूर हज़ार दो हज़ार अधिक ग्वर्च होगा-कि कोई १८ममुद्र में जरूर कृदेगाधिकार है !!
२० वर्ष की अवस्था वाली हाथ लग जाय। अगर ऐसा ही है जो लोग चालीम या इसमे भी आगे की अवस्था प्राप्त
तो वे अपने बाल-बच्चोंके लिये किमी नौकरानीको क्यों होजाने पर भी दम्मरी, नीमरी या चौथी शादी करनेके लिये नहीं रख लेते और घर सून। मालूम होता है तो ईश्वर तैयार होते हैं उनके महसे ग्राप क्या सनेंगे? जी इतनी भजनके लिये जङ्गलमे क्यों नहीं चलं जातं ? क सजाबढी जायदाद है. हवेली है - धन सम्पत्ति है। कोई बाल- तीय बटीको ज़र-खरीद पत्नी (?) क्यों बनाना चाहते हैं ? बचा है नहीं। हमारे मरनेके बाद उसे कोई भोगने वाला बहुतप ऐसे महानुभाव ( ? ) भी है जो यह कहने हय भी चाहिये । यदि परमामाकी मर्जी हुई तो यह बुढापा भी भी सुने जाते हैं कि साहब, और तो सब ठीक है लेकिन सफल हो जायगा और हमारा नाम भी रह जायगा। इस
हमारे मरनेके बाद हमें कोई रोने वाला भी तो चाहिये । तरह नाम रखनेवालोंको सोचना चाहिये कि वे अपना नाम
अफ़सोस ! दुर्भावना और नीचताकी हद होगई ! हम उज्ज्वल कर रहे हैं या कलंकित कर रहे हैं। काम करेंगे बद
रोज़ाना मन्दिरमें जाकर यह बोलत है-'भावना जिनराज मामी का और उम्मेद रखेंगे अपने नामकी । नाम रहता है मेरी सब सुग्वी संसार हो। किन्तु हम हमारे क्रियामक सुन्दर पाचरण और कर्नव्य-पालन में तथा देश-सेवा और।
जीवनमें हमार मरनेके बाद भी निरपराध अबलाओंको परोपकार से। किन्तु ऐमा नो उन्होंने किया ही कहां? एक तड़फा-तहफा कर मारने की कलुषित भावना रखते हैं।
ओर वे निरपराध बालिकाका मर्वनाश-बालहत्या करने जा धिक्कार हैं ! रहे हैं और एक ओर अपनी प्रात्माको पतनकी ओर ले जा देखा जाता है कि वृद्ध-विवाह की स्थिनिमें मुख्यतः दो रहे हैं। मरनेके बाद एक बाल-विधवा उनकी करनीको फूट- कलुषित शत्रियां काम करती हैं । एक तो समाजके कुछ फूट कर रोरही है और समाज उनकी बुढ़ापेकी बढ़ी हुई वासना-पीडित अवस्थाप्राप्त धनीमानी संठ-साहकारोंकी तृष्णा को धिक्कार रहा है। यह नाम रहेगा। हां, किसी भी धन-शकि जिसके जरिये व अपनी मजातीय पुत्रियोंको तरह नाम रहा लेकिन रहा ज़रूर ! अगर वास्तव में ऐसे लोग अपने निकृष्ट प्रामोद-प्रमोदके लिये खरीदनेकी हिमायत