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________________ १०४ भनेकान्त [वर्ष ४ समय तक उसे जैन स्वीकृत नहीं किया। परन्तु खोज स्मिथ अपनी OXFORD History of India करनेपर ऐसे प्रबल ऐतिहासिक प्रमाण मिले जिससे मे लिखते हैं कि चन्द्रगुप्त जैन था, इस मान्यताके उन्हें अब निर्विवाद चन्द्रगुप्तको जैन स्वीकृत करना असत्य समझने के लिये उपयुक्त कारण नहीं हैं। पड़ा। परन्तु श्री सत्यकेतुजी विद्यालङ्कारने 'मौर्य- मैगस्थनीज़ (जो चन्द्रगुप्तकी सभामें विदेशी साम्राज्यका इकिहास'में चन्द्रगुप्तको यह सिद्ध करनेका दूत था) के कथनोंसे भी यह बात झलकती है कि असफल प्रयत्न किया है कि वह जैन नहीं था। चन्द्रगुप्त ब्राह्मणोंके सिद्धान्तोंके विपक्षमें श्रमणों परन्तु चन्द्रगुप्तकी जैन मुनियों के प्रति श्रद्धा, जैन- (जैन मुनियों) के धर्मोपदेशको स्वीकार करता था। मन्दिरोंकी सेवा एवं वैराग्यमें गजित हो गज्यका मि० ई० थामसका कहना है कि चन्द्रगुप्त के जैन त्यागदेना और अन्तमें अनशनव्रत ग्रहण कर होनेमें शंकोपशंका करना व्यर्थ है; क्योंकि इस बातका समाधिमरण प्राप्त करना उसके जैन होनेके प्रबल साक्ष्य कई प्राचीन प्रमाणपत्रोंमें मिलता है, प्रमाण हैं। और वे शिलालेख निम्संशय अत्यन्त प्राचीन है। विक्रमीय दूमरी तीसरी शताब्दीके जैन प्रन्थ मि० जार्ज० सी० एम० वर्डवुड लिखते हैं कि और सातवीं आठवीं शताब्दीके शिलालेग्व चन्द्रगुप्तको चन्द्रगुप्त और बिन्दुसार ये दोनों जैनधर्मावलम्बी जैन प्रमाणित करते हैं। थे। चंद्रगुप्तकं पौत्र अशोकने जैनधर्मको छोड़कर रायबहादर डॉ. नरसिंहाचार्यने अपनी 'श्रवण- बौद्धधर्म स्वीकार किया था। एनसाइक्लोपीडिया बेलगोल' नामक इंग्लिश पुस्तकमें चन्द्रगुप्तके जैनी आफ रिलीजन' में लिखा है कि ई० स० २९७ पूर्वमें होनेके विशद प्रमाण दिये हैं। डाक्टर हतिलने संसारसे विरक्त होकर चंद्रगुप्तने मैसूर प्रांतस्थ Indian Antiquary XXI 59-60 में तथा श्रवणबेलगोलमें बारह वर्ष तक जैनदीक्षासे दीक्षित डाक्टर टामस साहबने अपनी पुस्तक Jainism होकर तपस्या की, और अन्तमें वे तप करते हुए the Early Faith of Asoka Page 23. स्वर्गधामका सिधारे। में लिखा है कि चन्द्रगुप्त जैन समाजका एक योग्य मि० बी० लुइसराइस साहब कहते हैं कि चंद्रव्यक्ति था। डाक्टर टामसगवने एक और जगह गुप्तके जैन होनेमें संदेह नहीं। श्रीयुत काशीप्रसादजी यहांतक सिद्ध किया है कि-चन्द्रगुप्तके पुत्र और जायसवाल महोदय समस्त उपलब्ध साधनोंपरसे पौत्र बिन्दुमार और अशोक भी जैन धर्मावलम्बी हीथे। अपना मत स्थिर करके लिग्वते हैं-"ईसाकी पांचवीं इस बातको पुष्ट करनेके लिये जगह जगह मुद्राराक्षस, शताब्दी तक प्राचीन जैन प्रन्थ व पीछेके शिलालेख राजतरंगिणी और आइना-ए-अकबरीके प्रमाण चंद्रगुप्तको जैन राजमुनि प्रमाणित करते हैं, मेरे दिये हैं। अध्ययनोंने मुझे जैन ग्रंथोंके ऐतिहासिक वृतान्तोंका हिन्दू इतिहास, के सम्बन्धमें श्री बी० ए० स्मिथका आदर करने के लिये बाध्य किया है। कोई कारण निर्णय प्रामाणिक माना जाता है। उन्होंने भी सम्राट नहीं है कि हम जैनियोंके इस कथनको- कि चंद्रगुप्त चन्द्रगुप्तको जैन ही स्वीकृत किया है । डाक्टर अपने राज्यके अन्तिम भागमें जिनदीक्षा लेकर
SR No.538004
Book TitleAnekant 1942 Book 04 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1942
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size73 MB
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