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अनेकान्त
[वर्ष ४
मध्यके १८ वें पत्रके प्रथम पृष्ठपर लिखते समय १७वें सात * पद्य तथा समाप्ति-विषयक अन्तिम पद्य भी पत्रके द्वितीय पृष्ठकी छाप लग जानके कारण वह संस्कृत भाषामें हैं, शेष हिंदीमें कुछ उदाहरण हैं और खाली छोड़ा गया है । पत्रकी लम्बाई ८१ और कुछ उदाहरण ऐसे भी हैं जो अपभ्रंश नथा हिंदीके चौड़ाई ५३ इंच है। प्रत्येक पृष्ठपर प्रायः २० पंक्तियाँ मिश्रितरूप जान पड़ते हैं। इस तरह इस पथ परसं है, परंतु कुछ पृष्ठांपर २१ तथा २२ पंक्तियाँ भी हैं। कविवरके संस्कृत भाषाके अतिरिक्त दुसरी भाषाओं में प्रत्येक पंक्तिमें अक्षर-संख्या प्रायः १४ सं १८ तक रचनाके अच्छे नमूने भी सामन भाजात हैं और पाई जाती है, जिसका औसत प्रति पंक्ति १६ अक्षरों उनसे आपकी काव्यप्रवृत्ति एवं रचनाचातुर्य आदि का लगानेसे ग्रंथकी श्लोकसंख्या ५५० के करीब होती पर अच्छा प्रकाश पड़ता है। है। यह प्रति देशी रफ कागजपर लिखी हुई है और यह छंदाविद्याका निदर्शक पिगलग्रन्थ गजा बहुत कुछ जीर्ण-शीणे है, सील तथा पानीके कुछ भाग्मलके लिय लिखा गया है, जिन्हे 'भागहमल्ल' उपद्रवोंको भी सहे हुए है, जिसमें कहीं कहीं स्याही तथा कहीं कहीं छंदवश · भारु' नामस भी उल्लंफैल गई है तथा दूसरी तरफ फुट आई है और अनेक खिन किया गया है और जा लोकमे उस समय बहुत स्थानोंपर पत्रों के परस्परमे चिपकजानके कारण अक्षर ही बड़े व्यक्तित्वको लिये हुए थे । छंदाकं लक्षण अस्पष्टसे भी हो गये हैं। हालमें नई सूचीके वक्त प्रायः भाग्मल्लजीको सम्बोधन करके कहे गये है जिल्द बँधालेन आदिके कारण इसकी कुछ रक्षा उदाहरणोंमें उनकं यशका खुला गान किया गया है और होगई है। इस प्रथप्रतिपर यद्यपि लिपिकाल दिया हुआ इससे गजा भारमल्लके जीवन पर भी अच्छा प्रकाश नहीं है, परंतु वह अनुमानतः दोसौ वर्ष कमकी पड़ता है-उनकी प्रकृति, प्रवृत्ति, परिणनि, विभूति, मंलिग्वी हुई मालूम नहीं होती । यह प्रनि 'महम' नामक पत्ति,कौटुम्बिक स्थिति और लोकसंवा आदिकी कितनी किमी प्रामादिकमें लिखी गई है और इम 'म्यामगम ही ऐतिहासिक बातें मामने श्राजानी हैं। इन्हीं मब भाजग' ने लिखाया है; जैसा कि इसकी "महममध्ये बातांका लक्ष्यमें रखकर आज अनकान्तके पाठकोंक
सामने यह नई खाज रक्ग्वी जाती है और उन्हें इम लिषावितं म्यामगमभाजग ॥” इस अन्तिम पंक्तिसे
लप्तपाय ग्रंथका कुछ रसास्वादन कराया जाता है, प्रकट है।
जा अर्सेस आँखोस ओझल होरहा था और जिसकी कविवरके जो चार ग्रंथ इससे पहले उपलब्ध स्मृतिको हम बिल्कुल ही भुलाए हुए थे । साथ ही, हुए हैं वे चारों ही संस्कृत भाषामें हैं; परंतु यह ग्रंथ गजा भारमल्लका जो कुछ खण्ड इतिहास इस प्रथ संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश और हिन्दी इन चार पास उपलब्ध होता है उसे भी संक्षेपमें प्रकट किया भाषाओंमें है, जिनमें भी प्राकृत और अपभ्रंश प्रधान - हैं और उनमें छंदशास्त्र के नियम, छंदोंके लक्षण तथा
* संख्याङ्क ६ पड़े हैं-दूसरे तीसरे पद्यपर कोई नम्बर न
देकर ४ थे पद्यपर नम्बर ३ दिया है और आगे क्रमश: उदाहरण दिये हैं। संस्कृतमें भी कुछ नियम, लक्षण ४, ५, ६ । संख्याङ्कोके देने में श्रागे भी कितनी ही गड़बड़ तथा उदाहरण दिये गये हैं और प्रथके पारंभिक पाई जाती है ।