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'अनेकान्त' पर लोकमत
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'अनेकान्त' के 'नववर्षाङ्क' को देखकर जिन जिन विद्वानोने उसपर अपनी शुभसम्मतियाँ भेजनेकी कृपा की है, उनमेंसे कुछकी सम्मतियाँ नीचे दी जाती हैं:१ प्रोफेसर ए. एन. उपाध्याय एम. ए., ४५० परमेष्ठीदासजी जैन, न्यायतीर्थ, डी. लिट्, कोल्हापुर
सूरत
"इसमें कोई सन्देह नहीं कि अंक बहुत सुन्दर ___अनेकान्तका नववर्षाङ्क मिला । यह महत्वण
निकला है। मुखपृष्ठका चित्र तो देखते ही बनता है। सामग्रीसे भरा हुआ बहुमूल्य अङ्क है।"
कई वर्षसे जिसे श्लोकोमें पढ़ते अाए थे उसे चित्रबद्ध २५.अजितकुमारजीशास्त्री,मुलतान
देखकर बहुत अानन्द हुअा। उसे लेकर मैंने अपने
कई अजन मित्रोको भी अनेकान्तका रहस्य समझाया। "अनेकान्तका प्रथम अङ्क मिला । देखकर जो लेख भी सुन्दर हैं ।" हर्ष हुआ वह तो सिर्फ अनुभवका ही विषय है। मुख- ५५० सुमेरचन्दजी दिवाकर, न्यायतीर्थ, पृष्ठपर सप्तभंगीको जिस चित्र-द्वारा अंकित किया है बी. ए. एल एल.बी.,सिवनीवह कल्पना प्रशंसनीय है । लेख भी चुन चुनकर सुन्दर
_ "यह विशेषाक विशेष आकर्षक है। ऐमा प्रतीत
होता है, मानो 'कल्याण' मासिककी मुटाई छांटकर रखे गये हैं। 'तत्त्वार्थसूत्रके बीजोकी खोज' शीर्षक
उपयोगी मामग्री वाला अंक छपाया गया हो।" परमानंदजीका लेख अच्छे परिश्रम के साथ लिखा गया
मुखपृष्ठपर स्याद्वादके तत्वको बताने वाला चित्र है, अच्छा उपयोगी है। इस बृद्ध अवस्था भी जिस
बढ़िया है ।"""चित्र अनेकान्तके स्वरूप पर अच्छा अदम्य उत्साहसे श्राप जैन साहित्यकी ठोस सेवा कर
प्रकाश डालता है।...... रहे है, यह प्रशंसनीय है।"
इस प्रकार अनेक महत्वपूर्ण लेख से सुशोभित
यह १२० पेजका अंक पठनीय है। ३ ६० पन्नालालजी जैन, 'वसन्त साहि
यह पत्र गम्भीर और विचारपूर्ण सामग्री देता है, त्याचार्य, सागर
अत: मार्मिक चर्चा प्रेमियोके लिए संग्रहणीय है। 'अनेकान्त' के विशेषाकका अवलोकन किया। मुखपृष्ठपर अत्यन्त भावपूर्ण चित्रमय जैनीनीतिका चित्र
६ श्री भगवत्स्वरूपजी जैन 'भगवत्', है। जोकि अनेकान्त जैसे पत्रके लिए सर्वथा उपयुक्त
ऐस्मादपुर (आगरा)है। सभी लेख चुने हुए हैं। अपने अपने विषयमें सभी
"चौथे वर्षकी पहली किरण, जो विशेष.क है,
बहुत सुन्दर है। मार्मिक लेख, सुन्दर भावपूर्ण कविताएँ लेख सुन्दर हैं, इसलिए कौन लेख सबसे बरिया है,
और समयानुकूल कहानियाँ-सब कुछ वही है जिसे इस विषयका निर्णय मेरे जैसे व्यक्तिके लिए अशक्य श्राज मानव-हृदय पुकार पुकारकर माँग रहा है।" है। अनेकान्तके दर्शनसे मुझे बहत ही संतोष होता है।'
(क्रमशः)