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________________ किरण ] जीवनकी पहेली कल्पनाशक्ति, ममम्त तर्क-विचार-शक्ति प्रायः सोई संकल्प किया है, इस दुःग्वकं बीच म्खड़े रहकर हुई होगई है, ग्बोई हुई होगई है। विचारनेका निश्चय किया है; परंतु ये सब भी एक इन्होंने अपने दुःखको झल करनेकी चेष्टामें समान शक्तिधारी नहीं हैं। ममस्त ज्ञानका ही आझल कर दिया है। अपनसं इन मनुष्यों में बहुतसे तो साहस धारकर भी दुःग्व भरी दुनियाको आझल करनेकी चेष्टामे समम्त भयभीत समान बने हैं, इंद्रिय-द्वार खोलकर भी दीखने वाले जगतको ही श्राझल कर दिया है। इतना शून्यसमान बने है, निश्चय करनेपर भी विचारहीन ही नहीं, इन्होंने दुःखमं डरकर, दुग्वको ध्यान देने बने हैं, यह नाममात्रके ही मनुष्य हैं, रूपमात्रके ही वाली, दुःखको सुलझान वाली, दुःग्वस उभारने वाली मनुष्य हैं. ये वास्तव ने पशु ह. है, पशु ममान ही माहस-शक्ति, ममम्त संकल्प-शक्ति समम्त उद्योगशक्ति- ही प्राचार-व्यवहार वाले हैं, पशुममान ही जड़ का ही लाप कर दिया है। इसलिय ये एकन्द्रिय, और मृढ़ हैं, (Idiots) पशुममान ही दीन-हीन और विकलंन्द्रिय होकर रह गये हैं, जड़ मूढ़ हाकर रह निर्बल हैं, पशुममान ही दुःखसे डरने वाले हैं, पशुगये हैं। ममान ही दुःग्वके मामने आंग् मॅदकर रहजाने वाले __ ये इन्द्रिय-द्वार खोलकर भी अज्ञान मम बने हैं, हैं, निलमिलाकर रह जाने वाले हैं, अचेत होकर रह कर्मेन्द्रिय फैलाकर भी नि:पुस्पार्थसम बने हैं। ये जाने वाले हैं, ये पशु-ममान ही कर्म-फल चेतना वाले हैं। मब यन्त्रकी भान्ति अभ्यम्त संस्कागं (Impulses) अभ्यम्त मंज्ञाओं ( Instincts) के सहारे ही कर्मचेतना वाले जीवइन्द्रियोंसे काम लेते हुये अपना जीवन निर्वाहकर शेष मनुष्य जो इम कर्मफलचेतनाक क्षेत्रसे रहे है। इनकी चेतना छुः मुईके समान है, यह जगसी ऊपर उभर चुके हैं, कर्मचेतना ( Active conci आपत्ति आनंपर, जगमा दुःख पड़नपर तिलमिला ous life ) वाले बन है, ये निम्सन्देह संकल्पजाती है, मुर्भा जाती है, अचेत होकर रह जाती है। विकल्प-शक्तिवाले हैं, धैर्य-साहस-शक्तवाले हैं, तर्क इन्होंने अनन्त कालसे अपने साथ इस दुःखका वितर्क-शक्तिवाल है, माच विचार-शक्ति वाले हैं, अनुबन्ध करते करते, इस भयका अनुबन्ध करते उपाय-योजना-शक्तिवाले है, ये बड़े दक्ष और पराक्रमी करते, इम अन्धकारका अनुबन्ध करते करते, अपन- है, बड़े चतुर और चञ्चल हैं, बड़े प्रज्ञ और प्रवीण का ऐस गाढ़ भयमें समाया है, ऐसे गाढ़ अन्धकारमें है। परन्तु, इनकी यह मब संकल्प-विकल्पशक्ति, सब छिपाया है, कि इन्हें चिताये भी चिताया नहीं जाता, धैर्य साहमशक्ति, सब सोच-विचारशक्ति, सब उपायसुझाये भी सुझाया नहीं जाता, दिखाये भी दिखाया योजना-शक्ति बाहिरी सिद्धि के लिय हैं, बाहिरी वृद्धिके नहीं जाता। लिये हैं, बा हरी बाधाओं को दूर करनेके लिये हैं, इन मिथ्यास्थानियोंमें मनुष्य ही ऐसा है, जिसने बाहिरी कठिनाइयोंको हल करने के लिये हैं। इस भयक खालका ताड़कर बाहिर निकलनेका माहस भीतरी वेदनाओं को देखने जानन, भीतरी आशंकाओं किया है, इम अन्धकारको फाड़कर बाहिर लग्वानका को सोचने विचारने, भीतरी आशाओं का पूरा करने,
SR No.538004
Book TitleAnekant 1942 Book 04 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1942
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size73 MB
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