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किरण २]
विवाह कर किया जाय
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अपनी विद्वत्ता दुरुपयोग कर बैठते हैं। पार्थिक प्र. मेकनामीके ऊँचे भासमानकी ओर ले जायंगे ? मेनामी और स्वायोंके लिए समाज अहितकर और निन्य सिद्धान्तोंका बदनामीका सम्बन्ध विवाह कर देने या न कर देनेस बबई प्रचार करना बास्तबमें विद्वान् पुरुषोंको शोभा नहीं देता है। नहीं है कि मारे गये और बुरे पाचरणसे है। बचपन में देशके सुधारक विद्वानोंको चाहिए कि वे बालक-बालिकाओं के बारे हुए कोमन हरप बालक-बालिकाओंसे संवम और जीवनको बरबार करने वाले ऐसे हिदान्तोंका प्रचार न होने सदाचारकी भाशा रखना सापसे अमृत उगवनेकी बाणा में और समाजको पतनके मार्गमें जानेमे रचावें । बालविवाह रखना है। हम फोदेके मवादको पाने की कोशिश क्यों करते समाजके लिये अहितकर नहीं है यह किसी भी युक्ति और है उसको निकालने की चेष्टा क्यों नहीं करें ? जब कमवाव तर्कसे साबित नहीं हो सकता। जिन बालक-बालिकाओंके नहीं निकलेगा वर्ग मिटना असम्भव है। सचाई और सदाजीवनकी कली खिलती भी नहीं है कि वह विवाह रूपी तेज चारकी स्थितिके लिए हम हमारे घरोंका और समाजका पताछुरीमे काट दी जाती है। जो बुद्धिहीन लोग अनाज पाया वरण शुद्ध और साफ रक्खें, सदाचारकी शिक्षाका प्रचार करें, भी नहीं, और खेतको काट लेनेकी मन्शा रखते हैं, फल पका बालक-बालिकाओं को प्रसयमकी कुशिक्षास बचाये और सदाभी नहीं, और उसे दरख्तसे तोड़ लेना चाहते हैं, मंजरी चारकी ओर अग्रसर होनेका उपदेश । गलतियोंको विवाह भानेसे पहिले ही फूल सौरभकी प्राशा रखते हैं, मकान खड़ा की प्राइमें विपाकर रखने और बढ़ाने में कौनसी बुद्धिमानी है ? होनेके पहले ही, उसमें रहनेका सुख-स्वप्न देखते हैं, वे ही बुद्धिमानी इसमें है कि गलती हो ही नहीं और यदि होगई अपने सच्चोंका बचपन में व्याहकर एक स्वर्गीय-सुख लूटना है तो भविष्यमें सचेत रहा जाय। एक गलतीको छिपाने के चाहते हैं। समझ नहीं पाता कि जीवनकी शुरुधात होनेके लिए गलतियों के ममुद्र में क्यों कर परें इसलिए कि बाजार पहले ही उनके उपर विवाहका भारी बोक रखकर उनके होकर गलतियोंसे अठखेलियां करते रहे? चोरी तो करें जीवनको वे क्यों नहीं फलने-फूलने देना चाहते ? क्यों वे लेकिन अन्धेरेमें करें, उजाले में नहीं ? अफमोम ! उनके दुर्शभ और मानन्दमय विद्यार्थी जीवनको कुचल देना और फिर एककी बदनामीका फल समाजके सब स्तम्भों चाहते हैं और क्यों उन स्वछन्द विहारी मुरारिके समवयस्क को क्यों मिल ! एक बदनामीमे बचनेके लिये हजारों बालकबालक-बालिकाओंको विवाहकी बंधेरी कोठरीमें लोहेके बालिकाओंका अमूल्य जीवन क्यों बरबाद किया जाय ! किवादोंसे बन्द कर देना चाहते हैं, और ऐसा कर कौनमा अगर घरके किसी एक कोनेमें प्रागकी चिनगारी सुलग गई प्रौकिक सुख देखना पसन्द करते हैं।
हैनो उमको बढ़ने से रोकना चाहिए न कि घरभरमें भागकी बहुतमे लोग कहते हैं कि जश्न विवाह न करनेके कारण लपटें लगादी लाएँ। जिन बालक-बालिकाओंका समयमे अाजकल के लड़के-सबकी बिगड़ जाते हैं और समाजमें बद- पहले ही ब्रह्मचर्य भंग हो जाता है, चाहे वह विवाहकी नामी होनेका डर रहता है इसलिये समाज और हमारे घरोंकी विडम्बनाके प्राइमें हुमा हो या विवाह के पहले हुमा हो, बाज रखने के लिए लड़कियोंका तो विवाह वस-ग्यारह वर्षकी दुराचार ही है। भले ही उन दोनों में समाज कानूनकी रष्टि अवस्था तक कर ही देना चाहिए। ऐसा करने वालोंको से एक पाप न हो और एक पाप हो किन्तु ईश्वर और न्याय विचारना चाहिए कि बड़कियोंका जल विवाह करके की रष्टिमें वे दोनों ही एकसे पाप है और उसी पापके फलसे समाजको भोर इन चूने मिट्टी धरोंको किस प्रशंसा और आज हमारा समाजरूपी शरीर गणित कोड़की पिसे