________________
किरण]
जीवनकी पहेली
१८
पाती हैं, तब तब दुःख भी उदय में आता है। जब और सदा रहेंगे। पूर्वकालमें भी जब धरा देव-दैत्य, जब दुःख उदयमें आता है तब तब ये प्रश्न भी सुरासर, नाग-राक्षस कहलाने वाली जातियोंसे बसी उदयमें आते हैं। ये होनियां अनादि हैं, दुःश्व भी थी, मनुष्यको इन सवालों से लड़ना पड़ा है ' और अनादि है, ये प्रश्न भी अनादि हैं।
आज भी जब धरा आर्य-म्लक्ष, मंगोल-तातार, हब्स
बर्बर लोगोंस बसी है, ये सवाल बगबर बन हुए हैं, हजार यत्न करने पर भी दुःख की होनियोंको छिपाया नहीं जा सकता, दुःग्य की अनुभूतिका गेका
परन्तु इनका हल करना बहुत ही कठिन है। नहीं जा सकता; तब इन प्रश्नांका पैदा होनस, इन्हें समस्या की कठिनताअपना जवाब मांगने कैम रोका जा मकता है ? किनन हैं, जो इन मवालों की ओर ध्यान देते शाक्य-मुनि गौतमस इन घटनाओं को दूर रखनकी हैं ? इन्हें स्पष्ट और साक्षान करते हैं ! कितने हैं, जो कितनी कोशिश की गई, सुग्वमात्रका दुःख अनुभूति इनके अर्थको ममझते हैं, इन्हें अध्ययन और अन्वमें बचाये रग्बनकी कितनी चेष्टाकी गई, पर ये घट- पण करत हैं ? कितने हैं, जो इनका ममाधान करते नाएं दृष्टिमे आकर ही रही, यह अनुभूनि चित्तमें हैं और उम ममाधानको अपनेम घटाकर मफल जग कर ही रहीं।
मनोरथ होते हैं ? चाहे मभ्य हो या असभ्य, धनी हा या निर्धन, बहुत विग्ले, कुछ गिने चुन मनुष्य, जो दूर दूर पण्डित हो या मूढ़, पुरुष हो या स्त्री, कोई मनुष्य ।
युगोंम, दूर दूर देशोंमें प्रकाशमान नक्षत्रों की भांति ऐसा नहीं, जो दुग्वकी घटना और दुखकी अनुभूति
कहीं कहीं चमके हुए हैं। सं सुरक्षित हो, यह अनुभूति जरूर किसी समय
____ यह क्यों ? जब सब ही दुःस्वमे मन्दिग्ध हैं, भाती है, और उसके उल्लासमयी जीवनको मन्दिर दुःग्वस छूटनकं आकांक्षी है, दुःख दूर करने के उद्यमो बना देती है, उसके चित्तको विलक्षण सवालोंमें हैं, तो सब ही इन ममम्याओं को हल करने में सफल
क्यों नहीं? भर देती है।
___निस्सन्देह, मब ही दुःखस मन्दिग्ध हैं, दुःखसे काई देश ऐसा नहीं, कोई युग ऐसा नहीं, जहां छूटनेक आकांक्षी हैं, दुःख दूर करनेके उद्यमी हैं। दुःख न हो । दुःखसे भय न हो. दुःखस सन्देह न परन्तु इन सबमें इन सवालोंपर ध्यान देने, इन्हें देखने हा. दुःखले प्रश्न न हो, दुःखसे छुटकारेकी आकांक्षा जानने, इन्हें हल करनेकी शक्ति समान रूपसे प्रकट न हो, दुग्व दूर करने की कोशिश न हो। ये सदा थे नहीं। ये सब ही विभिन्न गुणों वाले हैं, विभिन्न म्व
और सदा रहेंगे । यह माना कि बाह्यस्थितिक कारण भाव वाले हैं, विभिन्न शक्तिवाल हैं । यदि इन्हें इन भिन्न भिन्न देशों, भिन्न भिन्न युगोंमें इनके रूप भिन्न रहे गुण, म्वभाव और शक्ति की अपेक्षा विभाजित किया हैं, इन्हें बतलानेकी भाषाएँ भिन्न रही हैं, इन्हें जतलाने जाय तो ये चार गुणस्थानों में विभक्त हो सकते हैंकी परिभाषाएँ भिन्न रही हैं, इन्हें दर्शान की शैलियाँ १ देवैरत्रापि विचिकित्सितं पुरा न हि सुविज्ञेयं मणुरेष धर्मः । भिन्न रही हैं। परन्तु यह निर्विवाद है कि ये मदा थे
कठ. उप. १. २१.