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________________ किरण २] एक साथ दोनों हाथोंसे कर्षण - क्रिया न करती हूँ, नहीं कभी मैं एक हाथसे दधिका मन्थन करती है। मन्थन रहस्यसे गोपीके 'जननीति' को समझ गया, अनेकान्तका गूढ तत्त्व योक्षण भर में ही सुलझ गया ! 'एकेनाकर्षन्ती' नामक अमृतचन्द्र-कृत शुभ गाथाकी सुस्मृतिसे हुआ उसी क्षण उन्नत था मेरा माथा । · अनेकान्तमय वस्तु नत्वसे - ज्ञाताकी भरा हुआ जग भाण्ड अनूप, स्वाद्रादात्मक मथन- दण्डसे आलोडन होता शिवरूप । सद्बुद्धि-गोपिका क्रमसे मन्थन करती है, नय - माला मन्थाननेत्रको क्रमसे खींचा करती है। विधि-रीका दक्षिण कर जय कढ़नीको गह लेता है, 'तिरूप तब सफल वस्तु है' यह सिद्धान्त निकलता है। जब निषेध दृष्टीका बायाँहाथ उसे गह लेता है, 'नास्तिरूप तब सकल वस्तु हैं' यह सिद्धान्त निकलता है। उभय-दृष्टि का हस्तयुगल जबक्रमसे कट्टनी गहना है, 'अस्ति नास्ति मय सकल वस्तु हैं' यह सिद्धान्त निकलता है। जेनी नीति हार्पिता अनुभवदृष्टीके करमें जब कदनी जाती, 6 अवक्तव्य हैं सकल वस्तु ' तबयह रहस्य वह बतलाती । विध्यनुभयदृष्टीके द्वारा कढ़नी जब खींची जाती, अस्ति श्रवाच्यस्वरूप विश्वमैअर्थ- मालिका हो जाती । निषेधानुभयदृष्टि स्वकरमें कढ़नी जब गह लेती है, 'नास्ति श्रवाच्यस्वरूप वस्तु है' यह निश्चित कह देनी है। उभवानुभपदृष्टिके हाथी जब कटुनी लीची जाती, 'अस्ति नास्ति अरु अवक्तव्य-मय' सत्स्वरूप नब बनलाती 'अनेकान्त' के मुख्य पृष्ठ पर जिसका चित्रण किया गया, जैनी नीति वही है जिसका उस दिन अनुभव मुझे हुआ । सम्यग्वस्तु प्राहिका है पह ठीक तत्व बतलाती है, बैर-विरोध मिटाकर जगमेंशान्ति-सुधा बरसाती है । इससे इसका श्राराधनकर, जीवन सफल बना लीजे; । पद-पद पर इसकी श्राज्ञाकाही निशिदिन पालन कीजे । १२३ * इस 'जैनी नीति' के विशेष परिचयके लिये देखो 'अनेकान्त' के गत विशेषाङ्क में प्रकाशित 'चित्रमय जैनी नीति' नामका सम्पादकीय लेख ।
SR No.538004
Book TitleAnekant 1942 Book 04 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1942
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size73 MB
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