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________________ ७८ अनेकान्त आवाजें उसके कानों से टकराकर अनन्तमें व्याप्त हो रहीं हों तब वह रंगरेलियों में मस्त रहे ? यदि विषय-भोग मानवको संतुष्ट और मुक्तकर सकते तो भरत जैसे भारतेश्वर क्योंकर भव्य भाडारोंको ठुकराकर वनकी राह लेते ? वीरके इस प्रकारके एक एक करके सभी शब्द आग धधकते शोले थे, जिन्होंने मांकी ममताका जनाज़ा जला डाला । और तब राजमाताने दीक्षाकी आशा देवी । वीर भी दुनियाँकी ऐशो-इशरत को ठुकराकर वनके उस शाम्त प्रदेशको चले गये जहाँ प्रकृति अपनी अनुपम छटा दिखला रही थी । वनके उस हरियाले वैभव वे भी अपनी सदियों से बिछुड़ी निधिको खोजने में व्यस्त हो गये ! अब उनका जीवन एक तपस्वी जीवन था । वह बाल सुलभ- चंचलता विलीन हो चुकी थी । वहाँ न राग था, न रंग और न द्वेष तथा दम्भ । कर्मों पर विजय हासिल करके धारम विकास करना उनकी एकमात्र साधना थी, जिसके लिये वे कठोर से कठोर यातना भी सहनेको कटिबद्ध थे । अतः उन्होंने अपनी सारी शक्तियाँ इसी मोर्चे पर लगादीं । [ वर्ष ३. किरण १ करने में अपना अहोभाग्य मानती थी। बर्फीली, नुकीली एवं तवा-ली तपो दरदरी चट्टानें उनको शासन थीं । पर यह सब आयोजन अपनी मुक्ति तथा संसारके उद्धार के लिये था, न कि महादेवकी तरह पार्वतीको रिझाने के लिये अथवा अर्जुनकी तरह शत्रु संहार के वास्ते । धन्त में बारह वर्षकी कड़ी तपस्या के बाद उन्हें सफलता - देवीने अपनाया और वे केवलज्ञानको प्राप्त कर विश्वोद्धारको निकल पड़े। उन्होंने संसारको सत्य और अहिंसाका पूर्ण सारगर्भित मार्मिक उपदेश दिया विश्वको भाईचारेका सफल पाठ पढ़ाया और मानवोंकी दिमाग़ी गुलामीको दूर कर उन्हें पूर्णस्वाधीनता (मुकम्मिल धाज़ादी) प्राप्त करने का मार्ग सुझाया, जिसे आज भी पराधीन भारतकी कोटि कोटि जनता एककण्ठसे पुकार रही है। इस प्रकार अपना धौर लोकका हितसाधन करके वीर भगवान् ७२ वर्षकी उम्र में मुक्तिको प्राप्त हुए और लोकके अग्रभागमें जा विराजे । कंकरीजी, नुकीली, ऊबड़-खाबड़ जमीन उनका बिस्तर थी और खुला आसमान था चादर ! इस सेज के सहारे सर्दी की बर्फीलो रातें और गर्मी के बाग-से दिन यों ही बिता देते थे । समाधि उनकी साधना का साधन थी कोमल सेख तथा मुलायम गतीचों पर धाराम करने वाला उनका सुकुमार शरीर काफी कठिन एवं कृश हो चुका था । वर्षाकी बज्रभेदी बौछारें उन्हें महला जातीं, गर्मीकी सनसनाती पढें तपा जातीं और सर्दीकी ठंडी हवा उनसे किल्लोले यह है उनके विशाल जीवनकी नन्हीं सी कहानी, जो कि उनके जीवन पटपर धुंधलासा प्रकाश फेंक सकती है । वास्तवमें बीरका जीवन एक ऐसा महान् ग्रन्थ है जिसके प्रत्येक पत्रके प्रत्येक पृष्ठकी प्रत्येक पंक्ति में 'अहिंसा महान् धर्म है' 'ब्रह्मचर्य ही जीवन है' 'सत्य कहीं नहीं हारता' 'सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक् चरित्र ही मोक्षमार्ग है' - जैसे मुक्तिपथ-प्रदर्शक सूत्र भरे पड़े हैं। सोचो - यदि भगवान् महावीरका जीवन-प्रन्थ न होता तो फिर हम जैसे अपश इन विस्मृत महान् सूत्ररत्नोंकी झांकी, कहाँ, कैसे और किससे पाते ? ७२ वर्षके लम्बे चित्रण में वीरका जीवन क्रमसे
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
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