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________________ १६४ अनेकान्त [वर्ष ४ पुण्य-पापका यह है परिचय ! किन्तु पुण्य, स्वातंत्र-सौख्यकापाप, सदा कॉपा करता है ___करता है अनुभव, आलिंगन !! और पुण्य, रहता है निर्भय !! " पुण्य-पाप एक शब्दमें-पुण्य विजय है, पुण्य-पापका यह है परिचय !! और पाप है, घोर-पराजय पाप, दीन-दुःखित-मलीन-सा पुण्य-पापका यह है परिचय ! ___रहता है, ले मौनालम्बन ! xxx पुण्य, तेज-मय हँसते-हँसते-- पाप, ठोकरें खाना फिरता, करता है सम्व-जीवन-यापन !! रोता है, होकर अपमानित ! किन्तु सगे भाई हैं दोनों-- दोनोंका अभिन्न है प्रालय ! पुण्य, दुलार-प्यारकी गोदीपुण्य-पापका यह है परिचय !! में पलकर होता है विकसित !! xxx श्री 'भगवत्' जैन पाप, निराशाकी रजनी है, पाप, गुलामीकी कटुताका पुण्य, सफल प्राशाका अभिनय !! करता रहता है प्रास्वादन ! यह है पुण्य-पापका परिचय !! हल्दी घाटी 3 - - - - - - माँ, तपस्विनी ! हल्दीघाटी! क्यों उदास हो मन में ? प्रांक चुकी क्या महा-समरका-- रक्त - चित्र जीवनमें ? भंग करो अपनी नीरवता, अनुभव कुछ बतलाओ ! वीरोचित कर्तग्य सुमाकर, हमें स-शक्त बनायो !! देख चुकी हो तुम वीरोंकेउष्ण . रक्तकी धारें ! सम्मुखती तो नहा रही थींशोणितसे तलवारे !! तुमने देखा है स्वदेश परअपने प्राण चढाते ! जीवन - मरण - समस्याका तात्त्विक स्वरूप समझाते !! तुम्हें याद है बलिवेदी परप्राण चढ़ा प्रण पाला ! इसी शून्यमें कभी जली थीमाज़ादी की ज्वाला !! तीर्थरूप हो वीर • नरोकोजागृति . दीप संजोए ! यहां प्रखण्ड समाधि लगाकर, देश भक्त हैं सोए !! भी 'भगवत जैन
SR No.538004
Book TitleAnekant 1942 Book 04 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1942
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size73 MB
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