SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 118
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ किरण १] तामिल भाषाका जैनसाहित्य हाथमें लेकर आक्रमणकारीका मुकाबला करनेके लिये पहुँची और वहाँ रानीने एक साध्वीका वेष धारण कर निकल पड़ा । इस युद्धमें लड़ते हुए राजाका प्राणान्त तापस-आश्रममें निवास किया। अपने अनेक बन्धुओं होगया और दुष्ट कत्तियंगारन् ने अपनेको गजमापुरम् के साथ जीवकका सेठके गृहमें संवर्धन हुआ। उस का शासक घोषित कर दिया । अभी महागनी नगर बालकको आचार्य श्रवणंदि'ने युवककी तरह शिक्षित के बाहर पहुँची ही थी, कि उसने यह राज्यघोषणा किया। सउने धनुर्विथा एवं राजकुमारके योग्य अन्य सुनी कि उसके पनिदेव (गजा) की मृत्यु होगई, इस कलाओंका भी परिझान किया । अपने शिष्यकी से वह त्रयंका नियंत्रण करने में असमर्थ होगई, योग्यतासे आकर्षित होकर गुरुमहाराजने एक दिन जिससे वह यंत्र नीचे उतरा और इस नगर के बाहर उसके समक्ष उसके राज्य परिवारकी करुण-कथा श्मशान भूमिमें आ ठहरा । उस करुण वातावरण सुनाई और युवक राजकुमारसे यह वचन ले लिया एवं अंधेरी रात्रिमें महागनी ने एक पुत्रको जन्म कि वह एक वर्ष पर्यन्त अपनी राज्यप्राप्ति एवं प्रतिदिया । महारानीकी सहायता करने वाला उस समय शोधके लिये दौड़ धूप नहीं करेगा। इस प्रकारका कोई नहीं था, और वह असहाय शिशु उस श्मशान वचन प्राप्त करके प्राचार्यने राजकुमारको आशीर्वाद की निविड़ निशामें आक्रन्दन कर रहा था। कहते हैं देते हुए कहा कि एक वर्षके अनन्तर तुम अपने कि एक देवताने गनीकी दशापर दयार्द्र होकर महल राज्यको प्राप्त करोगे और उसको अपना असली की एक सेविकाका रूप धारण किया और उसकी परिचय दिया । इसके अनन्तर उसको छोड़कर परिचर्या की । उसी समय उस नगरका एक व्यापारी आचार्यश्री चौवीसवें तीर्थकर भगवान महावीर के संठ अपने मृत शिशुको लेकर उसका अन्तिम संस्कार चरणोंकी आराधना करके निर्वाण प्राप्तिके लिये तप करने के लिये वहां पहुंचा। वहाँ उसने सुन्दर शिशु करने चले गये । इस प्रकार राजकुमार जीवक के जीवकको देखा, जिसे देवताके परामर्शानुसार उसकी अध्ययनका वर्णन करनेवाला प्रथम अध्याय, जिसे माताने अकेला छोड़ दिया था। 'कन्दुक्कडन्' 'नामगलइलंबगम्' भी कहते हैं पूर्ण होता है । नामनामक वह सेठ राजपुत्रको देखकर अत्यन्त आनंदित गल्का अर्थ वाणीकी अधिष्ठात्री सरस्वती है। हा शिशुकी अंगुलीमें स्थित मुद्रिकास उसने उसे २ गोविन्दैय्यार इलम्बगम्-जिस समय राजकुमार पहचान लिया। उसने जीवित राजपुत्रको ले लिया जीवक अपने चचेरे बन्धुओंके साथ कंदुक्कदनके और घर लौटकर अपनी पत्नीको यह कहते हुए सौंप , परिवार में अपना काल व्यतीत कर रहा था उसवक्त दिया कि तेरा बालक मग नहीं था। उसकी पत्नीने सीमावर्ती पहाड़ी लोगोंने गजाके पशुओंका अपहरण इम उपहार को अपने पतिसे सानन्द ले लिया और कर लिया । गोरक्षक ग्वालोंने गायोंकी रक्षामें समर्थ सन अपना ही पुत्र समझकर उसका पालन-पोषण न होने पर राजासे सहायताकी मांग की । गजाने किया । यह बालक इस कथाका चरित्र नायक अपने शतपुत्रोंको तुरन्त जाकर व्याधोंसे युद्ध करके 'जीवक' था। गायोंको पुनः प्राप्त करनेके लिये आज्ञा दी । परन्तु वे देवताक साथमें विजया महारानी दंडकारण्य सब उन पहाड़ी जातिवालोंके द्वारा परास्त हुए । राजा
SR No.538004
Book TitleAnekant 1942 Book 04 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1942
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size73 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy