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अनेकान्त
[वर्ष ४
म्यथित धौर दुःखित मनुष्यकी तरह जर्जरित हो रहा है। बल-हीन सन्ताने पैदा होने लगती हैं, कारण बाल-दम्पतियों इसलिए बालक-बालिकाओंका असमयमें विवाह कर समाज- के जो सन्ताने होंगी के निर्बल और अयोग्य ही होगी । को बदनाम होनेसे बचानेकी भावना रखना महान् मूर्खता समाजका भविष्य उत्तम सन्ततिपर ही है। जब वही ठीक है। चाहे हम किसी भी दृष्टि से विचार करें, बाल-विवाह हर न होगी तो उसका पतन अवश्यम्भावी है और सच्च देखिये समय और हर हालतमें अनुचित ही है।
तो यही आज कल हो रहा है। अगर हम अपने ज्ञान नेत्रको चारों ओर फैलाकर देखेंगे अतः छोटी अवस्थामें विवाह करना व्यक्ति और समाज तो मालूम होगा कि असमयमें किए गए विवाहका परिणाम दोनों ही के लिये अहितकर है और तदनुसार कमसे कम व्यक्ति और समाज दोनों ही के लिए भयंकर होता है। सर्व- १५ वर्षके पहले बालिकाओंका और २० वर्षके पहले प्रथम बालक-बालिकाओं के स्वास्थ्य और शरीरपर इसका बालकोंका विवाह भूलकर भी नहीं करना चाहिए। घातक प्रभाव होता है। शरीर बीमारियोंका घर हो जाता इस अवस्था क्रमके सिद्धान्तके उपरान्त भी हर एक है। मुग्ध उदास और फीका दिखलाई पड़ता है। किसी भी व्यक्ति यह देखे कि प्राया वह विवाहकी जुम्मेवारीको संभाकामके करनेमें तबियत नहीं लगती है। चारों ओर निराशा लनेके लिये पूर्णतः समर्थ हो सकेगा या नहीं। मान लीजिये और बंधकार ही अन्धकार दिखलाई देता है। जहां यौवनकी एक पुरुष किसी संक्रामक रोगमे बीमार है तो उसे भूलकर उमंग और स्फूर्ति होनी चाहिए वहां उदासी और भालस्य- भी एक बालिकाका जीवन खतरेमें नहीं डालना चाहिए । का काजा हो जाता है। सारी शक्ति निचोड़कर निकाल ली इसी तरह यदि कोई स्त्री भी ऐसी ही बीमारीमें फँसी हो तो जानी है और उसकी जगह निर्बलता और नाताकतीका उसे किसीके गृहस्थ जीवनको दुःखित नहीं करना चाहिए । साम्राज्य छाया रहता है। बेचारी व नोंकी हालत तो और जो स्वी विवाह करे उसे यह मी देखना चाहिये कि गृहस्थाश्रम भी नयनीय हो जाती है। १५-१६ वर्षकी अवस्था तक तो के उत्तरदायित्वको मेलनेके लिये वह कहां तक समर्थ है ? उनके सामने दो-दो तीन-तीन बच्चे खेलने लगते हैं। जिम पुरुषोंको यह देखना चाहिये कि वे गृहस्थीके ग्वर्चका भार अवस्थामै उनको अपने शरीरकी भी सुध नहीं होती है,
उठाने में कहां तक समर्थ हो सकेंगे? ऐसा देखा गया है कि उसमें बच्चोंके बोममे वे ऐसी दब जाती हैं कि फिर जन्म जिन लोगोंके पास अपनी आजीविकाका कुछ भी साधन नहीं भर रखी ही रहती है। इसके अतिरिक्त तपेदिक, प्रदर मादि है उन्होंने विवाह करके अपने और अपनी स्त्री दोनों ही का भयानक बीमारियोंकी शिकार हो जाती हैं। इसी तरह जिन
जीवन नष्ट कर दिया है। कभी-कभी तो ऐसे असफल की बचपनमें शादी हो जाती है उनकी शिक्षाका क्रम भंग हो
दम्पतियोंके जहर खाकर मर जाने तकके समाचार सुननेमें जाता है और वे उस शिक्षा नहीं ग्रहण कर सकते। यहां पाते हैं। विवाह कोई इतनी ज़रूरी चीज नहीं है जो अपनी तक कि पुरुष-विद्यार्थी अपनी भाजीविका रलाने योग्य शिक्षा व्यक्तिगत परिस्थितियोंके उपरान्त भी किया ही जाये। से भी वंचित कर दिये आते हैं और छात्राएँ अपनी गृहस्थी
हमारे समाजमें एक बात यह भी देखी जाती है कि को सुचारुरूपसे चलानेकी शिक्षा भी प्राक्ष किए बिना रह
रह परषोंके लिये तो फिर भी बिग म्याहे रह जाना खोगोंकी जाती हैं।
इष्टिमें पटकता नहीं है किन्तु अविवाहित बहने अथवा मामाजिक रष्टिने विचार करें तो समाजमें अयोग्य और विलम्बमे विवाह करने वाली बहनें उनकी मज़गे में बहुत