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________________ अनेकान्त [वर्ष ४ जों २७ फीट ऊँचा होगा। कहते हैं, पहले इसके इन लेखोंको पढ़कर यहाँका विशेष इतिहास प्रकट शिखरपर एक चर्तुमुख प्रतिमा विगजमान थी; किंतु किया जाना चाहिये । वह उस दिनसे एक रोज पहले धराशायी होगई जिस अवशेष गुफायें ज्यादा बड़ी नहीं हैं, परन्तु उन दिन लॉर्ड नॉर्थब्रक सा० इन गुफाओंका देखने में भी तीर्थकर प्रतिमायें दर्शनीय हैं । इनका विशेष आय थे। __ इस गुफामें मूर्तियों के दिव्य दर्शन करके कुछ ___ वर्णन 'ए गाइड टु इलोग' नामक पुस्तकमें देखना जैन लोगोंने अक्षतादि चढ़ाये थे; यह देख कर पुरा चाहिये । इस लेखमें तो उनकी एक झाँकी मात्र तत्व विभागके कर्मचारीने उनको रोक दिया। इस लिखी है । इलोगकी मब गुफायें लगभग १०-१२ घटनासे हमारे हृदयको आघात पहुँचा-परितापका मीलमें फैली हुई हैं और इनकी कारीगरी देखनेकी स्थल है कि हमारे ही पूर्वजोंकी और हमारे ही धर्म चीज़ है । उनको देखनेमें हमारे संघके लोग की कीनियों की विनय और भक्ति भी हम नहीं कर भूख-प्यास भी भूल गये । दोपहरका सूर्य गरमी लिये मकते ! जो स्वयं अपना व्यक्तित्व सुरक्षित नहीं चमक रहा था, लेकिन फिर भी लोग गुफाओंके रग्वता, उसके लिये परिताप करना भी व्यर्थ है ! जैनी ऊपर पर्वतपर चढ़कर जिनमंदिरके दर्शन करनके पुगतन वस्तुओंकी सार-सँभाल करना नहीं जानते ! लिये उतावले हो गए। बसोतके पानीका बना हुआ इसलिये यही दमरे लोग उनकी वस्तुओंकी मार-संभाल ऊबड़-खूबड़ रास्ता था-वह वैसे ही दुर्गम थाकरते हैं और छने नहीं देते तो बेजा भी क्या है? उसपर कड़ी धूप ! परंतु जिनवन्दनाकी धुनमे पगे इन गुफाओं में दृमरी बड़ी गुफा जगन्नाथगफा हुय बच्चे भी उस चावसे पार कर रहे थे। करीब है । यह इन्द्रमभा गुफाके पास ही है; परंत उतनी शा-२ फलोग ऊपर चढ़नेपर वह चैत्यालय मिला। अच्छी दशामें नहीं है। इसकी रचना प्रायः न हो उसमे जिनेन्द्र पार्श्वनाथके दर्शन करके चित्त प्रसन्न गई है। इसमें भी भ० पार्श्वनाथ, भ० महाबीर और हो गया-अपने श्रमको सब भूल गये और भाग्यको गोम्मट स्वामीकी प्रतिमायें हैं। सोलहवें तीर्थकर भ० सराहने लगे । इस चैत्यालयको बने, कहते हैं, ज्यादा शान्तिनाथकी एक मर्तिपर इन गुफाओंमे ८ वीं-९ समय नहीं हुआ है। औरंगावादके किन्ही सेठजीने वीं शताब्दिके अक्षरोंमें एक लेख लिखा हुआ है, इसे गत शताब्दिमें बनवाया है । मालूम होता है, वह जिसे बर्जेस सा० ने निम्न प्रकार पढा था:- यहाँ दर्शन करते हुये आये होंगे और जिनेन्द्रपावके "श्री सोहिल ब्रह्मचारिणा शांति- गुफामंदिरको अथवा कहिये शैल-मंदिरको भग्नावशेष भट्टारक प्रतिमेयार" देखकर यह चैत्यालय बनवाया होगा। परंतु आज __ अर्थात्-"श्री मोहिल ब्रह्मचारी द्वारा यह फिर उसकी सा सँभाल करनेवाला कोई नहीं है। शांतिनाथकी प्रतिमा निर्मापी गई।' निजामका पुरातत्वविभाग भी उसकी ओरसे विमुख एक अन्य मूर्ति 'श्रीनागवर्मकृत प्रतिमा' लिखी है। शायद इसी लिये कि वह जैनियोंकी अपनी चीज़ गई है। जगनाथ गुफामें पुरानी कनड़ी भाषाके भी है। उसमें भ० पार्श्वकी पद्मासन विशालकाय प्रतिमा कई लेख हैं, जो ईसाकी ८ वीं-९ वीं शताब्दिके हैं। अखंडित और पूज्य है। यहाँ ही सब यात्रियोंने
SR No.538004
Book TitleAnekant 1942 Book 04 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1942
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size73 MB
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