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________________ किरण १] इलोराकी गुफायें ६५ वह भव्य-समय याद आ गया-दृष्टिके सामने जैना- चार बड़े २ स्तंभोंपर टिका हुआ है। इस सभाकी चार्योंकी धर्मदेशनाका सुअवसर और सुदृश्य नृत्य उत्तरीय दीवारमें छोरपर भ० पार्श्वनाथकी विशालकरने लगा-इन्हीं गुफाओंमें प्राचार्य महाराज बैठते मूर्ति विराजमान है-वह दिगम्बर मुद्रामें है और थे और राजा तथा रंक सभीको धर्मरसपान कराते सात फणोंका मुकट उनके शोशपर शोभता है । नागथे ! धन्य था वह समय ! फण मंडल-मंडित संभवतः पद्मावती देवी भगवानके जैनगुफाओंमें इन्द्रसभा नामकी गुफा विशेष ऊपर छत्र लगाये हुए दीखती है। अन्य पूजकादि भी उल्लेखनीय है। इसका निर्माण कैलाशभवनके रूपमें बने हुए हैं। इसी गुफामें दक्षिणपार्श्वपर श्री गोम्मटेश्वर किया गया है। इसके इर्द-गिर्द छोटी २ गुफायें हैं। बाहवलिकी प्रतिमा ध्यानमग्न बनी हुई है। लतार्य बीचमें दो खनकी बड़ी गुफा बनी हुई है। यह बड़ी उनके शरीर पर चढ़ रही हैं, मानो उनके ध्यानके गुफा बड़ा भारी मंदिर है, जो पर्वतको काटकर गांभीर्यको ही प्रकट कर रही हैं। यह भी दिगम्बर बनाया गया है। इसकी कारीगरी देखते ही बनती मुद्रा में खगासन है। भक्तजन इनकी पूजा कर रहे हैं। है। इसमें घुमते ही एक छोटीसी गुफाकी छतमें यहीं अन्यत्र कमरेके भीतर वेदीपर चारों रंगविरंगी चित्रकलाकी छायामात्र अवशेष थी-वह दिशाओंमें भ० महावीर की प्रतिमा उकेरी हुई है। बड़ी मनोहर और सूक्ष्म रेखाओंको लिये हुये थी। दूसरे कमरेमें भ० महावीर स्वामी सिंहासन पर विराकिंतु दुर्भाग्यवश वहाँपर बरोंने छत्ता बना लिया जमान मिलते हैं। उनके मामने धर्मचक्र बना हुआ और शायद उमीको उड़ानेके लिये आग जलाकर है। मानों इस मन्दिरका निर्माता दर्शकोंको यह यह रंगीन चित्रकारी काली कर दीगई थी। यह दृश्य उपदेश दे रहा है कि जिनेन्द्र महावीरका शासन ही पीड़त्पादक था-जैनत्वक पतनका प्रत्यक्ष उदाहरण त्राणदाना है, अतएव उनका प्रवाया हुआ धर्मचक्र था । कहाँ आजके जैनी जो अपने पूर्वजोंके कीर्ति- चलाते ही रहो। परंतु कितने हैं, जो इस भावनाको चिन्होंको भी नहीं जानते। और कितना बढ़ा चढ़ा मूर्तिमान बनाते हैं ! इसीमें पिछली दीवारके सहारे उनके पूर्वजोंका गौरव ! भावुकहृदय मन मसोसकर एक मूर्ति बनी हुई है जो 'इन्द्र' की कहलाती है । ही रह जायगा। कहते हैं कि निजामसरकारका मूर्तिमें एक वृक्षपर तोते बैठे हुए हैं और उसके नीचे पुगतत्वविभाग इसपर सफेद रंग करा रहा है। इसका हाथीपर बैठे हुए इंद्र बने हैं। उनके पासपाम दो अंगअर्थ है, इलोगमें जैनचित्रकारीका सर्वथा लोप! रक्षक हैं । इस मूर्तिसे पश्चिमकी ओर इंद्राणीकी क्या यह रोका नहीं जा सकता ? और क्या पुरातन मूर्ति बनी हुई है । इन्द्राणी सिंहासनपर बैठी हैं और चित्रकारीका हो उद्धार नहीं हो सकता? हो सकता सब सुन्दर प्राभूषणादि पहने अङ्कित है । इसी स्थानसे कुछ है, परंतु उद्योग किया जाय तब ही कुछ हो। आसपासके छोटे २ कमरोंमें जाना होता है, जिनमें इन्द्रमभा वाली इस गुफाका नं० ३३ है। यह दो भी तीर्थकरोंकी मूर्तियाँ बनी हुई हैं। भागोंमें विभक्त है। एक इन्द्रगुफा कहलाती है और इस गुफामें अहातेके भीतर एक बड़ासा हाथी दूसरी जगन्नाथ गुफा। इन्द्रगुफाका विशाल मण्डप बना हुआ है और वहीं पर एक मानस्तंभ खड़ा है
SR No.538004
Book TitleAnekant 1942 Book 04 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1942
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size73 MB
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