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________________ १४६ सु० १५ जालन्धर देशस्य नंदबमपुर में ) 'श्राचार दिनकर' नामक प्रन्थमें विस्तार के साथ मिलता है। अतः हम उस प्रन्थके एतद् सम्बन्धी आवश्यक अंशका सार नीचे दे देते हैं : "प्राचीन काल में साधु एवं सूरिपदके समय नाम परिवर्तन नहीं होते थे पर वर्तमान में गच्छ संयोगवृद्धि हेतु ऐसा किया जाता है। अनेकान्त १ योनि, २ वर्ग, ३ लभ्यालभ्य, ४ गण और ५ राशि भेदको ध्यान में रखते हुए शुद्ध नाम देना चाहिये । नाममें पूर्वपद एवं उत्तरपद इस प्रकार के दो पद होते हैं। उनमें मुनियोंके नामों में पूर्वपद निम्नोक्त रखे जा सकते हैं। १ शुभ, २ देव, ३ गुण, ४ आगम, ५ जिन, ६ कीर्त्ति, ७ ग्मा (लक्ष्मी), ८ चन्द्र, ९शील. १० उदय, ११ धन, १२ विद्या, १३ विमल, १४ कल्याण, १५ जीव, १६ मेघ, १७ दिवाकर, १८ मुनि, १९ त्रिभुवन, २० भोज (कमल), २१ सुधा. २२ तंज, २३ महा, २४ नृप, २५ दया, २६ भाव, २७ क्षमा, २८ सूर, २९ सुवर्ण, ३० मणि, ३१ कर्म, ३२ आनंद, ३३ अनंत, ३४ धर्म, ३५ जय, ३६ देवेन्द्र (देव- इंद्र), ३७ सागर, ३८ सिद्धि, ३६ शांति, ४० लब्धि, ४१ बुद्धि, ४२ सहज, ४३ ज्ञान, ४४ दर्शन, ४५ चारित्र, ४६ वीर, ४७ विजय, ४८ चारु, ४९ राम, ५० सिंह, ( मृगाधिप, ५१ मही, ५२ विशाल, ५३ विबुध, ५४ विनय, ५५ नय, ५६ सर्व, ५७ प्रबोध, ५८ रूप, ५९ गण, ६० मेरु, ६१ वर, ६२ जयंत, ६३ यांग, ६४ तारा ६५ कला, ६६ पृथ्वी, ६७ हरि, ६८ प्रिय । मुनियोंके नामके अन्त्य पद ये हैं: [ वर्ष ४ ११ दन्त, १२ कीर्त्ति १३ प्रिय, १४ प्रवर, १५ श्रानंद, १६ निधि, १७ राज, १८ सुन्दर, १६ शेखर, २० वर्द्धन, २१ आकर, २२ हंस, २३ ग्न, २४ मेरु, २५ मूर्ति, २६ सार २७ भूषण, २८ धर्म, २६ केतु ( ध्वज), ३० पुण्ड्रक (कमल), ३१ पुङ्गव. ३२ ज्ञान, ३३ दर्शन, ३४ वीर, इत्यादि । सूरि, उपाध्याय, वाचनाचार्यों के नाम भी साधुवत् समझें । साध्वियों के नामों में पूर्वपद तो मुनियोंक समान ही समझें उत्तरपद इस प्रकार हैं: 1 १ मति, २ चूला, ३ प्रभा, ४ देवी, ५ लब्धि, ६ मिद्धि, ७ वती । प्रवर्तिनी के नाम भी इसी प्रकार हैं । महन्त के नामों में उत्तरपद 'श्री' रखना चा हये । जिनकल्पीका नामान्त पद 'सेन' इतना विशेष समझना चाहिये । ( श्रागे ब्राह्मण क्षत्रियोंके नामांक पद भी बतलाये हैं विशेषार्थियों को मूल थका ४० व उदय ( पृ० ३८६-८९) देखना चाहिये ) । खरतरगच्छ में इन नामान्त पदोंको वर्तमान में 'नांद' या 'नंदी' कहते हैं और इनकी संख्या ८४ संख्या की विशेषता सूचक ८४ बतलाई जाती है। विशेष खोज करनेपर खरतरगच्छीय श्रीपुज्य जिन चा रित्र सूरिजी के दफ्तर एवं कई अन्य फुटकर पत्रों में इन ८४ नामान्त पदों की प्राप्ति हुई । उनमें संख्या गिनने कं लिये तो नम्बर ८४ थे पर कई पद तो दो तीन वार पुनरुक्ति रूपसे उनमें पाये गये, उन्हें अलग कर देने पर संख्या ७८ के करीब ही रह गई, इसके पश्चात् हमने खरतरगच्छके मुनियोंके नामान्त पदोंकी, जो कि प्रयुक्त रूपसे पाये जाते हैं, खोज की तो कई नामान्त पद नये ही उपलब्ध हुए। उन सबको यहां अक्षरानुक्रमसे नीचे दिये देते हैं: *इस संख्याके सम्बन्धमें एक स्वतंत्र लेख लिखनेका विचार है १ शशांक (चन्द्र), २ कुंभ, ३ शैल, ४ अब्धि. ५ कुमार, ६ प्रभ, ७ वल्लभ, ८ सिह, ९ कुंजर, १० देव,
SR No.538004
Book TitleAnekant 1942 Book 04 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1942
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size73 MB
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