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विवाह कब किया जाय? ( लेखिका-श्रीललिताकुमारी पाटणी 'विदुषी', प्रभाकर )
विवाह कर किया जाय यह एक ऐसा प्रश्न है जिसका पनि हम उनकी उपेक्षा कर बैठेंगे तो नाचित विवाहका हरएक व्यक्तिके लिए एक-सा उत्तर नहीं हो सकता । कारण
फल भी हमें कटु ही मिलेगा, मधुर नहीं। इस लिये विवाहके कौन व्यक्ति किस समय विवाहके उत्तरदायित्वको मेलनेकी
लिये अवस्था क्रम सम्बन्धी मतसे यही अर्थ ग्रहण करना
चाहिये कि १५ वर्षसे पहले सियोंको और २० वर्षमे पहले सामर्थ्य रख सकता है, यह उसकी अपनी परिस्थितिके ऊपर निर्भर है। कुछ विद्वान् विवाह के बारें वय-सम्बन्धी समस्या
पुरुषोंको भूलकर भी विवाहक्षेत्रमें काम नहीं उठाना
चाहिये । वरना वे अपने सुन्दर भविष्य-जीवनको जान-बूमकर का समाधान करनेके लिये स्त्री और पुरुष दोनोंकी एक उन्न
बरबाद कर देंगे और इस अलभ्य-मनुष्य-पर्यायको अनायाम निश्चित करते हैं जो उनके लिये विवाहका उपयुक्त समय
ही खो वैगे। देखना चाहिये कि विवाहके अवस्थाक्रम कहा जाता है। किन्तु उस उनकी अवधि में भी गरम घोर
सम्बन्धी इस मतका हमारे समाज में कहां तक पादर है ? ठण्डे जलवायु तथा सामाजिक वातावरणकी भिन्नतामे
यह तो प्रसनताकी बात है कि "प्रप्टवर्षा भवेनगौरी नवस्थान व समाज भेदके अनुसार फर्क हो जाता है। ऐसा माना वाव रोहिणी" ऐसी मान्यताएँ समाजकं ममझदार और जाता है कि जो देश शीतप्रधान हैं उनमें रहने वाले खी- बद्धिमान लोगोंकी दृष्टि में प्रबहेय समझी जाने लगी हैं और पुरुषों की अपेक्षा उष्ण देशों में रहने वाले सी-पुरुषोंको
ऐसी मान्यताओं के विरुद्ध समाज-हित-चिन्तक लोग पान्दोलन विवाह-वय यानी युवावस्था समयसे कुछ पहले ही प्राप्त हो
भी खूब कर रहे हैं तथा उन अान्दोलनोंमें थोड़ी-बहुत सफजाती है। फिर भी समाज-विज्ञानके विद्वान् वर्तमान समयमें
लता भी मिली है। उन आन्दोलनों के कारण ही बाल-विवाह सामान्य तौरपर स्वीके लिये विवाह काल १४-१६ और पुरुष की बढती हुईबाकी अोर ब्रिटिश गवर्नमेंटका भी ध्यान के लिए:०-२५ वर्षकी अवस्था मानते हैं। विवाहका यह प्राकर्षित हो और उमको रोकनेकी आवश्यकता सरकारने समय निर्धारित करनेमें केवल स्वास्थ्य और शारीरिक सङ्गठन
महसूम की । फलम्वरूप शारदा एक्ट पाम किया गया और को महत्व दिया गया है। इसमें स्त्री और पुरुषोंकी वैयक्तिक
उसके अनुसार अंग्रेजी हलकोंमें १४ वर्षसे पहले किसी भी परिस्थितियों और विशेष अवस्थाओंकी भोर विचार नहीं
बालिका और १८ वर्षमे पहले किसी भी बालकका विवाह किया गया। कारण व्यक्तिगत परिस्थिति हरएक व्यक्तिकी
नहीं किया जा सकता । किन्तु खेद है कि उन पाम्दोलनोंका भित्र-भिन्न होती है और उसके अनुसार उनके लिये विवाहकी
देशी राज्यों और ग्वामकर हमारे राजपूतानेमें अभी तक यथष्ट अवस्था भी मिल ही होना चाहिये। कहनेका मतलब यह
फल नहीं हुआ। कारण यही है कि अभी तक इधर हमारे है कि" और २० वर्षकी अवस्था प्राप्त होनेपर सी-पुरुष
समाजमें प्रशिक्षा चौर प्रज्ञानका विस्तार खूब है और वह येन केन प्रकारेण अपना विवाह रचा ही डागे इस मनसे यह उपरानी सानियों और करीनियोंके जरा भी खिलाफ जाने प्राज्ञा नहीं मिल जाती है। हमें हमारी कुछ और परिस्थि- रोकता है। फलस्वरूप हर माल हजारों ही बाल-विवाहके तियों, योग्यतामों और प्रवस्थानोंपर भी विचार करना पड़ेगा। उदाहरण हमारे प्रान और समाजमें रष्टिगोचर हो ।