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________________ १०८ अनेकान्त [वर्ष ४ पौराणिक कथाका वर्णन है। जीवककी कथा संस्कृत महाराज सच्चंदन थे। उन्होंने अपने मामा 'श्री साहित्यम बहुलतास पाई जाती है । जिनसनके दत्तन्' की कन्यास, जिसे 'विजया' कहते थे, विवाह महापुराणका जो उत्तर भाग है और जिसे उनके शिष्य किया था। यह 'श्रीदत्तन' विदेह देशपर शासन करता गुणभद्रने बनाया था, उसके एक अध्यायमें जीवक था । राजा सच्चंदनका अपनी अतीव रूपवती की कथा वर्णित है । यह कथा बादको श्रीपुराणमें भी महारानी पर महान अनुराग था, इससे वह राज्य पाई जाती है, जो कि मणिप्रवाल रीतिमें लिखा कार्यों की उपेक्षा करके अपना साग समय प्रायः हुश्रा एक गद्य ग्रंथ है और पायः इस महापुराणका अंतःपुरमें ही व्यतीत करता था। उसने अपने एक अनुवाद है । क्षत्रचूड़ामणि, गद्यचिंतामणि और मंत्री 'कत्तियंगारन्' के ऊपर गज्यशासनका भार जीवंधरचम्पूमें भी यही कथा वर्णित है। इस विषयमें छोड़ रखा था। जब एकबार इस 'कत्तियंगाग्न्' हम निश्चयके साथ कुछ भी नहीं कह सकते हैं कि ने राजत्वकी प्रभुता और अधिकारका रसास्वाद किया, तब उसकी इच्छा उसका इस तामिल ग्रंथकर्ताको अपने ग्रंथकी रचनाके लिये हड़पनेकी होगई । गजाने अपने उस मंत्रीकी कुटिल इन संस्कृतग्रंथों में से कोई ग्रंथ श्राधारस्वरूप रहा नीतिको कुछ अधिक देग्में समझा, जिसको उसने है या कि नहीं। मूर्खतावश गज्यका अधिकार दे रखा था। इसी बीच इन सब संस्कृत ग्रंथोंमें महापुगण निःसंदेह सबसे प्राचीन है और यह निश्चित है कि यह महा में महारानीने तीन अधिक असुहावन दुःस्वप्न देखे । जब उसने राजास उनका फल पूछा, तब उसने उसे पुराण ईसाकी ८ वी सदीकी रचना है, क्योंकि यह राष्ट्रकूट वंशीय अमोघवर्षके धर्मगुरु जिनसेनाचार्यके यह कह कर सांत्वना दी, कि तुम स्वप्नोंक विषयमें चिंता मत करो। कहते हैं कि उसने अपने कृतघ्न द्वारा रचा गया था। किंतु जिनसेन स्वयं पहलेके अनेक प्रथोंका उल्लेख करते हैं, जिनके आधारपर मंत्रीके द्वारा उत्पातकी आशंकास मयूरकी प्राकृतिका उन्होंने अपना ग्रंथ बनाया है। कुछ भी हो, इस एक विमान, जो आजकलकं वायुयानकं समान था, बनवाया । यह मयूरयंत्र राजप्रासादमें गुप्तरूपस बातपर विद्वान् लोग आमतौरपर सहमत हैं कि यह तामिल नथ 'जीवकचिंतामणि' ईसाकी प्रायः ८ वीं बनवाया गया था, उममें दो व्यक्ति श्राकाशमें जा सकते थे। उसने अपनी महारानीको भी यह यंत्र शताब्दीके बादकी कृति है। फिलहाल हम इस चलाना सिखा दिया था। जब महागनीका गर्भ प्रसव निर्णयको स्वीकार करते हैं। इस थमें ३० इलम्बक के निकट हुआ, तब कृतघ्न कत्तियंगाग्नने राज्यको या अध्याय है। पहलेमें कथानायकका जन्म एवं हड़प लेनेकी अपनी कामनाको पूर्ण करनेका प्रयत्न शिक्षण वर्णित है और अंतिम अध्याय उनके किया और इस तरह गजप्रासादका घेर लिया । चूंकि निर्वाणके वर्णनके साथ समाप्त होता है। उस मयूग्यंत्र में केवल दो व्यक्तियोंका ही वजन खींचा जा सकता था और चूंकि रानीका गर्भ प्रसवके निकट नामगलइलम्बगम्-इस कथा का प्रारम्भ भरत था, इसलिये राजाने यंत्रको महागनीके अधिकारमें खण्ड के हेमांगद देशके वर्णनसे होता है । गजमापुग्म सौंप देना उचित समझा और स्वयं वहाँ रह गया। हेमांगद देशकी राजधानी थी। इसके राजा कुरुवंशीय जब यंत्र रानीको लेकर उड़ा, तब राजा नंगी तलवार
SR No.538004
Book TitleAnekant 1942 Book 04 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1942
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size73 MB
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