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________________ किरण २] जैनमुनियोंके नामान्त पद १अमृत, २ आकर, ३ आनंद, ४ इंद्र, ५ उदय, कहीं भी हमारे अवलोकनमें नहीं आई, हमने प्राचीन ६ कमल, ७ कल्याण, ८ कलश, ९ कल्लोल, १० कीर्ति, प्रन्थों, टिप्पणकों आदिम इतने नामान्तपद प्राप्त ११ कुमार, १२ कुशल, १३ कुंजर, १४ गणि, किये हैं :१५ चन्द्र, १६ चारित्र, १७ चित्त, १८ जय, ११ रणाग, १ श्री, • माला, ३ चूला, ४ वतो, ५ मती, २० तिलक, ०१ दर्शन, २२ दत्त. २३ देव, २४ धर्म, ६प्रभा, लक्ष्मी, ८सुन्दरी, ९सिद्धि,१०निद्धि,११वृद्धि. २५ ध्वज, २६ धीर, २७ निधि, २८ निधान, २९ १२ समृद्धि, १३ वृष्टि, १४ दर्शना, १५ धर्मा, १६ निवास, ३० नंदन, ३१ नंदि, ३२ पद्म, ३३ पति, मंजरी, १७ देवी, १८ श्रिया, ५९ शोभा, २० बल्ली, ३४ पाल, ३५ प्रिय, ३६ प्रबोध, ३७ प्रमोद, ३८ प्रधान, २१ ऋद्धि, २२ सना, २३ शिखा, २४ रुचि, २५ शीला, ३९ प्रभ, ४० भद्र, ४१ भक्त, ४२ भक्ति, ४३ भूषण, २६ विजया, २७ महिमा । ४४ भंडार, ४५ माणिक्य, ४६ मुनि, ४७ मूर्ति, दिगम्बर एवं अन्य श्वेताम्बर गच्छोंमें जिनने ४८ मेरु. ४९ मंडण, ५० मंदिर, ५१ युक्ति, ५२ रथ, जितनं मुनिनामान्त पदोंका उल्लेख देखनमें आया ५३ (न, ५४ रक्षित, ५५ गज, ५६ रुचि, ५७ रंग, है उनका विवरण यहाँ दे दिया जाता है :५८ लब्धि, ५९ लाभ, ६० वर्द्धन, ६१ वल्लभ, दिगम्बर-नन्दि,, चंद्र, कीर्ति, भूषण । ये प्रायः ६२ 'वजय, ६३ विनय, ६४ वमल, ६५ विलाम, नंदि मंघके मुनियोंके नामान्तपद हैं। ६६ विशाल, ६७ शील, ६८ शेखर, ६९ ममुद्र, सेन, भद्र, गज, वीर्य ये प्रायः मनसंघकं मुनि७० मत्य, ७१ सागर, ७२ सार, ७३ सिंधर, ७४ सिंह, नामान्तपद है। -(विद्वदरत्नमाला पृ० १८) उपदेशगच्छकी २२ शाग्याएँ :७५ ,सुख, ७६ सुन्दर, ४७ सेना, ७८ सोम, १ सुन्दर, २ प्रभ, ३ कनक, ४ मेरु, ५ सार, ७९ सौभाग्य, ८० संयम, ८१ हर्ष, ८२ हित, ८३ हेम, ६चंद्र, ७ मागर, ८ इंस. ९ तिलक, १० कलश, ८४ हंस। ११ ग्ल, १२ समुद्र, १३ कल्लोल, १४ रंग, १५ नीचे लिखे नामान्त पदोंका उल्लेख मात्र मिलता शेवर, १६ विशाल, १७ रज, १८ कुमार, १९ देव, है व्यवहृत नहीं देखे गये : २० श्रानंद, २१ अदित्य, १२ कुंभ।। कनक, पर्वत, चरित्र, ललित, प्राज्ञ, ज्ञान, मुक्ति, (उपवंशगच्छपट्टावली प्र० जैनसाहित्य संशोधक) दास, गिरी, नंद, मान, प्रीति, छत्र, फण, प्रभद्र, इसमें स्पष्ट है कि कहीं कहीं दिगम्बर विद्वान तिय, हिंस, गज, लक्ष्म , वर, धर, सूर, सुकाल, मोह, यह समझनेकी भूल कर बैठनं हैं कि, भूषण, सेन, क्षेम, वीर ( यह नंदि खरतरगच्छमें नहीं हैं) तुंग कीर्ति आदि नामान्त पद दिगम्बर मुनियों के ही हैं, (अंचलगच्छ)। वह ठीक नहीं हैं। इन मभी नामान्त पदोंका व्यवहार इनमें से कई पद नामके पूर्वपदरूपमें अवश्य श्वे० समाजमें भी हुआ है। व्यवहृत हैं। . ____नम परिवर्तनमें प्रायः यह ध्यान रखा जाता है ___इसी प्रकार साध्वियोंकी नदिये (नामान्तपद) भी कि मुनिकी गशि उसके पूर्वनामकी ही रहे, बहुतसे ८४ ही कही जाती हैं, पर उनकी सूची अद्यावधि म्थानोंमें प्रथमाक्षर भी वही रखा जाता है। जैसे
SR No.538004
Book TitleAnekant 1942 Book 04 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1942
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size73 MB
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