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किरण २]
शैतानकी गुफामें साधु
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यहाँ आये होते तो यह खिंचाव कदापि न होता। अपना हित माधन भले ही कर सकें, परन्तु उनके परंतु तुम तो एकदम भाग निकले थे। तुम्हाग वर्तमान अज्ञान बन्धुओंको तो उनके चरित्रसे किश्चिन्मात्र
आत्मप्रभाव तो तुमने इस आश्रममें ही पाकर प्राप्त ही लाभ पहुँच सकता है। जगत उनके चारित्रको किया है। अतएव काशाकी आरके खिंचावका निवृत देखने के लिए वनमें नहीं जाता और जो कदाचित् होना असम्भव है । परन्तु पूर्वक स्नेह-स्थानोंके वे ही जगत्में पावें तो उनके संसारी बन जानेका खिंचावमें भी आत्मत्याग पूर्वक योग देनेका अवसर भय रहता है अर्थात् संसारपर उनका उपकार केवल कोई विरले ही भाग्यशाली पुरुपोंको प्राप्त होता है। परोक्ष और अल्प होता है। परन्तु जो व्यक्ति जगतके साधुके शिष्टाचारके ध्वंस हो जानेका भय न करकं, मध्यमें रहने हुए, संसारी नहीं बनते तथा जगतसं तुम तुग्म्त उम आर विहार करनेका प्रबन्ध कगे। कुछ न मांगकर उल्टा उसीको अपने पासकी उत्तमसे ___ स्थूल-परन्तु यदि मैं अधिक पुरुषार्थको उत्तम मामप्री अर्पण कर देते हैं, वही संसारका म्फुरित करके, माधुके शिष्टाचारमें जकड़े रहनका वास्तविक कल्याण कर सकते हैं। जिसने आत्मप्रयत्न करूँ तो उसमें क्या अयोग्य होगा ? त्यागके महान यज्ञमें अपनी वामनाओंका होम दिया ___ मंभूति-भद्र ! मेग कथिताशय तुम अभी तक है, संसार उसका जितना भी आभार माने, सब थोड़ा नहीं समझ हो । शिष्टाचारमें जकड़े रहने की आवश्य- है। सांसारिक प्रभावका चहुँारसं प्राकर्षित करता कता तभी तक है, जब तक कि आत्मा अर्पण करनेको हुआ दबाव जिनकी स्थितिकी दृढ़ता को धक्का नहीं तैयार नहीं है। जो अर्पण-त्याग करनेकी जगह उल्टे पहुँचा सकता, काजलकी कोठरीमें रहते हुए भी जिनलूटने को तैयार हो जाते हैं। जो गंगामें पाप धोनका की सफेदीपर दारा नहीं लग सकता, वे ही लोग जाकर, वहां मछली माग्नको बैठ जाते हैं, ऐसे लोगों- जगतके स्वागत और सम्मानकं पात्र होते हैं । तात ! के लिए ही आचार-पद्धतिका विधान है। जो उस तुमने जो कार्य हाथमें लिया है, उस तुम्हाग हृदयस्थितिको पार कर गये हैं, उन्हें तो मंसारके जोखिम बल पूर्णताके शिखर पर पहुँचाने योग्य है । निःशंक वाले स्थानपर जाकर, अपने बन्धुओंको आत्मत्यागका हो, अपने पूर्व स्नेहियोंसे जल्दी जाकर मिलो । दर्शन कराना है। अन्य साधुओंको जो उन स्थानोंपर स्थूल-प्रभो ! एक नवीन ही प्रकाश आज मेरी जानेकी मनाईकी गई है, उसमें यही हेतु है कि उनमें आत्मा में प्रवेश कर रहा है। आपकं वचनामृतस याचनाकी पात्रता छुपी हुई है, वे अनुकूल प्रसंग अभी भी तृप्ति नहीं हो रही है अभी और वचनामृत प्रानपर, भिखारी बनकर हाथ बढ़ाते हैं और मौका की वृष्टि कीजिए। पाकर लूटनेमें भी नहीं चूकते। जो लोग याचनाकं संभूनि-सिंहकी गुफामें जाकर उसका पराजय
आकर्षणयुक्त स्थानमें याचना न करके उल्टा अपेण करना अद्वितीय श्रआत्माओंस ही बन मकता है और करते हैं, वे जंगल तथा उपवनयुक्त प्रदेशोंमें विचग्ने तान ! तेरा निर्माण भी उसी विशेषताको सफलता तथा विहार करनेवाले याचकों से कई गुणा बढ़कर प्रदान करने हेतु हुआ है। जगतको ऐसे अद्वितीय है । वनमें विहार करने वाले याचक साधु कदाचिन व्यक्तित्रोंकी अत्यन्त आवश्यकता है। जिस समय