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________________ किरण १] ऐतिहासिक जैनसम्राट चन्द्रगुप्त १०३ एवं सन्तुष्ट किया। अपने साम्राज्यको अलग अलग हैं कि वह शूनाका पुत्र नहीं था। प्राम्तोंमें विभाजित किया । वहाँपर नगरशासक हाँ, धर्मकी आइमें चन्द्रगुप्तको शूद्राका पुत्र मण्डल-म्युनिस्पलिटियाँ और जनपद-डिस्ट्रिक्टबोर्ड कहनेका साहस किया गया हो, ऐसा प्रतीत होता है भी कायम किये। सेनाकी सर्वोत्तम व्यवस्था की, क्योंकि चन्द्रगुप्त जैन था, ब्राह्मणोंको जैन धर्मसे दूसरे देशोंसे सम्बन्धके लिये सड़कोंका निर्माण द्वेष था, वह इसकी समुन्नति सहन नहीं कर सकते कराया, शिक्षाके लिये विश्वविद्यालय, उपचारके लिये थे। चन्द्रगुप्तमे कन्धार, अबिस्तान, ग्रीस, मिश्र चिकित्सालय श्रादिका प्रबन्ध किया। डाककी भी आदिमें जैनधर्मका प्रचार किया, इस लिये ब्राह्मणोंको उचित व्यवस्था की । चन्द्रगुप्तके राज्यमें बाल, वृद्ध, जैन प्रचारकको शूद्र कहना कोई अनहोनी बात न व्याधिपीड़ित, आपत्तिग्रस्त व्यक्तियोंका पालन-पोषण थी। तत्कालीन ब्राह्मणोंने कलिङ्ग देशके निवासियोंको राज्यकी आरसे होता था। इस प्रकार प्रजाको संतुष्ट 'वेदधर्म-विनाशक' तो कहा ही है, साथ ही उस रखने के लिये चन्द्रगुप्तने कोई कमी नहीं रक्खी थी। प्रदेशको अनार्यभूमि भी कहकर हृदयको सन्तुष्ट और इस प्रषार उसका राष्ट्र सबसे अधिक शक्तिशाली किया है । उनकी कृपासे चन्द्रगुप्तको शूद्रका पुत्र कहा राष्ट्र था। जाना आश्चर्योत्पादक नहीं। सम्राट चन्दगुप्तके विषयमें इतिहासलेग्वक 'गजा नन्द' के विषयमें भी ऐसा ही विवाद कुछ भ्रमपूर्ण विचार रखते हैं। कोई लिखते हैं कि उपस्थित होता है। कई इतिहासज्ञोंने उसे नीच चन्द्रगुप्त शूद्राका लड़का था। गयसाहब पं० रघवर जातिका लिख डाला है, परन्तु कुछ इतिहासज्ञ अब प्रसादजीने अपने 'भात इतिहास' में चन्द्रगुप्तको इस निर्णयपर पहुँच गये हैं कि वह जैन था । मुनि 'मुग' नामक नाइनका लड़का लिख डाला है और ज्ञानसुन्दरजी महाराजने 'जैनजातिमहोदय' में सिद्ध डाक्टर हपग्ने तो चन्द्रगुप्त और चाणक्यको ईरानी किया है कि नन्दवंशी सभी गजा जैन थे। लिखनेकी भी भारी भल की है.जिसे इतिहास Smith's Early History of India विद्वान् प्रामाणिक नहीं मानते । प्रो. वेदव्यासजी Page 114 में और डाक्टर शेषागिरिराव ए० ए० अपने प्राचीन भारत' में लिखते हैं कि विश्वसनीय आदिने मगधके नन्द राजाओंको जैन लिखा है, क्यों साक्षियोंके आधार पर यह सिद्ध होगया है कि चन्द- कि जैनधर्मी होने के कारण वे आदीश्वर भगवानकी गुप्त एक क्षत्रिय कुलका कुमार था । बौद्धमाहित्यके मूर्तिको कलिङ्गसे अपनी राजधानी मगधमें ले गये । सुप्रसिद्ध ग्रंथ 'महावंश' के अनुसार चन्द्रगुप्तका जन्म देखिये South India Jainism Vol II मोग्यिजातिमें हुआ था । श्रीसत्यकंतु विद्यालङ्कारने Page 82 । इससे प्रतीत होता है कि पूजन और भी अपने 'मौर्य साम्राज्यका इतिहास' में इस सम्मति दर्शनके लिये ही जैन मूर्ति ले जाकर मंदिर बनवाते को महत्व दिया है। 'गजपुनाना गजेटियर, में मोरी होंगे। महाराजा खारवेलके शिलालेखसे स्पष्ट प्रकट वंश' को एक राजपूत वंश गिना है। अस्तु; जो हो, होता है, कि नन्दवंशीय नृप जैन थे। अधिकांश इतिहासलेखक इस निर्णय पर पहुँच गये सम्राट चन्द्रगुप्तके विषयमें भी इतिहासज्ञोंने कुछ
SR No.538004
Book TitleAnekant 1942 Book 04 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1942
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size73 MB
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