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________________ **** पूर्व ग्रंथ महात्मा गांधीजी लिखित महत्त्वपूर्ण प्रस्तावना और संस्मरण सहित महान् ग्रन्थ छपकर तैयार है ! श्रीमद् राजचन्द्र गुजरात के सुप्रसिद्ध तत्त्ववेत्ता शतावधानी कविवर रायचन्द्रजीके गुजराती ग्रंथका हिन्दी अनुवाद अनुवादकर्त्ता - प्रोफेसर पं० जगदीशचन्द्र शास्त्री, एम० ए० महात्माजीने इसकी प्रस्तावनामे लिखा है— " मेरे जीवन पर मुख्यता से कवि गयचन्द्र भाई की छाप पड़ी है। टॉल्स्टाय और रस्किन की अपेक्षा भी गयचन्द्र भाईने मुझपर गहरा प्रभाव डाला है ।" गयचन्द्रजी एक अद्भुत महापुरुष हुए हैं, वे अपने समय के महान् तत्त्वज्ञानी और विचारक थे । महात्माओका जन्म देने वाली पुण्यभूमि काठियावाड़ में जन्म लेकर उन्होंने तमाम धर्मोका गहराई से अध्ययन किया था और उनके सारभूत तत्त्वोंपर अपने विचार बनाये थे । उनकी स्मरणशक्ति राजबकी थी, किसी भी ग्रन्थको एक बार पढ़के वे हृदयस्थ (याद) कर लेते थे, शतावधानी तो थे ही अर्थात् सौ बातोंमे एक साथ उपयोग लगा सकते थे । इसमें उनके लिखे हुए जगत कल्याणकारी, जीवनमे सुख और शान्ति देनेवाले, जीवनोपयोगी, सर्वधर्मसमभाव, अहिंसा, सत्य आदि तत्त्वों का विशद विवेचन है। श्रीमद्की बनाई हुई मोक्षमाला, भावन बोध, आत्मसिद्धि आदि छाटे मोटे ग्रन्थोका संग्रह तो है हा, सबसे महत्वकी चीज़ है उनके ८७४ पत्र, जो उन्होंने समय समय पर अपने परिचित मुमुक्षु जनोंका लिखे थे, उनका इसमे संग्रह है । दक्षिण अफ्रिकास किया हुआ महात्मा गॉधीजीका पत्रव्यवहार भी इसमें है । अध्यात्म और तत्त्वज्ञानका तो खजाना ही है। गयचन्द्रजीकी मूल गुजराती कविताएँ हिन्दी अर्थ सहित दी है। प्रत्येक विचारशील विद्वान और देशभक्तको इस ग्रन्थका स्वाध्याय करके लाभ उठाना चाहिए । पत्र-सम्पादको और नामी नामी विद्वानोंने मुक्तकण्ठसे इसकी प्रशंसा की है। ऐसे प्रन्थ शताब्दियों में विरले ही निकलते हैं । गुजराती इस ग्रन्थके सात एडीशन होचुके है। हिन्दी में यह पहलीबार महात्मा गांधीजी के आग्रहसे प्रकाशित हुआ है बड़े आकार के एक हजार पृष्ठ है, छ: सुन्दर चित्र हैं, ऊपर कपड़े की सुन्दर मजबूत जिल्द बॅधी हुई है। स्वदेशी कागजपर कलापूर्ण सुन्दर छपाई हुई है । मूल्य ६) छः रुपया है, जो कि लागत मात्र है। मूल गुजराती ग्रन्थका मूल्य ५) पांच रुपया है। जा महोदय गुजराती भाषा सीखना चाहें उनके लिये यह अच्छा साधन है । एक खास रियायत - जो भाई रायचन्द्र जैनशास्त्रमाला के एक साथ १०) के प्रथ मँगाएँगे, उन्हे उमास्वातिकृत 'सभाष्यतत्त्वार्थाधिगमसूत्र' भाषाटीका सहित ३) का प्रन्थ भेंट देंगे। मिलने का पता: परमश्रुत्र-प्रभावकमंडल, (रायचन्द्र जैनशास्त्रमाला) खाग कुवा, जौहरी बाजार, बम्बई नं० २ Rees 66९०२ २०२० Fe÷R? *************** *************************** मुद्रक और प्रकाशक प० परमानन्द शास्त्री वीर सेवामन्दिर, मरसावा के लिये श्रीवास्तव प्रिंटिंग प्रेम महारनपुर में मुद्रित
SR No.538004
Book TitleAnekant 1942 Book 04 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1942
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size73 MB
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