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________________ तामिल भाषाका जैनसाहित्य ___ [मूल लेखक-प्रो० ए० चक्रवर्ती एम० ए० आई० ई० एस०] (अनुवादक-सुमेरचन्द जैन दिवाकर, न्यायतीर्थ, शास्त्री, वी० ए० एल एल० बी० ) [१२ वी किरणसे आगे] चेरके राजकुमारकी प्रशंसा उसके मादलन् नामक जीवकचिन्तामणि-यह ग्रंथ, जो कि पंचमहाकाव्यों ब्राह्मण मित्रने मंदिरोंको पूजामें 'पोप्पली' नामक में सबसे बड़ा है, निःसन्देह विद्यमान तामिल साहिविशेष पवित्र विधिको दाखिल करने वालेके रूपमें त्यमें सर्वोत्कृष्ट है । यह कल्पनाकी महत्ता, साहित्यिक की है। प्रसंगवश हम एक और मनोरंजक बानका शैलीकी सुन्दरता एवं प्रकृति के सौंदर्य वर्णनमें तामिल उल्लेख करते हैं। आदि तामिलसाहित्यमें 'अंडणन्' साहित्यमें बेजोड़ है। पिछले तामिल ग्रंथकारोंके लिये और 'पाप्र्पान्' ये दो शब्द पाए जाते हैं, इनमेंसे यह केवल एक अनुकरणीय उदाहरण ही नहीं रहा प्रत्येकके पीछे एक कथा है। साधारणतया इन दोनों है, किन्तु एक स्पृहणीय आदर्श भी रहा है । महान् शब्दोंको पर्यायवाची समझा जाता है । कुछ स्थलोंपर तामिल 'गमायण' के रचयिता 'करबन्' के विषयमें इनका प्रयोग पर्यायवाचीकी भाँति हुआ है। जब यह कहा जाता है कि जब उसने अपनी 'रामायण' एक ही ग्रंथमें ये दोनों शब्द कुछ भिन्न भावोंमें ग्रहण को विद्वानोंकी परिषद में पेश किया, और जब कुछ किए गए हैं, तब उनको भिन्न ही समझना चाहिये । विद्वानोंने कहा कि उसमें 'चिन्तामणि' के चिन्ह पाय 'चरणभूषण' नामक प्रस्तुत महाकाव्यमें 'अंडणन्' जाते हैं तब बौद्धिक साहस एवं सत्य के धारक कम्वन् शब्दका अर्थ टीकाकारने श्रावक अर्थका वाचक जैन ने इन शब्दों में अपना आभार व्यक्त किया :गृहस्थ किया है । यह सूचना बड़ी मनोरंजक है । ये "हां, मैंने चिन्तामणि' से एक घुट अमृतका दोनों शब्द प्रख्यात कुरल काव्यमें भी आए हैं जहां पान किया है। इससे यह बात सूचित होती है कि 'पार्पान' का अर्थ वेदाध्ययन करने वाला व्यक्ति तामिल विद्वानोंमें उस महान् ग्रंथका कितना सम्मान किया गया है, और 'अंडणन्' का दूसरे अर्थमें था । यह अतीव अद्भुत महाकाव्य, जो कि तामिल प्रयोग हुआ है। उसका भाव है ऐसा व्यक्ति जो भाषाका 'इलियड' तथा 'ओडेस्सी' है, तिरुतक्य देव प्रेमपूर्ण हो और जीवमात्रके प्रति करुणावान् हो। नामक कविकं यौवनकालकं प्रारंभमें रचा गया कहा यह स्पष्ट है कि आदि तामिल ग्रंथकारोंने 'अंडणन्' जाता है । ग्रंथकार के सम्बंधमें उसके नाम और इस शब्दका व्यवहार जन्मकी अपेक्षा न करते हुए बात के सिवाय कि उसका जन्म मद्रासप्रांत के उपअहिंसाके आराधकोंके लिये किया है। 'पापा' नगर 'म्यलपुर' नामक स्थानमें हुआ था, जहाँ कि शब्द ब्राह्मण जातिको द्योतित करने के लिये निश्चित कुरलके रचयिता भी रहते थे, और कुछ भी ज्ञात किया गया था। आदि तामिलोंके सामाजिक पुन- नहीं है । तरुण कविने अपने गुरुके साथ मदुराको गठनके विषयमें रुचि रखने वाले विद्वानोंकी खोजके प्रस्थान किया था, जो पांडय राज्यकी बड़ी राजधानी लिये यह सूचना उपयोगी है। एवं धार्मिक कार्योंका केन्द्रस्थल था। अपने गुरु
SR No.538004
Book TitleAnekant 1942 Book 04 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1942
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size73 MB
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