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________________ १६६ अनेकान्त [वर्ष ४ नासमझीकं कारण, कुछ अधीरताके कारण, कुछ विभिन्न मतोंका जमघटउनावलीके कारण, जीवनको खोजते हुए भी जीवनकं ये मत संशयवादम लेकर सुनिश्चितबाद तक कितने ही पहलुओंको, जीवनके कितने ही तथ्योंको, फैले हुए हैं। ये शून्यवादस लेकर कि 'जोवन बाली दृष्टिसे ओझल कर डालते हैं, दृष्टिम बहिष्कृत कर एक भ्रम है', सत्यवाद तक कि 'जीवन एक सत्ताधारी डालते हैं। इन्हें उनकी मूझ ही नहीं पाती, इन्हें वस्तु है, अनेक रूप धारण किये हुए है। सत्यवादियो उनकी खोज ही नहीं पाती। यह उनकी बजाए में भी अनेक मत जारी है। कोई जीवनको परसत्ताकितने ही भ्रमात्मक पहलुओंका, कितने ही काल्पनिक दमरेका ग्चा हा कहता है। कोई इम म्वमत्तातथ्योंको दृष्टिमें ले आते हैं, ये कितने ही मत्यांशोंको स्वभावम स्वतः सिद्ध मानता है । स्वसत्तावादियोंमें असत्यांशोंसे मिला देते हैं, इन्हें इनका भेद करना भी जड़वाढ लेकर कि सब कुछ दृश्य जगत ही है, ही नहीं पाता, ये खाजके मार्गोंसे अनभिज्ञ हैं, सूझ जीवन उमकी एक मष्टि है, ब्रह्मवाद तक कि 'सब कुछ की विधिन अनभिज्ञ हैं। ये ज्ञानके म्वरूपको नहीं ब्रह्म ही है, जगत उसकी एक मष्टि है', अनेक पक्ष जानते, ज्ञानके मार्गोको नहीं जानते। ये ज्ञानके दिखाई पड़ते हैं । मममका सुविधाके लिये, इन झयोंको नहीं जानते । ये ज्ञान और ज्ञेयकं सम्बन्धको ममम्न मनोंको तीन वर्गोमें विभाजित किया जा नहीं जानते, ये सब हो सत्यके साथ अमत्यको मकता है-१ आधिदैविक, २ आधिभौतिक, ३ मिलाने वाले हैं, सत्य-अमत्यका संमिश्रण करने वाले आध्यात्मिक । हैं, ये सब ही मिश्रगुणम्थान वाले हैं। अधिदैविक पक्ष वाले जीवनको परसना मानते इन सबका ज्ञान अधूग है, इन सबका अनुभव हैं, दुमकी देन मानते हैं, दृमरकी रचना मानते हैं, अधूग है, इन सबका जाना हुआ लाक अधूग है, दुसरंकी माया और लीला मानते हैं, परंतु इनके भी इन सबका तथ्य संग्रह अधूरा है । ये अपने इन कितने ही अवान्तर भेद हैं-कोई बहुदेवतावादी है, अधूरे ज्ञान, अधूरे अनुभव, अधूरे लोक, अधूरं तथ्य कोई त्रिदेवतावादी हैं, कोई द्विदेवतावादी है, कोई के आधार पर ही अपनी मान्यताको बनानेवाले हैं, एक देवता वा एक ईश्वरवादी हैं। इनमें कोई जीवन अपनी दृष्टि को बनानेवाले हैं। इसलिये इनकी मान्यता को जगतशक्तियोंकी देन बतलाता है, कोई शक्तियोंके भी अधूरी है, इनकी दृष्टि भी अधूरी है । अधूरी अधिष्टाना देवनाभोंकी देन बतलाता है। इनमे भी दृष्टियोंके कारण इन्हें पांच श्रेणियोंमें विभक्त किया कोई मौम्य-देवी-देवताओंवी देन बतलाता है, कोई जा सकता है-१ मंशयवादी, २ अज्ञानवादी, ३ भयानक रुद्र-दैत्योंकी देन बतलाता है । कोई धर्मगज विपरीतवादी, ४ एकान्तवादी, ५ सर्वविनयवादी। को इमका अधिष्ठाता बतलाता है, कोई यमराजको ___ इनकी इस बहिष्कारनीनि, अधूरी रीति, अवि- अधिष्ठाता बनलाता है, कोई इन सबके अधिपति, वेकविधिका यह परिणाम है कि इन सबका एक ही विश्वकमों ईश्वरको जीवनका कर्ना-भर्ता ठहगता है। अन्वेषणीय विषय होते हुए भी, इनमें तत्संबंधी प्राधिभौतिक पक्षवालोंमें भी कितने ही मत है, अनेक मत प्रचलित हैं। कोई जीवनका आभास जगतमें करता है, कोई जगत
SR No.538004
Book TitleAnekant 1942 Book 04 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1942
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size73 MB
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