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अनेकान्त ।
[वर्ष ४
सूर्य ही समर्थ है जो अठारह दोषोंसे रहित हैं और दिकको बड़ा आश्चर्य हुआ और राजाने उसी समय केवलज्ञानरूपी सत्तेजसे लोकालोकके प्रकाशक हैं। समन्तभद्रम पूछा-हे योगीन्द्र, आप महासामध्ययदि मैंने नमस्कार किया तो तुम्हाग यह देव (शिव- वान अव्यक्तलिंगी कौन हैं ? इसके उत्तरमें सम तभद्रलिङ्ग) विदीर्ण हो जायगा-खंड खंड हो जायगा- ने नीचे लिखे दो काव्य कहेइसीसे मैं नमस्कार नहीं करता हूं'। इस पर राजाका कांच्यां नग्राटकोऽहं कौतुक बढ़ गया और उसने नमस्कार के लिये आग्रह __मलमलिनतनुर्लाम्बुशे पाण्डुपिंडः करते हुए, कहा-'यदि यह देव खंड खंड हो जायगा पुण्ड्रोएड्रे| शाक्यभिक्षुः तो हो जाने दीजिये, मुझे तुम्हारे नमस्कारके सामर्थ्य
___दशपुरनगरे मृष्टभोजी परिवाट । को जरूर देखना है । समंतभद्रने इसे स्वीकार किया
वाराणस्यामभूवं और अगले दिन अपने सामर्थ्यको दिखलानेका वादा
शशिधरधवल:* पाण्डुगंगस्तपस्वी, किया । राजाने ' एवमस्तु' कह कर उन्हें मन्दिरमें
गजन् यस्यास्ति शक्तिः, रक्खा और बाहरसे चौकी पहरेका पूरा इन्तजाम कर
____स वदतु पुरतो जैननिग्रंथवादी ॥ दिया। दोपहर रात बीतने पर समंतभद्रको अपने .
पूर्व पाटलिपुत्रमध्यनगरे भेरी मया ताडिता, वचन-निर्वाहकी चिन्ता हुई, उससे अम्बिकादेवीका ,
पश्चा-मालवसिन्धुटक्कविषय कांचीपुरे वैदिशे आसन डोल गया । वह दौड़ी हुई आई, श्राकर उस . ने समंतभद्रको आश्वासन दिया और यह कह कर
प्राप्तोऽहं करहाटकं बहुभट विद्योत्कटं संकटं, चली गई कि तुम 'स्वयंभुवा भूतहितेन भूतले'
, वादार्थी विचराग्यहं नरपने शार्दूलविक्रीडितं
___ इसके बाद समन्तभद्रनं कुलिंगिवेप छोड़कर जैनइस पदसे प्रारंभ करके चतुर्विशति तीर्थंकरोंकी उन्नत ।
। निग्रंथ लिंग धारण किया और संपूर्ण एकान्तवादियों म्तुति रचो, उसके प्रभावसे सब काम शीघ्र हो जायगा
को वादमें जीतकर जैनशासनकी प्रभावना की। यह और यह कुलिंग टूट जायगा । समन्तभद्रको इम
सब देवकर गजाको जैनधर्ममें श्रद्धा होगई, वैराग्य दिव्यदर्शन प्रसन्नता हुई और वे निर्दिष्ट स्तुतिको
हो आया और राज्य छोड़कर उसने जिनदीक्षा रचकर सुखमें स्थित हो गये । सवेरे (प्रभात ममय)
धारण करली + ।" राजा आया और उसने वही नमस्कारद्वारा सामर्थ्य
। संभव है कि यह 'पुण्डोड' पाठ हो, जिससे 'पुण्डू''दिखलानेकी बात कही। इस पर ममन्तभद्र ने अपनी
उत्तर बंगाल-और 'उड'-उडीसा-दोनोंका अभिप्राय उस महास्तुतिको पढ़ना प्रारंभ किया । जिस वक्त जान पड़ता है। 'चंद्रप्रभ' भगवानकी स्तुति करते हुए 'तमस्तमो- * कहींपर 'शशधरधवलः' भी पाठ है जिसका अर्थ चंद्रमा रेरिव रश्मिभिन्नं' यह वाक्य पढ़ा गया उसी वक्त
___के समान उज्वल होता है।
'प्रवदतु' भी पाठ कहीं कहीं पर पाया जाता है। वह 'शिवलिंग' खंड खंड होगया और उस स्थानसे
+ ब्रह्म नेमिदत्तके कथनानुसार उनका कथाकोश भट्टारक 'चंद्रप्रभ' भगवानकी चतुर्मुखी प्रतिमा महान् प्रभाचन्द्र के उस कथाकोशके आधारपर बना हुआ है जो जयकोलाहलके साथ प्रकट हुई । यह देखकर राजा- गद्यात्मक है और जिसको पूरी तरह देखनेका मुझे अभी