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________________ अतिशय क्षेत्र इलोराकी गुफाएँ [ले-श्री० बाबू कामताप्रसाद जैन ] -More mireo000mm-. 90000009 900000000 जाम हैदगबादकी रियासतमें भारतके चार्यजीके समय इलोरा अपनी जवानीपर था, नि प्राचीन गौरवको प्रकट करनेवाली अनेक क्योंकि उनका समय राष्ट्रकूट साम्राज्यकालके अंतacanvars कीर्तियाँ बिखरी पड़ी हैं । वे कीर्तियां र्गत पड़ता है । अतएव यह अनुमान किया जा जैनों, बौद्धों और वैष्णवोंकी सम्पत्ति ही नहीं, बल्कि सकता है कि उन्होंने जिस इलावर्द्धन नगर का उल्लेख माम्प्रदायिकताको भुलानेवाला त्रिवेणी-संगमरूप ही किया है वह इलोरा होगा । उन्होंने लिखा है कि हैं । गतवर्ष श्री गोम्मटेश्वरके महामस्तकाभिषेको- 'कौशलदेशकी रानी 'इला' अपने पुत्र 'ऐलेय' को त्सवसे लौटते हुये हमको यहाँ के पुण्यमई स्थान साथ लेकर दुर्गदेशमें पहुंची और वहाँपर इलावर्द्धन इलोगके दर्शन करनका सौभाग्य प्राप्त हुआ था। नगर बसाकर अपने पुत्रको उमका राजा बनाया। ईम्वी ९ वीं-१० वीं शताब्दिमें इलोग संभवतः (सर्ग १७ श्लो० १७-१९) हो सकता है कि इस ऐलापुर अथवा इलापुर कहलाता था और तब वह प्राचीन नगरको ही राष्ट्रकूट राजाओंने समृद्धिशाली गष्ट्रकूटसाम्राज्यका प्रमुग्व नगर था । एक समय वह बनाया हो ! और इसके पार्श्ववर्ती पर्वतमें दर्शनीय राष्ट्रकूट राजधानी मी रहा अनुमान किया जाता है। मन्दिर निर्माण कराये हों ! तब उमका वैभव अपार था अब तो उसकी प्रति- गत फाल्गुणी अमावस्याको हम लोग मनमाड छाया ही शेप है। परन्तु यह छाया भी इतनी विशाल, जंकशन (G. I. P. R.) से लारियोंमें बैठकर इतनी मनोहर और इतनी सुन्दर है कि उसको देखते इलोराके दर्शन करनेके लिये गये । जमीन पथरीली ही दर्शकके मुखस बेमाख्ता निकल जाता है : 'ओह । है-चागें र पहाड़ ही पहाड़ नजर आते हैं। जब कैसा सुन्दर है यह !' सच देखिये तो 'सत्यं शिवं हम इलोगके पास पहुंचे तो बड़ा-सा पहाड़ हमारे सुन्दरम्' का सिद्धान्त इलोराकी निःशेष विभूति-उन सम्मुख प्रा खड़ा हुश्रा । पहले ही एलोर गाँव पड़ा। कलापूर्णगुफाओंमें जीवित चमत्कार दर्शा रहा है। यह एक छोटासा आधुनिक गाँव है। उस रोज यहां अब माचिये यौवन-रससे चुहचुहात इलापुरका पर वार्षिक मेला था। चारों ओरसे प्रामीण जनता सौभाग्य-सौंदर्य ! आज कालकरालने उसे निष्प्रभ वहाँ इकट्ठी हुई थी। गाँवके पास बहती हुई पहाड़ी बनानेमें कुछ उठा नहीं रकवा, परन्तु फिर भी उसे नदीमें उसने म्नान किया था और पवित्रगात होकरके वह निष्प्रभ नहीं बना सका ! उसका नाम और काम कैलाशमंदिग्में शिवजीपर जल चढ़ाया था। हजारों भुवनविख्यात् है ! स्त्री-पुरुष और बालक-बालिकायें इस लोकमूढ़तामें 'हरिवंशपुराण' में श्री जिनसेनाचार्यजीने एक आनन्दविभोर हो रहे थे। उन्हें पता नहीं था कि इलावर्द्धन नगरका उल्लेख किया है । श्री जिनसेना- शिवजीकी यह मूर्ति सचिदानन्द ब्रह्मरूप (परमात्म
SR No.538004
Book TitleAnekant 1942 Book 04 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1942
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size73 MB
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