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किरण २]
विवाह कब किया जाय
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अधिक स्वटकती हैं। वे जब ऐसी किसी भी बहनको देखते आदिनाथ पुराणको पढ़ने वाले जानते हैं कि भगवान् प्रादिहै तो बड़ा आश्चर्य प्रकट करते हैं और उसकी बड़ी-बड़ी नाथकी मुपुत्रियोंने अविवाहित जीवन ही पसन्द किया और टीका टिप्पणियां होने लग जाती हैं। मैंने बहुत-मी बहनोंको वे विवाह बन्धनमें नहीं फंसी । यह ठीक है कि एक सम्बे देखा है जो जन्मभर अविवाहित रह कर समाज व देशकी समयसे समाजमें लड़कियोंके अविवाहित रहनेकी चाल नहीं सेवा करना चाहती हैं. लेकिन समाजके लोग उम्मकी तरफ रही है, लेकिन यदि कोई बहन वर्तमान समयमें भी जन्मभर अंगुली उठाकर उसे जबरदस्ती ब्याहके अनावश्यक फन्देमें अविवाहित रहना चाहे तो समाजको इसमें कोई उम्र नहीं फांस देते हैं और जो अपने किसी उद्देश्यकी सिद्धिके लिये होना चाहिये बल्कि उसको प्रोत्साहन देकर ऐसा भादर्श देरसे विवाह करना चाहें, उनको जल्दी ही विवाह के बंधन जारी रखनेके लिये अन्य बहनोंके हृदयमें भी उत्साह पैदा में बांध देते हैं। और तो और ऐसी बहनों के सम्बन्धमे नाना करना चाहिए। महिलाओंके अविवाहित रह कर प्रादर्श तरहके वाहियात शब्द कहे जाते हैं जो वास्तवमें समाज और जीवन व्यतीत करनका कोई भी शाय, स्मृति या सूत्र विरोध उममें रहने वाले लोगोंके बुद्र और कुत्सित हृदयका प्रति- नहीं करना है। ऐसी हालतमें यदि महिलाएँ भी अविवाहित बिम्ब हैं। कहते हैं अविवाहित रहकर आदर्श जीवन व्यतीत जीवन व्यतीत करें तो कोई बेजा नहीं है। हम देखते हैं कि करना प्राचीन प्राचार्यों ने मनुष्यजीवनकी सफलता बतलाई हमारे समाज में और देशमें कोई बिरला ही युगल ऐसा होगा है तो फिर ऐसी सफलता पुरुष ही प्राप्त कर सकते हैं स्त्रियां जो सचमुच विवाहका मधुर और वास्तविक फल प्राप्त करता क्यों नहीं कर सकती ? पुरुषोंके सम्बन्धमें भी यह देखनेमें हो वरना हर जगह उसकी कटुताएँ ही नज़र माती हैं। पाया है कि जो पुरुष विवाहित नहीं होते हैं वे समाजकी
इसका एक मात्र कारण यही है कि किसी भी युगनका विवाह नज़रों में कुछ हलके दर्जे के समझे जाते हैं। अगर कोई २०,
होते समय इस बातको कतई भुला दिया जाता है कि प्राया २५ वर्षका युवक किमीके साथ बातचीतके सम्पर्क में प्राता
उसे विवाहकी आवश्यकता भी है या नहीं अथवा वह इसकी है तो उससे साधारण नाम गांव आदि पूछनेके बाद यह
योग्यता भी रखता है या नहीं। ऐमी हालनमें समाजको सवाल होता है कि आपका विवाह कहां हुआ ? यदि इस
चाहियं कि अविवाहित रहने अथवा विलम्बसे विवाह करने मवालका जवाब पूछने वालेको इन्कारीके रूपमें मिलता है
की स्त्री-पुरुषोंकी स्वतन्त्र इच्छामें कोई प्रतिबन्ध न लगाए तो तत्क्षण ही विपक्षी पुरुषके हृदयमें उसके प्रति कुछ कम
और उनको अनावश्यक तथा उनकी परिस्थितियोंसे मेल नहीं ज़ोर ख्यालात पैदा हो जाते हैं। यह वातावरण हमारे ही
खाने वाले विवाहके सम्बन्धमें पड़ने के लिये कभी विवश न देशमें है वरना और विलायतोंमें हजारों ही स्त्री-पुरुष अपनी
करे । और हर एक व्यक्तिको भी चाहिये कि वह स्वयं भी परिस्थितियोंके अनुमार जन्मभर अविवाहित रहकर आदर्श जीवन व्यतीत करते हैं और हजारों ही स्त्री-पुरुष बड़ी से बड़ी अपने ।
अपने लिये विवाहकी पूर्ण आवश्यकता महसूस कर तथा
अपने चारों तरफ्रकी परिस्थितियोंका खूब अवलोकनकर विवाह अवस्थामें, जब वे अपने लिए वास्तवमें विवाहकी भावश्यकता महसूस करते हैं, विवाह करते हैं। यही क्यों ? पुराणों में के लिये कदम उठावे । विवाह कर किया जाय, इसका एकतो आप ऐसे हजारों स्त्री-पुरुषोंके उदाहरण देखेंगे जिन्होंने मात्र उत्तर यही संगत होसकता है और ऐसी स्थितिमें किया जन्मभा अविवाहित रहकर प्रादर्श जीवन व्यतीत किया। हुआ विवाह ही मधुर और उत्तम फल प्रदान कर सकता है।