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________________ आदर्श जैनमहिलाका वियोग किरण १ ] शीघ्र आरोग्य करें। पर- दुःखकातर, स्नेह-कोमल-नारीचित पनिके मनोभावका समझ गया-मुंहपर चंचल दबाकर उच्छति रुलाईको रोकने लगी, पर रोक न सकी और शेवडी ! तथा अन्यन्त अधीर भावसे अपने अभुक्तान्न मुखमण्डलको घूँघटसे छिपाकर चुप हो गई !! मृत्युके पहले दिन अपने पति कह दिया था कि-'मैं कल संध्या तक ख़तम होजाऊंगी । ' मृत्युके दिन बाबू छोटेलालजी से आपने बड़ी नम्रता और अनुनय-विनयके साथ कहा – “देखिये जी, श्रब मुझे आप और औषध और पथ्य न दे, मुझे तो केवल व पानी ही देते रहे और केवल यह दो माडियां और एक लुकाको छाका अवशिष्ट परिग्रह का त्याग करवा देवें ।" बा० छाटलालजी ने कहा- 'तुम्हारी जैसी इच्छा हो वही करो पर इतना कहना मेरा मानलो कि तीन माडियां दो सलूके और दो गमवली, बाकी सब परिग्रहका त्याग करदो कारण वर्षका समय है यदि कपड़ा न सूग्वा तो तुम नंगी पड़ी रहेगी। धरने स्वीकृति दे दी और औषधादि बन्द कर दिये गये । मृत्युकं एक घण्टा पहले ६० प्याग्लालजी ( भगतजी ) वहां श्रागये थे ( श्राप बीमारीमें कई बार श्रा श्राकर धर्मचर्चा श्रादि श्रवण कराते रहते थे और आपसे ही बीमारीमें समाधिमरण सुननेका प्रथम प्रस्ताव श्रीमतीजी ने किया था ) । उन्हें पहले भजन सुनाया फिर बडा समाधिमरण | आपने भगतजी से कई धार्मिक प्रश्न किये। उस दिन आपने जितनी बातें कीं और कहीं वे बडी ही मार्मिक थीं-- श्रापके उस दिनके शब्द पवित्र और उज्ज्वलहृदयकं श्रन्तस्तलके वाक्य ये आपको यह पूर्ण विश्वास होगया था कि अब मेरा होनेवाला है भगतजीमं पूछा कि "मुनि लोग किस प्रकार रहते हैं ? " भगतजीने कहा 'वे नग्न रहते हैं और ज़मीन 1 १५ पर सोते हैं।' फिर पूढ़ा 'तो स्त्रियां ?' उत्तर—खियां तो नग्न नहीं रह सकती' इन प्रभी आपका तात्पर्य यह था कि समाधिमरण की और सब बातें तो होचुकीं ये दो बातें और बाकी हैं सो भी किसी प्रकार पूरी हो जायँ। यह पहले ही बताया जाचुका है कि आप बिना आज्ञाके कुछ न करती धी अस्तु आप चाहती थी कि यदि भगतजी कह दे तो बा० छोटेलाल स्वीकार कर लेवेंगे। ता० १६ अगस्त सोमवार सन् १६४० को यद्यपि चाप की सर्वप्रकारकी वेदना बड़ी हुई थीं और श्वांस भी बढ रहा था तो भी आप विचलित न हुई और न मनको दुःखित किया । इसी घरवालोंको यह विश्वास न हुआ कि आप आज ही मिधार जायँगी । भगनजी बैठे हुए थे तब बा० छोटेलाल चन्द मिनटोंके लिये दूसरे कमरे में चले गये थे, लौटने पर उनसे कहा कि " अब आप मेरे पास बैठे रहें ।" इन शब्दों में बा० छोटेलालका हृदय कुछ विचलित हुआ पर उन्होंने अपनेको सम्हाल लिया । भगतजी चले गये थे; क्योंकि यह किमीको विश्वास नहीं था कि अब आप अपनी जीवनलीला समाप्त करना चाहती हैं। बस आपका श्वांस ast और दो तीन मिनटके अन्दर ही 'अरहंत-मिद्ध' का उच्चारण करतं तथा 'मोकार मंत्र सुनते हुए संध्या ६।४० पर-ठीक उसी समय जिसकी पिछले दिन भविष्यवाणी की थी— आप स्वर्ग सिधार गई !! और परिजनों को शोकसागर में निमग्न कराई !!! सर्वसम्पत्तिका दान स्वर्ग सिधारने पहिले श्राप अपनी सर्वसम्पतिको औषध, शास्त्र, अभय और श्राहार, इन चार प्रकारके दानों में अर्पण कर गई हैं। इस दानका संकल्प तो मृत्युके कोई एक मा पूर्व ही होगया था, पर मृत्युकं चार दिन पूर्व हद होना और बढ़ना हुआ मृत्युके दिन पूरी सावधानीकं साथ पूर्ण
SR No.538004
Book TitleAnekant 1942 Book 04 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1942
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size73 MB
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