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किरण १]
ऐतिहासिक जनसम्राट चन्द्रगुप्त
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मरणको प्राप्त हुना-न मानें । मैं पहिला ही व्यक्ति अनेक स्तूपोंमेंसे,जो आज भी विद्यमान हैं, सबसे बड़े यह माननेवाला नहीं हूं, मि० राइसने मी जिन्होंने स्तूपके घुमटके चारों ओर गोलाकार दीपक रखनेके 'श्रवणबेलगोलके शिलालेखोंका अध्ययन किया है, लिये जो रचना हुई है उसके निर्वाहके लिये पूर्णरूपसे अपनी राय इसी पक्षमें दी है और मि० लगभग २५ हजार दीनारका (२॥ लाख रु०का) वार्षिक वी० स्मिथ भी अंतमें इस ओर मुके हैं।" दान दिया था, यह बात सर कनिंगहाम जैसे तटस्थ और
सांचीस्तूपके सम्बन्धमें इतिहासकारोंका मत है प्रामाणिक विद्वान्ने 'भिल्सास्तूप' नामक पुस्तकमें कि यह अशोक द्वारा निर्माण हुआ है और इसका
प्रकट की है। यह घटना सिद्ध करती है कि उस सम्बन्ध बौद्धोस है, परन्तु प्राचीन भारतवर्ष (गजल) स्तूपका तथा अन्य स्तूपोंका चन्द्रगुप्त और उसके में डा० त्रिभुवनदास लहेरचन्द शाहने उसपर नवीन ।
- जैनधर्मसे ही गाढ सम्बन्ध था अथवा होना चाहिये, प्रकाश डाला है। उनका कहना है कि सांचीस्तपका यह निर्विवाद कह सकते हैं। सम्बन्ध जैनधर्म और चन्द्रगुप्त से है है । वे कहते हैं सम्राट् चन्द्रगुप्तने २४ वर्ष तक राज्यशासन कि मौर्य-सत्ताकी स्थापनाके बाद सम्राट चन्द्रगुप्तने चलाया और ई० स० २९७ पूर्व ५० वर्षकी आयुमें मांचीपुरमें राजमहल बनवाकर वर्षमे कुछ समयके नश्वर शरीरका त्याग किया। जैन मान्यतानुसार लिये रहना निश्चय किया था।
बारह वर्ष का भयङ्कर दुर्भिक्ष पड़नेपर चन्द्रगुप्त राज्य चन्द्रगुप्तने राजत्यागकर दीक्षा लेनेसे पूर्व वहाँके त्यागकर आचार्य श्री भद्रबाहुजीका शिष्य बन मैसूर
* अधिकाँश इतिहासज्ञ विद्वान अभी इस बातको की ओर गया और श्रवणबेलगोलमें उसने तपस्या एवं स्वीकार नहीं करते क्योकि इस निर्णयको स्वीकार करनेके अनशन व्रत दारा समाधिमरण प्राप्त किया। लिये अधिक प्रबल प्रमाणांकी आवश्यकता है।
"यह संसार काम करनेके लिये है, काम करी। हैं, मक्तिका आनन्द उन्हींको मिलता है।" कायर लोग दूसरोंके कष्ट भूलकर केवल अपने ही "उच्च आदर्शका सुग्व वही कहा जा सकता है कष्टसे व्याकुल रहते हैं।"
जो क्षणिक या अन्यका अनिष्ट करनेवाला न हो, "मुसीबतोंका अनुभव करना ही मनुष्यका प्रकृत आर उच्च आदशका भाग्य वस्तु वहा कहा जा सकता स्वभाव नहीं है, किन्त कर्तव्य यह है कि योद्धाओंकी है, जो उस उच्च श्रादर्शके सुखका कारण हो और तरह दुःखका सामना करी, दुःखको चेलेंज दो।" जिसे प्राप्त करनेमें पगई प्रत्याशा या अन्यका अनिष्ट
"अपनी इच्छास दःख-दरिद्रता स्वीकार करने में. न करना पड़े।" अभिमान और आनन्द होता है।"
___ "यह एक बिलकुल सीधी और सच बात है
कि सुख मनसे सम्बन्ध रखता है, आयोजन या "जो मृत्युकी उपेक्षा करते हैं, पृथ्वीका सारा आडम्बरसे नहीं।" सुख उन्हींका है। जो जीवनकंसुखको तुच्छ समझते
-विचारपुष्पोद्यान