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किरण ३ ]
जीवनकी पहेली
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निर्माता प्रकृति में करता है, कोई प्रकृति के पंचभूतोंके इनमेंसे किनको सत्य और किनको असत्य माना बने शरीरमें करता है, कोई शरीरकी इंद्रियोंमें करता जाये । ये सब ही अधूरे मत है-सत्यासत्यमिश्रित है, कोई इंद्रियोंके स्वामी मनमें करता है, कोई मनके मत हैं। ये सब ही विशेषदृष्टि, विशेषज्ञानकी उपज रक्षक प्रागामें करता है, कोई प्राण संचालक हृदयमें हैं। ये सब ही विशेष समस्या, विशेष तर्ककी पूर्ति करता है, कोई हृदयकी बान बताने वाले शब्द (म्फुट) हैं। ये सब ही एक विशेष सीमा तक जीवनक में करता है।
सवालोंको हल करने वाले हैं, जीवन के प्रयोजनोंका श्राध्यात्मिक पक्ष वालोंमें भी अनेक मत प्रचलित सिद्ध करने वाले हैं । ये सब ही एक विशेष क्षेत्र तक है, काई जीवनका विज्ञानमात्र मानता है, कोई श्रद्धा- उपयोगी और व्यवहार्य हैं, इस हद तक ये सत्य मात्र मानना है, कोई कामनामात्र मानता है, कोई हैं, परन्तु इससे बाहिर ये सब निरर्थक हैं, एक दूसरेके एक मानता है, कोई अनेक मानता है, कोई नित्य विरोधी हैं, एक दूसरेका खण्डन करने वाले हैं। मानता है, काई अनित्य मानता है, कोई कर्ता मानता इनमेंसे कोई भी सम्पूर्ण सत्यका समावेश नहीं करता। है, कोई अकर्ता मानना है, काई भोक्ता मानता है, कोई भी जीवनके समस्त तथ्यों पर लागू नहीं होता, कोई प्रभाक्ता मानता है, कोई मदाशिव मानना है, कोई भी समस्त तथ्योंकी संगति नहीं मिलाता, कोई मदादुःखी मानता है, कोई निर्वाण-समर्थ मानता कोई भी समम्न तथ्योंकी व्याख्या नहीं करता कोई भी है. कोई निर्वाण-असमर्थ मानना है, कोई स्वावलम्बी समस्त ममस्याओंको हल नहीं करता, इस हद तक मानता है, कोई पराधीन मानता है ।
सब ही अमत्य हैं। ___ जीवन सत्ताका अनेक मानने वाले अध्यात्मवादी भी विविध मत वाले हैं। कोई जीवको अणुसमान
ये यद्यपि अपनी अपनी युक्तियोंसे, जिनके सूक्ष्म मानता है, २ कोई जीवको श्यामकचावल-समान
, आधार पर इनका निर्माण हुआ है, सिद्ध हैं, परन्तु छोटा जानता है, ’ कोई इस अङ्गष्ट-परिमाण कहता
___ इनमें कोई भी मत ऐसा नहीं, जो सब ही प्रमाणों, है, कोई इस हृदय परिमाण कहता है, ५ कोई सब ही नयों, सब ही युक्तियोंसे सिद्ध हो, ये यदि विशेष शरीराधार कहता है, कोई विश्वाकार एक प्रमाणसे सिद्ध है, तो दूसरेस बाधित हैं, एक कहता है।
सर्कस सिद्ध है, तो दूसरेसे खण्डित हैं। नास्ति न नित्यो न कान्ते कश्चित् न वेदति नास्ति निर्वाणमा हरन्तु अन्धविश्वास-प्रज्ञान-मोहकी बलिहारी, नास्ति च मोक्षोपायः षट् मिथ्यातत्त्वस्य स्थानानि ॥ कि कोई भी अपनी भूलोंका नहीं देखता, कोई भी
-सम्मति तर्क ३-५४ (संस्कृत छाया) इन भूलोंका सुधार नहीं करता, हर एक अपने मत २ मुण्डक० उप० २.२.२.
पर दृढ़ है, हर एक अपने मतपर हठ-प्राही है । हर ३ यथा ब्रीहिर्वा यवो वा श्यामको वा श्यामक तण्डुलो वा एक अपने मतपर दर्शनशास्त्रकी रचना करनमें एवमयमन्तरात्मन् -शत० ब्रा० १०. ६. ३.१.
' लगा है । हर एक अपने मतपर पन्थ और सम्प्रदाय ४ अङ्ग ष्ठमात्र: पुरुषो मध्य अात्मनि तिष्ठति ।
___कठ० उप० ६. ४. १२. १०, खड़ा करनेमें लगा है । हर एक अपनेको सच्चा और ५ 'श्रात्मा हृदये -ततै० ब्रा, ३. १०.८.१. दूसरेका झूठा ठहरानेमें लगा है। कोई भी दूसरेकी